पाठकों के लेख एवं विचार
“*मेरी किताब “लेखक :विनोद शर्मा वत्स मुम्बई*


दोस्तो नई रचना आप सभी के लिये

मेरी किताब
तुमको लिखूँ पढू या तुम्हे भूल जाऊँ।
तुम मेरी किताब हो तुम्हे कहा सजाऊँ।
दिल की अलमारी में पहले ही तुम हो।
वो दिगर बात है बोलती नही गुम हो।
ऐसा क्या लिखूँ जो तुमको हँसाऊँ।
तुम मेरी किताब हो तुम्हे कहाँ सजाऊँ।
तुमको लिखूँ पढू या तुम्हे भूल जाऊं।
लफ़्ज़ों की अदायगी तुमसे सीखी है।
तुम्हारे बिन लफ़्ज़ों हर लाईन फीकी है।
वो दर्द प्यार वो उन्माद कहा से लाऊँ।
तुम मेरी किताब हो तुम्हे कहाँ सजाऊँ।
तुमको लिखूँ पढू या तुम्हे भूल जाऊँ।
जीवन थम गया चौराहे पे गाड़ी की तरह।
हम हुये बैरंग खाली हाथ गाढ़ी की तरह।
जिसमे बस दर्द ही दर्द है किसको दिखाऊँ।
तुम मेरी किताब हो तुम्हे कहाँ सजाऊँ।
तुमको लिखू पढू या तुम्हे भूल जाऊँ।
विनोद शर्मा वत्स