Nepotism / feminism in Indian politics; *परिवारवाद_कांग्रेस_और_कमलेश_ठाकुर_की_राजनीति_में_एंट्री* :लेखक महेंद्रनाथ सोफत पूर्व मंत्री
Nepotism / feminism in Indian politics
20 जून 2024– (#परिवारवाद_कांग्रेस_और_कमलेश_ठाकुर_की_राजनीति_में_एंट्री)–
पिछले कल मेरे ब्लॉग मे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुख्खू की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर की राजनीति मे एंट्री के साथ उन्हे देहरा उपचुनाव मे कांग्रेस पार्टी का प्रत्याशी बनाए जाने पर चर्चा की गई थी। मेरे ब्लॉग पर टिप्प्णियाँ करते हुए कई पाठकों ने कमलेश ठाकुर को टिकट देने को परिवारवाद से जोड़कर आलोचना की है। मेरी समझ मे हालांकि यह बात ठीक है कि कमलेश ठाकुर को टिकट केवल एक योग्यता के चलते ही मिला है कि वह मुख्यमंत्री जी की धर्मपत्नी है, लेकिन कांग्रेस नेताओं की परिवारवाद को लेकर आलोचना करना निरर्थक है, क्योंकि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आर जे डी और डी एम के जैसी पार्टियों की संस्कृति का परिवारवाद एक अभिन्न अंग है। स्मरण रहे कांग्रेस का नेतृत्व ही गांधी परिवार कर रहा है। यह बात काबिलेगौर है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व मे तीन नेता गांधी परिवार से है। सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की चेयरपर्सन है, प्रियंका गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और राहुल गांधी कांग्रेस सुप्रीमो है। सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा की सांसद है और राहुल गांधी रायबरेली से लोकसभा के सांसद है। मिडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रियंका गांधी को वायनाड से सांसद बनवाने की तैयारी हो चुकी है। अगर वह जीत कर आती है तो एक ही परिवार के तीन सांसद संसद मे होगें।
हिमाचल कांग्रेस मे भी परिवारवाद नया नहीं है। कुछ लोग यह कह कर आलोचना कर रहे है कि अगर कमलेश ठाकुर उपचुनाव जीती तो पहली बार पति-पत्नी विधानसभा के एक साथ सदस्य होगें। स्मरण रहे कांग्रेस के सौजन्य से ही पहली बार पिता-पुत्र विधानसभा के सदस्य रह चुके है। इस छोटे प्रदेश मे ही मां सांसद और बेटा विधायक रह चुका है। उदाहरण तो भाजपा मे भी है जब प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे तो अनुराग ठाकुर सांसद थे। मेरे विचार मे परिवारवाद के मामले मे भाजपा का दामन भी पुरी तरह तो साफ नहीं है। यहां भी अपवाद ढूंढे जा सकते है, लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से रिकॉर्ड अच्छा और बेहतर है। लालकृष्ण अडवानी और शांता कुमार जैसे नेताओं ने परिवारवाद को कभी प्रोत्साहित नहीं किया है। शांता कुमार जी का उदाहरण अनुकरणीय है। 1990 का एक समय ऐसा था कि जब वह एक ही समय मे कांगडा के सांसद,पालमपुर और सुलह के विधायक थे। उन्हे अपनी संसद और विधान सभा की एक सीट खाली करनी थी। उनपर उनके शुभचिंतको और समर्थकों का दबाव था कि वह एक सीट पर टिकट अपने बेटे या पत्नी को दें, लेकिन क्योंकि शांता कुमार सैध्दांतिक रूप से राजनीति मे परिवारवाद के खिलाफ है वह अपने समर्थकों के दबाव में नहीं आए थे। मुझे लगता है कि भाजपा देहरा उपचुनाव मे परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करेगी। उसे इसमे कितनी सफलता मिलती है और यह मुद्दा मतदाताओं को कितना प्रभावित करता है यह देखना दिलचस्प होगा।
#आज_इतना_ही।