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*सरकार की कार्यशैली पर लेखक डॉ लेख राज शर्मा के विचार*

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संपादक महोदय ! ट्राइसिटी मीडिया , पालमपुर
महोदय , नमस्कार
मैं आपका ध्यान सरकार के उन फैसलों की ओर दिलाना चाहूंगा जो या तो नीतिपूर्वक नहीं हैं या फिर जल्दबाजी में लिए जा रहे हैं और सभी फैसले या घोषणाएं या तो शुल्क बढ़ाने के विषय में हैं या बंद के विषय में , जैसा कि अभी हाल ही में कई स्कूलों को मर्ज ( समाहित ) किया गया, ये फैसला कितना इनको व्यवहारिक क्यों लगा ? इसके विषय में इनको कोन सा लाभ दिखाई दिया , इससे केवल बच्चे या उनके अभिभावक ही प्रभावित हुए , कैसे ? क्योंकि अब सभी सरकारी स्कूलों की अपनी इमारतें हैं, कहने का मतलब कोई किराया नहीं , अध्यापक लोगों को भी किसी दूसरे स्कूल में एडजस्ट किया उनकी सैलरी तो देनी ही पड़ेगी , ज्यादा से ज्यादा बिजली का बिल ही बचा और बंद इमारत को कितना नुकसान होगा इसका अंदाजा सहज में लगाया जा सकता है तो लाभ कोई नहीं और गाज किस पर गिरी बच्चों पर , सीमेंट की दरें बढ़ा दीं इसका सीधा फायदा सीमेंट कंपनी को और नुकसान आम जनता को क्योंकि अपना घर सभी का सपना होता है और अपनी पहुंच अनुसार सभी अपने लिए आशियाना बनाते हैं तो कई बेचारे मेटीरियल की बढ़ती कीमतों के डर के मारे इस सपने से वंचित होते ही नही निराश दिखते हैं, डीजल के रेट का बढ़ना भी प्रत्यक्ष रूप से जनता के ऊपर मारहै एक भार है , बिजली की सब्सिडी को छीनने का तरीका थोड़ा उचित जान पड़ता है क्योंकि तीन सो यूनिट आम आदमी नहीं जला पाता है और अब एक और फरमान जारी किया गया जो पानी की बढ़ती दरों पर है जिसमें ये दर्शाना जरूरी है कि सौ रुपए प्रति माह प्रति नलका है या प्रति कनेक्शन क्योंकि लगभग एक कनेक्शन से ही आगे अपनी सुविधानुसार कस्टमर आगे टंकी या ब्रांच निकालकर कनेक्शन बढ़ा लेता है और अगर इसको प्रति नल गिना जाता है तो ये सरासर एक लूट होगी उसके बाद एक फरमान और भी कि पानी के लिए मीटर लगेंगे जो ग्राहक को अपनी ओर से लगवाना पड़ेगा और अगर मीटर खराब होता है तो 475 रुपए सीधे ही बिल वसूल किया जाएगा ये एक तानाशाही फरमान है , अब्बल तो एक कंज्यूमर को मीटर लगाने को क्यों विवश किया जा रहा है और सबसे बड़ी विडंबना देखिए मीटर खराब होने पर बिल सीधा ही 475 रुपए भरना होगा , अब्बल तो मीटर की कोई जरूरत ही नहीं ये 81 या 82 में भी लागू हुई और बुरी तरह से असफल रही फिजूल में हमारा खर्चा करवाया और मीटर चले ही नहीं और अगर सुक्खू सरकार लगवाना ही चाहती है तो इसका बोझ कंज्यूमर की जेब पर ही क्यों ये जिमेवारी सरकार ले और अगर मीटर खराब होता है तो कंज्यूमर किस कारण 475 रुपए भरे ये पैसा मीटर लगाने बाली कंपनी भरे खराब होने में कंज्यूमर का क्या दोष बस यही न कि मीटर लगाने बाली कंपनी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी को कुछ तो लाभ पहुंचाया होगा तभी तो मीटर खराबी पर सीधी सजा ग्राहक को दी जाएगी , हम गांव वासी हैं हम फिजूल में 475 रुपए दंड क्यों भरे वो भी बिना किसी कसूर के और अब हर घर में गाड़ी है और अगर कोई अपनी गाड़ी धोने के लिए वाशिंग प्वाइंट रखवाना चाहता है आप वहां मीटर का प्रावधान रखें , सरकार हमारी कूहलें फिर से दरुस्त कर चालू करे क्योंकि हम गांववासियों ने दुधारू पशु भी रखे हैं और उनको पानी पिलाने का साधन केवल नल ही बचा है और गाय या भैंस एक बार में एक गिलास पानी नहीं पीती छे से दस लीटर कम से कम और जरा सोचिए जो पालक खरीद कर पानी पिलाएगा तो वो जानी सी बात है दूध का रेट भी बढ़ाएगा ही , आम जनता को मत मारो सरकार इस किलोलीटर में पानी बेचने के चक्कर में पड़ कर भोली भाली जनता को दुखी मत करो सरकार , हां, एक बात में लिखना चाहता हूं अगर सौ रुपए प्रति कनेक्शन होता है तो हम गांववासी फायदे में रहेंगे क्योंकि हमारे से साल का बिल 1650 रुपए लिया जाता है जो अब केवल 1200 रुपए बनेगा कहने का मतलब लगभग 48 रुपए प्रति माह घटे और इसके लिए मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा भी था कि हम गांववासियों को किस बात की सजा शहरी क्षेत्र का बिल 650 रुपए वार्षिक और हम गांववासियों का 1650 रुपए वार्षिक और हां गांव में लोगों ने समिति बना कर जिन हैंडपंपों को विद्युतीकृत करवाया है उनकी दरें कमर्शियल नहीं घरेलू दर से बिल बनाए जाएं

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