Editorial:- लेखक महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री : सुख की सरकार को आत्म विश्लेषण की दरकार*
सुख_की_सरकार_अपना_मुल्यांकन_करें


25 सितंबर 2024- (#सुख_की_सरकार_अपना_मुल्यांकन_करें।)–

जबसे सुखविंदर सिंह सुख्खू के नेतृत्व मे हिमाचल सरकार बनी है इसको सुख की सरकार कह कर परिभाषित किया जा रहा है। इस का भावार्थ है कि ऐसी सरकार जिसमे सभी सुखी और खुश है। कांग्रेस की सरकार को हिमाचल मे बने लगभग दो वर्ष हो गए है। अब समय आ गया है कि सरकार ईमानदारी से एक सर्वे कर अपनी कार्यशैली का मुल्यांकन करें कि सुख की सरकार अपने नागरिको को कितना सुख प्रदान करने मे सफल रही है। वह अपने उन निर्णयो का भी अवलोकन करे जो उन्होने इस दौरान लिए है। याद रहे सरकार बनते ही वह सारे संस्थान बंद कर दिए गए जो पूर्व भाजपा सरकार ने खोले थे, जबकि मेरी समझ मे यह निर्णय एक विस्तृत समीक्षा के बाद गुण-दोष के आधार पर लेना चाहिए था इसके अतिरिक्त हिमकेयर स्वास्थ्य योजना भी बंद के कगार पर है। सरकार ने डीजल पर 6 रूपए वैट बढ़ा कर अप्रत्यक्ष रूप से मंहगाई मे इजाफा कर दिया। स्टंप और हर तरह की रजिस्ट्रेशन फीस बढ़ा दी गई। ग्रामीण क्षेत्रों मे मिलने वाले पानी की कीमतें भी बढ़ा दी गई। पिछले कुछ समय मे ही हिमाचल मे सीमेंट के दाम 25 रूपए बैग बढ़े थे और अब एक बार फिर 10 रूपए प्रति बैग बढ़ने जा रहा है। भाजपा के समय जब सीमेंट के दाम बढ़ते तो प्रदेश के वर्तमान उप-मुख्यमंत्री मुखरता से आलोचना करते थे। अब सरकार ने बिजली पर मिलने वाली एक रूपए प्रति यूनिट की सब्सिडी समाप्त कर दी है और यह निर्णय घरेलु उपभोक्ताओं के अतिरिक्त उद्योगों पर भी लागू होगा। इस निर्णय से उद्योग जगत मे हडकंप मच गया है।
प्रतिष्ठित दैनिक की रिपोर्ट के अनुसार बड़े उद्योगों को मिलने वाली बिजली की दर अब 7.50 रूपए प्रति यूनिट हो गई है, जबकि अखबार के अनुसार यह दर पंजाब मे 7 रूपए यूनिट है। उद्योग जगत के प्रतिनिधियों का कहना है कि उत्तराखंड मे 20 पैसे और हरियाणा मे 80 पैसे यूनिट बिजली सस्ती है। जम्मू-कश्मीर मे बिजली का रेट 5 रूपए पर यूनिट बताया जा रहा है। उद्योगों मे जबरदस्त प्रतिस्पर्धा होती है। बढ़े बिजली दरों के चलते उद्योगों के पलायन करने का खतरा बढ़ गया है। प्रदेश मे 25-30 बड़े स्टील प्लांट है, जिनका रॉ मैटीरियल ही बिजली है और हिमाचल मे बिजली की सस्ती दरे ही उन्हे हिमाचल मे उद्योग लगाने के लिए आकर्षित करती थी। यह सब कुछ प्रदेश की खस्ता वित्तीय स्थिति के चलते करना जरूरी बताया जा रहा है, लेकिन अगर यह उद्योग यहां से पलायन करते हैं तो अखबार की रिपोर्ट के अनुसार सरकार को 200 करोड़ रूपए का जीएसटी से मिलने वाले राजस्व का घाटा हो सकता है। यह बात सही है कि सुख की सरकार वित्तीय संकट के चलते विचलित है और वह इससे निपटने के लिए चारो तरफ हाथ-पांव मार रही है, लेकिन मेरी समझ मे सरकार के हाथ-पांव मारने की दिशा सही नही है। कथन है कि संकट मे अपना विवेक नही खोना चाहिए अपितु विवेक से काम लेना चाहिए। सरकार अपने निर्णयो की समीक्षा करे और इन दो सालो मे क्या खोया और क्या पाया है इसका मुल्यांकन करे और ईमानदारी से देखे क्या हिमाचल की कांग्रेस सरकार सुख की सरकार कहलाने की हकदार है या नहीं।
#आज_इतना_ही।