*”अपमानित”* *लेखक विनोद शर्मा वत्स मुंबई*
अपमानित)
अपमान का घूंट पिया मैने द्वापर के पल को जिया मैने।
तुझको भी किया था अपमानित वही दर्द आज सहा मैने।
तू कब तक करेगा अपमानित कौरव की भरी सभाओं में।
क्यों डाल रखी किस्मत में दुख तकलीफ मेरी राहों में।
मेरा प्रारब्ध क्या इतना बुरा जितना कल दर्द सहा मैने।
तुझको भी किया था अपमानित वही दर्द आज सहा मैने।
तू कृष्ण है मैं कृष्ण नही मुझमें तुझ जैसा सब्र नही।
तुझको भगवान सब कहते मैं तेरे चरणों की रज भी नही।
जो दर्द सहा दिल ने भगवन उसका दृष्टांत कहा मैने।
तुझको भी किया था अपमानित वही दर्द आज सहा मैने।
कल शकुनि शिखंडी दर्योधन और द्रोण जैसे भी बेठे थे।
दुख तो इस बात का है भगवन काक भुसन्ड भी ऐंठे थे।
अपराध मेरा बस इतना था कि चोर को चोर कहा मैने।
तुझको भी किया था अपमानित वही दर्द आज सहा मैने।
सच हारा था द्वापर में कलयुग में भी सच हार गया।
वहा द्रोपदी शरण मे थी तेरी फिर मैंने क्या अपराध किया।
कल मेरे अस्तित्व का चीर हरण आंखों ने सहा
कहा मैने।
तुझको भी किया था अपमानित वही दर्द आज सहा मैने।
प्रारब्ध बुरा या मैं हूँ बुरा लेकिन अब कुछ करना होगा।
कलयुग के करुक्षेत्र में कृष्णा शिशुपाल को दंड देना होगा।
शिशुपाल मार या शकुनि इनके बाणों को सहा मैने।
तुझको भी किया था अपमानित वही दर्द आज सहा मैने।
विनोद शर्मा वत्स