पहाड़ो का चाँद
पहाड़ो की मुंडेरों से ताक रहा है चाँद।
कभी मुस्कुराता
कभी छिप जाता है चाँद।
ठीक उस दुल्हन की तरह
जो पहली रात को शरमाती है
अपने पिया के सामने।
फिर बेशर्म हो जाती है
अपने पिया के सामने।
और
अपने नूर से जगमगा देती है
अपने पिया की बंजर धरती
ठीक, आज वैसे ही
इतरा रहा है नैनीताल का चाँद
और अपनी रोशनी से,
नहला रहा है पूरे नैनीताल को,
झील को, मैदान को,
प्यार करने वाले जोड़ो को,
और देखो कैसे चिढ़ा रहा हैं चाँद
झाँक रहा है चाँद
पहाड़ो से ताक रहा है चाँद
याद दिला कर किसी की
आज रुला रहा है चाँद
आज रुला रहा हैं चाँद
मुस्कुरा रहा हैं चाँद।
देखो कैसे पहाड़ो से ताक रहा है चाँद
ताक रहा है चाँद।
विंनोद शर्मा वत्स