Editorial*भतीजे_ने_लगाई_चाचा_की_पीठ* Mahendra Nath sofat ex minister Himachal
8 फरवरी 2024- (#भतीजे_ने_लगाई_चाचा_की_पीठ)-
राजनीति संख्या का खेल है। जिसके पास संख्या बल है उसके सामने सब नतमस्तक है। महाराष्ट्र मे आज- कल राजनीति का नया इतिहास लिखा जा रहा है। दल- बदल कानून के अंतर्गत जब दल के वैध विभाजन के लिए दो-तिहाई संख्या को जरूरी बना दिया गया था तो राजनैतिक विश्लेषको का मानना था कि इतनी बड़ी संख्या जुटाना अगर असम्भव नहीं तो अति कठिन अवश्य है, लेकिन महाराष्ट्र मे एक नहीं बल्कि दो बार असम्भव को सम्भव बना कर शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का विभाजन कर दिया गया। संयोग से टूट कर गए दोनो धड़ों को चुनाव आयोग ने मान्यता प्रदान कर दी है। दोनो दलों की कहानी आपस मे काफी-कुछ मिलती- जुलती है। राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना महाराष्ट्र के क़द्दावर नेता शरद पवार और मेघालय के क़द्दावर नेता पी.ए संगमा ने सोनिया के विदेशी मूल के होने के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध मे की थी। कुछ समय बाद संगमा अलग हो गए और शरद पवार एन सी पी के सुप्रीमो हो गए। उनके भतीजे अजित पवार सेनापति के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे थे, लेकिन अब उम्र और सेहत शरद पवार के साथ नहीं थी इसलिए वह अपनी राजनैतिक वारिस अपनी बेटी सासंद सुप्रिय सुले को बनाना चाहते थे। यह बात भतीजे अजित पवार को गवारा नहीं थी।
उधर शिव सेना जिसकी स्थापना उद्वव ठाकरे के पिता बालासाहब ठाकरे ने की थी के यहां भी एकनाथ शिंदे ने बगावत कर कब्जा कर लिया। अब दोनो शरद पवार और उद्वव ठाकरे सड़क पर आ गए है। दोनो को नये नाम और नये चुनाव चिन्ह के साथ पार्टी बना कर चलानी होगी। अजित और शिंदे अपनी पार्टी के दो तिहाई विधायकों का समर्थन जुटाने मे सफल रहे तो चुनाव आयोग के पास मान्यता देने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। स्मरण रहे अब शिंदे और अजित दोनो एन डी ए का हिस्सा है और महाराष्ट्र सरकार मे मुख्यमंत्री एवम उप-मुख्यमंत्री है।हालंकि चुनाव आयोग के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय मे चुनौती दी जा सकती है, लेकिन लोकसभा के चुनाव सामने है। जब तक कोर्ट का निर्णय आएगा तब तक शरद पवार और उद्वव ठाकरे को न कभी भरपाई होने वाला नुकसान हो चुका होगा। दोनो मामलो मे संख्या बल अजित और शिंदे के साथ है। महाराष्ट्र के राजनैतिक घटनाक्रम से यह निष्कर्ष निकलता है कि राजनीति के खेल मे न कोई दोस्ती है न कोई रिश्तेदारी है। यहां न कोई चाचा है न कोई भतीजा है, न कोई गुरू है न कोई शिष्य है और न ही कोई गुरूभाई है।
#आज_इतना_ही।