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Mumbai bolywood*नाटक बाबू जी ने आज के समाज को सोचने पे किया मजबूर*

 

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नाटक बाबू जी ने आज के समाज को सोचने पे किया मजबूर।।

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कल शिवा जी नाट्य मंदीर में भारन्गम नाट्य फेस्टिवल के तरफ से बहुत ही उम्दा नाटक देखने का मौक़ा मिला बाबू जी, बाबू जी समाज के रूढ़ि वादियों विचारों पे लिखा गया नाटक है,समाज में हर समय में कला, नाच गाना और प्रतिभा को परीक्षा देना पड़ा है, और इसी परीक्षा रूपी यात्रा को कलम बद्ध किया मिथलेश्वर् ने, बाबू जी मिथिलेश्वर की मूल कहानी को रूपांतरित किया है बहुत ही कलात्मक और रचनात्मक लेखक रंगकर्मी विभांशु वैभव ने और निर्देशित किया है राष्ट्रीय नाट्य विधालय के पूर्व छात्र राजेश सिंह ने,

मंच विभांशु वैभव द्वारा; अनुकूलन पर आधारित है

नौटंकी शैली. बाबूजी उत्तर भारतीय लोक कला पर आधारित है, इसमे निर्देशक ने बिहार के लोक कला के साथ पार्शि शैली और वाचिक अभिनय को बहुत ही अच्छे तरह से प्रयोग किया है, अभिनेता राजेश सिंह ( लल्लन सिंह)और महिला कलाकार शिल्पा (कौशल्या) और रीता (सुरसतिया) ने अपनी अभिनय क्षमता से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया और दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया इसके साथ साथ

शिब्बू ( काका, धनपत ) विक्रम ( लच्छू )उत्सव ( कलीदीन)रहमान (बड़कू)सत्येंद्र ( छोटकू) ने भी साराहनीय अभिनय किया और दर्शकों को भरपूर मनोरंजन किया।।

संगीत बहुत ही उत्तम और कलात्मक था,

प्रकाश परिकल्पना बहुत अच्छा था, संगीत प्रसिद्ध रंगकर्मी बाबा करांत जी का था, कुल मिलाकर सभी कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया और शिवा जी नाट्य मंदीर में बैठे सभी दर्शक को मनुरंजन के साथ अंदर से झकझोड़ के रख दिया, ये कहा जा सकता है की राजेश सिंह आधुनिक भारत के सबसे सर्व श्रेष्ठ रंग कर्मी है और गान्धर्व जी की भारतीय सोच को आगे बढ़ा रहे हैं, उनकी इस सोच को मेरे टीम सलाम करती हैंहैं, इस मौके पे राष्ट्रीय नाट्य विधालय के पूर्व निदेशक श्री राम गोपाल बजाज, प्रसिद्ध रंग कर्मी व फिल्मकार इरफान जामियावाला, अभिनेता, आशिक खाँ, इश्तीयक् खाँ, पूर्व निदेशक वावन केंद्रये, के साथ बहु संख्या में रंग प्रेमी मौजूद थे उन सभी ने इस अद्भुत प्रस्तुति को साराहना की और इस नाटक के निर्देशक राजेश सिंह को बधाई दी और 1994 के पूर्व निर्देशक स्वर्गीय बाबा कारांत जी को याद किया और उनके द्वारा दिया गया संगीत की सराहना की।।

नौटंकी, और बाबूजी (लल्लन सिंह) की पूरी जीवनशैली है

नृत्य और संगीत से पूरी तरह जुड़ीं. उसकी भावनाएं, उसकी

प्रेरणाएँ, उनका दर्द, उनका आनंद, उनकी पीड़ा – सब कुछ जुड़ा हुआ है

संगीत के साथ.

बाबूजी अपनी संगीत प्रार्थना में पूर्णता प्राप्त करना चाहते हैं। अपने ही परिवार और समाज द्वारा उपेक्षित और अपमानित होकर, उन्होंने खुद को संगीत में स्वतंत्र रूप से स्थापित किया। कई साल बाद उन्हें एक शादी में नौटंकी शो करने का निमंत्रण मिलता है – यह निमंत्रण उनकी बेटी के ससुराल वालों की ओर से है, उनकी बेटी की शादी के लिए। वह आगे बढ़ता है और निमंत्रण स्वीकार करता है…
रिपोर्ट: इरफान जामियावाला

 

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