पाठकों के लेख :Sunil Prem
बीके सूद मुख्य संपादक

झण्डे को डण्डा लगाकर
सब कोई भीड़ बनाकर
अपनी अपनी
शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है
सब कोई अपनी जाति
अपने धर्म के लिए
लड़ रहा है
पर कोई नहीं
मानवता का झण्डा लगाकर
भीड़ को चीरता हुहा
आगे बढ़ता हुहा
मानवता का परचम नहीं लहरा रहा है
आख़िर हम
इसलिए आयें थे ???
जाति के चक्रव्यूह में फँसकर
धर्म को ढ़ोकर
धर्म और जाति को कसकर पकड़कर
अपनी इंसानियत को मारते जाए
हमको आरक्षण से नफ़रत है
पर जातिव्यवस्था से नहीं
हमको इंटरकास्ट की शादी से नफ़रत है
पर प्यार हमको पसन्द है
हमको जानवर से सम्वेदना है
पर इन्सान से नहीं
हम आज भी इन्सान कहाँ बन जाए
21वीं शताब्दी में भी हम
जातिभेदभाव को करतें गए
हम स्त्री को सिर्फ शरीर मापते गए
अपनी जरूरत के लिए उसका
बलात्कार करतें गए
हम कल भी नहीं समझ पाए
औऱ आज भी नहीं समझ पाए
की शरीर के साथ उसके अन्दर दिल
और सम्वेदना है
उसको भी हमारी तरह दर्द होता है
हमको दूसरें के दर्द से दर्द नहीं होता
दूसरे की पीड़ा से पीड़ा नहीं होतीं है
हम सिर्फ अपना फायदा देखतें है
बस हमारी ग़रीबी दूर होनी चाहिए
दूसरा चाहें ग़रीबी से मर जाए
बस हमारें पास पैसे होने चाहिए
दूसरा चाहें पैसे के अभाव से चाहें मर जाए
हमको इससे कोई फ़र्क नहीं
बस हम नहीं मरने चाहिए
धर्म के कारण हमारा खून खोल पड़ता है
पर इंसानियत के लिए
हमारें हाथ कांप पड़ते है
पैर लडखडा पड़ते है
धर्म के नाम पर
हम चंदा दिल खोलकर देतें है
औऱ इंसानियत के नाम पर
हमको चन्द सिक्कें देनें पर भी
परेशानी होतीं है
सच्च में हम
अपना जीवन
धर्म की वकालत
जाति को पकड़कर
देश को गर्व करकें
नष्ट कर देतें है
मैं तो सोचता हूँ
हम जब
जातिव्यवस्था को तोड़ पाए
काल्पनिक कहानियों को सच्च समझ पाए
पूरी दुनियॉ के इन्सानो से प्रेम
औऱ सहयोग कर पाए
तब जाकर हमारा
इस पृथ्वी पर आना
कुछ सही होगा
अगर हम ये सब नहीं कर पाए
तो हमारा इस पृथ्वी पर आना
एक भार ही है
औऱ भार ही होगा

__ सुनील प्रेम