Himachalपाठकों के लेख एवं विचार

“*बंद मुठी सा था इश्क मेरा” लेखक; विनोद शर्मा वत्स*

 

1 Tct

“*बंद मुठी सा था इश्क मेरा” लेखक; विनोद शर्मा वत्स*

Tct chief editor

 

बंद मुठी सा था इश्क मेरा

बंद मुठी सा था इश्क मेरा।
खोलने से डरता था मुठी
बिखर ना जाये इश्क मेरा।
बंद मुठी सा था इश्क मेरा।—-

उसकी यादों का दीवान है दिल मे मेरे
उसका हर वर्क़े बताता कि वो थे मेरे।
अब नही वो नही दीवान ए वर्क़े मेरा।
बंद मुठी सा था इश्क मेरा।
खोलने से डरता था मुठी
बिखर ना जाये इश्क मेरा।

हक़ जताऊं मैं इश्क पर अपने
होगी बदनामी टूटेंगे सारे सपने
वो मेरा इत्र मेरा फूल मेरी चाहत था
सूने गलियारे में प्रेम की आहट था
लुट गई रात छिन गया सवेरा मेरा।
बंद मुठी सा था इश्क मेरा।
खोलने से डरता था मुठी
बिखर ना जाये इश्क मेरा।—–

उसकी हर शै में वो नज़र आती है।
उसकी तस्वीर आँसुओ से बन जाती है
वही तस्वीर वही अक्स अब मेरा है।
उसकी यादों का चारो तरफ घेरा है।
वक़्त ही तोड़ेगा ये भरम मेरा।
बंद मुठी सा था इश्क मेरा।
खोलने से डरता था मुठी
बिखर ना जाये इश्क मेरा।—–

दर्द की धूप में इश्क का आँचल था।
वो मेरी रूह से चिपटा काँचल था।
उसका हर पल हर सोच नजूमी थी
उससे मिलके इश्क की इमारत चूमी थी
वक़्त ने छीन लिया मुक़द्दर मेरा।
बंद मुठी सा था इश्क मेरा
खोलने से डरता था मुठी
बिखर ना जाये इश्क मेरा।

विनोद शर्मा वत्स

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button