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*तुम_और_एक_कली_दो_पत्तियां #हेमांशु_मिश्रा*

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#तुम_और_एक_कली_दो_पत्तियां

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#हेमांशु_मिश्रा

चाय की चुस्की के साथ
बादलों को
चाय के बगीचे में
झूमते गरजते बरसते
देख रहा हूं।

वहीं दूर एक कोने में
ऊँचे ऊँचे दरख्तों की
ओट में भीगी सी
तुम
पूछ रही हो
चाय की कोंपलों से
उनकी खूबसूरती का राज़

तभी बारिश में नहाई
चाय की एक कोमल सी कली
यूँ ही
तुम से ही पूछ बैठी
तुम्हारी ही
खूबसूरती का राज़

कनखी से देखी थी
तुम्हारी
मन्द सी मुस्कान
वो झुकी हुई नज़रे
सुना था
तुम्हारा उत्तम सा विचार
धीरे से
होले से जब
तुमने कहा था
सूरत, सीरत, अदब, सलीका
चरित्र, नज़ाकत, अदावत,
संयम, सम्मान और अनुशासन
इन सबका जोड़ ही
है खूबसूरती
देखने वाले की
नज़रों में ही
है खूबसूरती

तुम्हारा चाय से संवाद
अब रोमांचक हो उठा था
हर चाय के पौधे से
महक रही थी
भीनी भीनी खुशबू
और
चाय बागान में
इतरा रही थी
तुम और एक कली दो पत्तियां
बारिश की बूंदों से
हरियाली ओढ़े
शरमा रही थी
तुम और एक कली दो पत्तियां

एक दूसरे को
सरहा रही थी
तुम और एक कली दो पत्तियां
प्रकृति के रंग में
घुलमिल कर
बारिश मे भीगी
खूबसूरत लग रही थी
तुम और एक कली दो पत्तियां

 

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