भाजपा_दूसरे_दलों_के_नेताओ_को_प्रवेश_तो_दे_रही_है_लेकिन_उन्हे_संभाल_नही_पा_रही
8 अक्तूबर 2024-(#भाजपा_दूसरे_दलों_के_नेताओ_को_प्रवेश_तो_दे_रही_है_लेकिन_उन्हे_संभाल_नही_पा_रही)–
कभी भाजपा और उसकी पूर्ववर्ती पार्टी जनसंघ प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की कैडर पार्टी हुआ करती थी। कार्यकर्ता भी अपने विचार के प्रति प्रतिबद्ध, अनुशासित और पार्टी के प्रति समर्पित हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ और सत्ता के लिए शॉर्ट कट रास्ता अपनाते हुए भाजपा ने दूसरे दलों के नेताओ के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। यहां तक लोकसभा चुनाव से पहले दूसरे दलो के लोगो को भाजपा मे लाने के लिए भाजपा नेता विनोद तावडे के नेतृत्व मे एक विशेष कार्यदल का गठन भी किया गया था। खैर दूसरे दलो से वह महत्वाकांक्षी नेता जिनकी महत्वकांक्षा अपने दल मे पूरी नहीं हो रही थी वह भाजपा आए और भाजपा ने भी उनमे से अधिकांश को पुरस्कृत भी किया, लेकिन इन अवसरवादी नेताओं का शीघ्र ही मोह भंग होने लगा और नये अवसर की तलाश मे भाजपा छोड़ने लगे।
आज हरियाणा के विधानसभा के चुनाव परिणाम आने जा रहे है। दिन तक स्थिति साफ हो जाएगी कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की जनता ने किसे जनादेश दिया है। मेरा ब्लॉग आज केवल हरियाणा मे दूसरे दलो मे भाजपा आए नेताओं की समीक्षा कर रहा है। सबसे पहले हरियाणा कांग्रेस के कद्दावर नेता बीरेन्द्र सिंह भाजपा मे आए। भाजपा ने उन्हे केन्द्रीय मंत्री बनाया और उनकी पत्नी को हरियाणा मे विधायक बनाया, फिर उनके बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार से लोकसभा की टिकट दी और वह सांसद बने। अब चौधरी बीरेन्द्र सिंह अपने परिवार सहित कांग्रेस मे लौट गए है। हरियाणा के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर कांग्रेस छोड़कर पहले टी.एम.सी मे गए फिर वहां से आम आदमी पार्टी मे आए और उसके बाद भाजपा ने उन्हे प्रवेश ही नहीं दिया अपितु लोकसभा चुनाव मे सिरसा से टिकट भी दी, लेकिन अब विधान सभा चुनाव मे वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस मे लौट गए है। उनकी कांग्रेस वापिसी की कहानी इसलिए दिलचस्प है कि वह दिन एक बजे तक भाजपा का प्रचार कर रहे थे और दो बजे विपक्ष के नेता राहुल को मिल कर कांग्रेस मे शामिल हो गए।
इसी प्रकार 2024 लोकसभा चुनाव से पूर्व नवीन जिंदल भाजपा मे शामिल हुए उन्हे टिकट दिया और वह सांसद बने, लेकिन अब उनकी माता सावित्री जिंदल हिसार विधान सभा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रही है। चौधरी देवीलाल के सपुत्र रणजीत सिंह निर्दलीय चुनाव जीते उन्हे खट्टर सरकार मे मंत्री पद दिया गया, फिर हिसार से लोकसभा चुनाव मे टिकट दिया गया और अब वह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे है। मेरी समझ मे आने वाले बिना वैचारिक प्रतिबद्धता वाले कार्यकर्ताओ और नेताओ का पार्टी मे आना और फिर चले जाना पार्टी को भारी पड़ सकता है। पार्टी को अपनी उस निति को जिसके अंतर्गत दूसरे दलो के नेताओ के लिए अपने दरवाजे और खिडकियां दोनो खोल रखे का पुनर्विलोकन करना होगा।
#आज_इतना_ही।