Editorial *पत्रकार चंद्राकर की हत्या: सच की आवाज को दबाने की साजिश। निडर पत्रकारिता पर बढ़ता खतरा और लोकतंत्र के लिए चेतावनी*
निडर पत्रकारिता पर बढ़ता खतरा और सुरक्षा की चुनौती
पत्रकार चंद्राकर की हत्या: लोकतंत्र पर एक और आघात
पत्रकारिता, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, आज एक बार फिर क्रूरता का शिकार हुई है। पत्रकार चंद्राकर की हत्या ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे पत्रकारिता जगत को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि हमारे समाज में सच को उजागर करने की कीमत कितनी भारी हो सकती है।
चंद्राकर एक निडर और निर्भीक पत्रकार थे, जिन्होंने हमेशा सत्य के पक्ष में आवाज उठाई। उनकी रिपोर्टिंग ने कई बार सत्ता के गलियारों में हलचल मचाई थी। वह अपने काम के प्रति समर्पित थे और समाज में हो रहे अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने से कभी नहीं कतराते थे। उनकी हत्या से यह साफ जाहिर होता है कि कुछ ताकतें सच को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे देश में पत्रकार सुरक्षित हैं? क्या उनके पास सच लिखने और बोलने की स्वतंत्रता है? पिछले कुछ वर्षों में, हमने देखा है कि जो पत्रकार भ्रष्टाचार, अपराध, और अन्याय के खिलाफ लिखते हैं, उन्हें धमकाया जाता है, उन पर हमले होते हैं, और कभी-कभी उनकी जान भी ले ली जाती है। यह एक बेहद चिंताजनक स्थिति है, जो यह दिखाती है कि हमारे लोकतंत्र में स्वतंत्र पत्रकारिता कितनी खतरनाक होती जा रही है।
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इस हत्या की निष्पक्ष जांच करवाएं और दोषियों को सख्त से सख्त सजा दें। इसके साथ ही, पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। यह जरूरी है कि पत्रकार बिना किसी डर के अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें, ताकि वे समाज के सामने सच ला सकें।
चंद्राकर की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है; यह हमारे लोकतंत्र और हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि चंद्राकर जैसे पत्रकारों की आवाज़ें कभी खामोश न हों। उनकी शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। हमें उनकी याद में सच के लिए लड़ाई जारी रखनी होगी।
सम्पादकीय टीम, ट्राई सिटी टाइम्स