*अंधविश्वास_जादू_टोना_का_समाज_से_उन्मूलन_जरूरी*


4 अगस्त 2024–(#अंधविश्वास_जादू_टोना_का_समाज_से_उन्मूलन_जरूरी)–

हालांकि हमारे देश मे शिक्षा का दायरा बढ़ा है, लेकिन फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि हमारा समाज अंधविश्वास या जादू-टोना जैसी कुरीतियों से पुरी तरह मुक्त है। आज भी आपको ऐसे विज्ञापन देखने को मिल जाएगें जिसके माध्यम से पाखंडी लोग भोले-भाले लोगो को जादू- टोना, तंत्र-मंत्र और तांत्रिक अनुसंधान के नाम पर ठगने लिए अपने जाल मे फंसाने की कोशिश करते है। असल मे लोग इतने कमजोर है कि वह अपनी परेशानियो से निकलने के लिए शॉर्ट कट रास्ता ढूँढने के चक्कर मे इन ठगों के चक्कर मे आ जाते है। एक आंकलन के अनुसार महिलाएं इन ठगों का असानी से शिकार हो जाती है। हालांकि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंधविश्वास, जादू- टोना और इसी प्रकार की अन्य प्रथाओ के उन्मूलन के लिए केंद्र और राज्यों को उचित कदम उठाने के निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर अपनी चिंता प्रकट करते हुए कहा कि अंधविश्वास को खत्म करने का एक मात्र मार्ग शिक्षा है।
चीफ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि ऐसे मामले मे अगर कुछ और करने की जरूरत है तो संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए। पीठ ने कहा कि हमारे हस्तक्षेप की इसलिए जरूरत नहीं है क्योंकि वैज्ञानिक सोच विकसित करने और अंधविश्वास को खत्म करने के लिए कदम उठाने के लिए इसे संविधान निर्माताओं द्वारा राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतो मे शामिल कर रखा है। मेरी समझ मे राजनिति की चकाचौंध के चलते राजनेताओ की तो कमी नहीं है, लेकिन विवेकानंद, राजा राममोहन राय, दया नंद सरस्वती, ईश्वर चंद्र विधासागर और ज्योति राव फूले जैसो की तर्ज पर समाज को जागरूक करने वाले , अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ सामाजिक आन्दोलन खड़ा कर अभियान चलाने वाले समाजिक नेताओं की प्रजाति लुप्त होती जा रही है। इस प्रकार के काम मे समाजिक नेताओं की भूमिका सुप्रीम कोर्ट और संसद से भी अधिक बड़ी और महत्वपूर्ण हो सकती है।
#आज_इतना_ही।