*पीए_टाइम्स_इंडस्ट्रीज_के_संस्थापक_श्री_जी_एस_पुरेवाल_को_नमन*
4 फरवरी 2024 – (#पीए_टाइम्स_इंडस्ट्रीज_के_संस्थापक_श्री_जी_एस_पुरेवाल_को_नमन)-
मेरे गाँव धर्मपुर के अति प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं प्रदेश मे आजादी के बाद की
प्रथम इंडस्ट्री पी ए पीनियन के संस्थापक आदरणीय जी.एस पुरेवाल बुधवार को अपनी अगली यात्रा के लिए निकल गए। स्मरण रहे वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने धर्मपुर जैसे पिछड़े इलाके मे उद्योग का साहस किया था। उस समय धर्मपुर सयुंक्त पंजाब का हिस्सा था। तब पहाड़ी क्षेत्र मे उद्योग की ओर लोगों का रूझान नहीं था। पुरेवाल साहब जो कि घड़ी के पुर्जे बनाने की इंडस्ट्री लगाना चाहते थे उन्हे धर्मपुर का प्रदुषण मुक्त वातावरण भा गया और मेरे धर्मपुर स्थित घर के पास ही उन्होने किराए के शैड मे बहुत ही छोटे स्तर पर स्विट्जरलैंड से आयातित चार मशीनों के साथ इंडस्ट्री शुरू कर दी और आगे चल यही इंडस्ट्री मैक्सिमा घड़ी बनाने वाली बड़े उद्योग मे परिवर्तित हो गई और पुरेवाल घड़ी उद्योग का बड़ा नाम हो गया। इस उद्योग के कारण सैंकड़ों स्थानीय नौजवानों को रोजगार मिला। इलाके की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए लाखों रूपए पगार के रूप मे आने लगे और क्षेत्र मे खर्च होने लगे।
यह मेरे बचपन की बात है जब यह उद्योग सपाटू रोड पर लगा तो मेरी उम्र दस वर्ष रही होगी लेकिन आज भी मुझे धुंधला सा याद है पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैंरो का वहां आना और पुरेवाल साहब की फैक्टरी मे चाय पीना। पुरेवाल साहब मूल रूप से होशियारपुर पंजाब के रहने वाले थे और उनके कई रिश्तेदार उस समय पंजाब कांग्रेस के उच्च पदों पर थे, इसके चलते कैंरो साहब से भी वह परिचित थे। कैंरो साहब ने सबके सामने अपने दौरे के दौरान पूछा, गुरमीत सरकार से कोई मदद चाहिए क्या? पुरेवाल साहब ने कहा यदि जमीन मिल जाए तो हम बड़ा शैड बनाना चाहते है। मुख्यमंत्री जी ने डी सी साहब को बुलाया और कहा इन्हे जमीन ऐलोट कर दो। डी सी ने उत्तर दिया सर मुझे पावर नहीं है। मुख्यमंत्री ने पूछा पावर किसके पास है ? डी सी ने कहा सरकार के पास है। कैंरों साहब ने डी सी से कड़क आवाज मे फिर पूछा सरकार कौन है तो डी सी ने कहा आप सर। कैंरों साहब ने कहा फिर समझो सरकार ने जमीन सेंक्शन कर दी है। आप औपचारिकता पूरी कर लेना और पुरेवाल साहब को जमीन मिल गई।
कैंरो साहब का यही स्टाइल कैंरोशाही के नाम से जाना जाता था। पुरेवाल साहब के पास स्विट्जरलैंड मे प्राप्त इस घड़ी इंडस्ट्री का अनुभव था। वह सफलता प्राप्त करने बाद भी मशीन पर काम करने मे गुरेज नहीं करते थे। वह बहुत शालीन व्यक्तित्व के स्वामी थे। कारखाने के मजदूरों के साथ उनका पारिवारिक रिश्ता था। वह इलाके के विकास मे रूचि रखते और सामाजिक संस्थाओं की मदद करते थे। वह 95 वर्ष के थे उनके जाने के साथ ही धर्मपुर का एक युग समाप्त हो गया, लेकिन वह एक सार्थक उदाहरण छोड़कर गए है कि मेहनत, संघर्ष और ईमानदारी के साथ सफलता की इबारत कैसे लिखी जा सकती है।
#आज_इतना_ही।