Editorial

Editorial :*क्या ग्रीन ट्रिब्यूनल या अन्य विभाग जो पेड़ों को काटने के लिए अनापत्ति देने के लिए जिम्मेवार हैं उन्हें इजाजत देने के लिए समय सीमा में नहीं बांध देना चाहिए?*

 

क्या ग्रीन ट्रिब्यूनल या अन्य विभाग जो पेड़ों को काटने के लिए अनापत्ति देने के लिए जिम्मेवार हैं उन्हें इजाजत देने के लिए समय सीमा में नहीं बांध देना चाहिए ?

या इसके द्वारा दी जाने वाली अनापत्ति को समयवध नहीं किया जाना चाहिए?
क्योंकि एक नहीं भारत के हजारों प्रोजेक्ट सिर्फ दो-चार 6 या 10 पेड़ों की वजह से रुके पड़े होंगे। अभी पालमपुर में ही होटल टी बड के पास की तस्वीरें शेयर कर रहा हूं जहां पर पुराने पज्जे ओई के गले सड़े हुए पेड़ों की वजह से सड़क की चौड़ाई 4 फुट कम कर दी गई है ।
इसमें पीडब्ल्यूडी का कोई दोष नहीं क्योंकि आप आदमी का गला तो काट सकते हो पेड़ नहीं काट सकते😪 अगर यह पेड़ वहां से हटा दिए जाते पीडब्ल्यूडी के हाथ नहीं बंधे होते तो यहां पर सड़क 4 फुट चौड़ी हो जाती । और यह जो पेड़ है यह सड़क पर इतने झुके हुए हैं कि अगर किसी कार पर गिर जाए या किसी स्कूटर बाइक वाले पर गिर जाए तो बचना मुश्किल है ।परंतु यह परंतु यह इंडिया है यहां पर इंसान की जान की कीमत कुछ नहीं पेड़ की जान की कीमत अधिक है आप इंसान का गला काट सकते हो परन्तु एक छोटा सा पेड़ नहीं काट सकते ।एक पेड़ के लिए चाहे हमें कितनी ही जिंदगियां क्यों ना गंवानी पड़े ।

आज स्थिति यह है सड़क किनारे खड़े गले गले सड़े तथा खतरनाक ढंग से झुके हुए पेड़ों को आप हाथ नहीं लगा सकते चाहे उस पेड़ की वजह से 10 20 लोग मर जाएं। परंतु प्रशासन और शासन के हाथ इतने बंधे होते हैं कि वह उस पेड़ को काटने की इजाजत नहीं दे पाते ।वह भी वह अपनी जगह ठीक है अगर उन्होंने किसी पेड़ को काटने की इजाजत दे दी तो उन्हें 10 तरह के जवाब देने पड़ेंगे की पेड़ क्यों काटा। एनजीटी वाले आ जाएंगे या कोई और पर्यावरणविद आ जाएंगे प्रश्नावली लेकर या कोई आंदोलन भी छोड़ देंगे?
ऐसे पर्यावरण को क्या करना जिसमें इंसान की जान चली जाए परंतु पेड़ ना कटे ।
पालमपुर यूनिवर्सिटी के आसपास देखिए कितने पेड़ हैं इतने भारी भरकम पेड़ हैं अगर वह बस पर गिर जाए तो कम से कम 15-20 लोग मर जाएंगे उस हादसे में ।
ऐसा ही हाल ग्रैंड प्लाजा के पास है वहां पर पेड़ लगभग 120 डिग्री से भी ज्यादा झुके हुए हैं अगर वह वहां पर किसी कार पर गिर जाए तो तीन चार लोग मर जाएंगे बस पर गिरे तो आठ 10 लोग मर जाएंगे परंतु पेड़ नहीं काटना चाहिए 10 लोग बेशक मर जाएं 😪कितना गला सड़ा कानून है हमारा। यह कि पेड़ की कीमत ज्यादा है इंसान की कीमत कुछ नहीं ।
यह जो पेड़ खड़े हैं यह कोई देवदार के पेड़ नहीं है कि यह बहुत कीमती है ।यह केवल फ्यूलवुड के पेड़ हैं और वह भी कोई नहीं पूछता। यहां तक की है श्मशान घाट में भी इस्तेमाल नहीं किए जाते।
सरकार को चाहिए कि वह शासन प्रशासन के हाथ खोलें उन्हें इतनी पावर दे कि उन पेड़ों को जो खतरनाक ढंग से सड़कों पर खड़े हैं या उन पेड़ों को जिनकी वजह से प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं काटने की इजाजत दें ताकि लोगों की कीमती जान बच सके और विकास की गति को बढ़ाया जा सके ।अगर एक प्रोजेक्ट किसी एक क्लीयरेंस की वजह से रुके रहते है तो उससे करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान होता है ।एक तो प्रोजेक्ट की कॉस्ट बढ़ती है दूसरे उस में जिन लोगों को रोजगार मिलना होता है वह समय से नहीं मिल पाता। और सरकार को करोड़ों रुपए क्या राजस्व का घाटा होता है इनडायरेक्ट एंप्लॉयमेंट भी नहीं मिल पाती हां सरकार को यह चाहिए कि अगर एक पेड़ कटता है तो उसकी जगह तीन या चार पेड़ लगाए जाएं। अगर 3 या 4 पेड़ लगाए जाएंगे तो उस एक पेड़ की जगह कम से कम एक पेड तो जीवित रह जाएगा ना।
परंतु सोचे कौन ?
अभी यही हाल आवारा तथा जंगली पशुओं का बारे में भी है। जिसके बारे में फिर कभी चर्चा की जाएगी।

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