*मान सम्मान: लेखक संजीव थापर*



दोस्तो “मान सम्मान” शब्द बार बार मेरे ज़हन में घूम रहा है । मैनें कई बार अपने सर को हल्का सा झटका दे कर इससे निज़ाद पाने की कोशिश की किंतु यह नामुराद जैसे मेरे दिमाग की कोशिकाओं में रच बस गया है । मैनें अपने निजी और सरकारी जीवन के बीते हुऐ और वर्तमान पन्नों पर दूर दूर तक दृष्टि दौड़ा कर भी देख लिया किंतु “मान सम्मान” से दूर दूर तक अपना कोई नाता ना था । “मान सम्मान” की चाह में ही एक दिन सेवानिवृत हो कार्यालय से “आखरी पग” लांघ कर घर वापिस आ गए । घर में भी केवल कुछ दिन ” मान सम्मान” से थोड़ा कम सम्मानजनक निकले फिर फरमान जारी हो गया कि अब आपने काफी आराम अर्थात मटरगश्ती कर ली है अब घर के कामों में हाथ बटाये । सुबह 5 बजे उठ कर गीज़र आन करना , 6 बजे दूध वाले से दूध लेना , 7 बजे बाहर गमलों और क्यारियों में पानी देना , गाड़ी धोना और बाजार से समान लाना इत्यादि बहुत से कामों में से कुछ एक काम आपको बता रहा हूं दोस्तो बाकी कार्य बताने की आज्ञा नहीं है । जिंदगी झंड से झंडावर हो गई है । अरे यह , यह आज के अखबार में क्या लिखा है
” पार्टी में मान सम्मान ना मिलने के कारण हमने इतना बड़ा फैसला लिया”
दोस्तो इसे पढ़ कर मेरी जान में जान और चेहरे पे हल्की सी मुस्कुराहट आ गई है । इस भरी दुनिया में “मान सम्मान” से केवल मैं ही वंचित नहीं हूं , आदरणीय और माननीय भी हैं । मेरी आंखों से गम और खुशी के मिश्रित आंसुओं की जोड़ी झट से निकल कर नीचे अखवार में छपी माननीयों की फोटो के चरणों में जा गिरी हैं मानो उन्हें सम्मानित कर रही हो ।