*सिविल अस्पताल पालमपुर में लंच टाइम पर अनुशासन की कड़ी सख्ती* अनुशासन या असंवेदनशीलता या फिर अमानवीयता?
मरीजों का कहना है कि अस्पताल में कर्मचारियों का रवैया ऐसा है जैसे बाहर खड़े मरीज भिखारी हों। मरीजों से सम्मानजनक व्यवहार की उम्मीद करना भी मुश्किल हो गया है। मरीज के साथ सहानुभूति या शालीनता तो छोड़िए उन्हें दुर्व्यवहार सहना पड़ता है
*सिविल अस्पताल पालमपुर में लंच टाइम पर अनुशासन की कड़ी सख्ती*
अनुशासन या असंवेदनशीलता या फिर अमानवीयता?
पहले सरकारी बैंकों में लंच टाइम पर तंज होता था। आज हॉस्पिटल में भी लंच टाइम पर सख्ती देख कर हैरानी हुई। यहां के लोग इतने अनुशासित कि 1 मिनट की देरी भी सहन नहीं करते यह देख कर हैरानी हुई। सरकारी डिस्पेंसरी यानी मेडिसिन काउंटर /आउटलेट पर काफी भीड़ थी जहां पर कोई अनुशासन नहीं ,महिलाओं की लाइन में जेंट्स और पुरुषों के लाइनों में महिलाएं बुजुर्ग सभी ऐसे खड़े थे जैसे कुंभ का मेला हो । परंतु यहां तक तो ठीक था यह जानकर और भी हैरानी हुई कि जहां सीनियर सिटीजन का काउंटर था उसे बंद कर दिया गया है वहां पर गत्ते चिपका दिए गए हैं, किसी सीनियर सिटीजन ने पूछा कि वह बंद क्यों किया तो उनका अंदर से बड़ा ही उग्र जवाब था मुझे नहीं पता ऊपर पूछो ।अब ऊपर का मतलब तो यह है कि ऊपर वाले से पूछो या यह जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको ऊपर जाना पड़ेगा। मतलब स्वर्ग जाना पड़ेगा ।
चलो यह भी हो गया एक बुजुर्ग ने अपनी पर्ची आगे खिसका दी उन्होंने कहा मुझे यह दवाई दे दीजिए तो अंदर से आवाज आई पीछे जो लाइन में जाकर लगो उन्होंने भी पूछ लिया कि बुजुर्गों की लाइन कहां है ,वह बुजुर्ग लाख कोशिश करते रहे परंतु उनकी एक नहीं सुनी।
एक युवा आगे आया कि आप मेरे नंबर पर जाकर दवाई ले लीजिए मुझे कोई एतराज नहीं है तब जाकर उनकी पर्ची अंदर की गई इसके पश्चात जैसे ही 1:30 हुए पर्दे चढ़ गए शो खत्म हो गया बाहर से एक अन्य बुजुर्ग ने कहा भाई अब तो आप 2:00 बजे आओगे मेरी तो दो दवाइयां है यह दे दो तो अंदर से जवाब था 1:31 हो गया है हम नहीं लंच भी करना है क्या???बात भी सही है लंच का टाइम 1:30 था और 1:31 हो गया था तो यह कैसे इतना सहन करते 1 मिनट की देरी कोई सहन नहीं करता भाई साहब ….यह कोई डॉक्टर जयदेश राणा उमेश कश्यप या प्रेम भारद्वाज नहीं है कि बैठे हैं लंच टाइम में भी और लंच कर रहे हैं 3:00 बजे। बैठे हैं 4:00 बजे के बाद भी और घर जा रहे हैं 6:00 बजे ।रात को कॉल आ जाए तो भी अवेलेबल है।और तो और डॉक्टर राणा तो सुबह ही अपने घर पर भी क्लीनिकल सजा लेते थे ।तो यहां तो 1 मिनट लेट हो गये। इतनी देरी कौन सहन करेगा ?लंच टाइम 1:30 है और पर्दा गिरा एक 1.31 पर तो आप बताइए इन लोगों को श्रम श्री का अवार्ड नहीं दिया जाना चाहिए कि इन्होंने अपने लंच टाइम में से 1 मिनट का समय किसी लाचार बूढ़े मरीज को या महिला को दिया ।
एक अन्य बुजुर्ग बाहर से बोलने लगे मैं दूसरी बार आया हूं पिछली बार भी दवाई लेने से रह गया था लेकिन अब यहां पर आधा घंटा इंतजार करूंगा तब तक शायद मेरे बस निकल जाएगी और मुझे तीसरी बार भी आना पड़ेगा । अब उनको कौन समझाए कि अरे भाई सरकारी सिस्टम है इसमें आप का इन्होंने ठेका थोड़े लिया है कि आपके बस निकल जाएगी तो यह अपना लंच 2 मिनट लेट कर दें। तो उन बुजुर्गों ने लाइन में लगे किसी आदमी से पूछ लिया पूछा कि सुबह भी ऐसे ही होता है किस? आने के समय में मैं भी टाइम देखा जाता है या सिर्फ जाने के समय में ही टाइम देखा जाता है ।
कुछ डॉक्टर तो इतने शालीन है कि वह मरीज की तरफ देखते भी नहीं सिर्फ आंखें फर्श में गड़ाये रहते हैं मरीज जो मर्जी बोले सुनते हैं दवाई लिख देते हैं ।
और जब बुजुर्गों के लिए हर जगह पर तरजीह दी जाती है तो सिविल अस्पताल में पता नहीं क्यों ऐसा नहीं होता ?
पर्ची के काउंटर पर चले जाइए वहां भी यही हाल अंदर से ऐसे जवाब आते हैं जैसे कि बाहर मरीज नहीं भिखारी खड़े हैं .और हम जैसे भिखारी की यह मजबूरी है कि उनकी बातें सुनकर भी हमें वहां पर खड़े होकर पर्ची बनवानी ही पड़ती है।
कहने को तो सिक्योरिटी का बहुत सिस्टम है परंतु जहां पर भीड़ होती है वहां पर कोई सिस्टम नहीं। महिलाओं की लाइन अलग होनी चाहिए बुजुर्गों की लाइन अलग होनी चाहिए शायद पहले ऐसा ही होता था परंतु अब ऐसा नहीं है। सुदेश सूद जी ने बताया कि किस खुशी में वह बुजुर्गों का काउंटर बंद कर दिया गया है? क्यों इन्हें ट्रेनिंग नहीं दी जा रही कि मरीज के साथ कैसे व्यवहार करना है क्यों यह किसी की मजबूरी नहीं समझते कि किसी की बस निकल जाएगी तो उसे कल फिर से दोबारा आना पड़ेगा या फिर उसे रात पालमपुर में ही गुजारनी पड़ेगी. अरे भाई जो आपके पास आता है वह मजबूरी में आता है आपकी जी हजूरी करने नहीं आता। शायद आपका यह फर्ज है कि आप मरीज से शालीनता और प्यार से बात करें प्यार ना सही शालीनता तो आपको सिखाई गई होगी ,यह हाल तब है जब यहां पर अस्पताल में सुभाष नर्सिंग कॉलेज की बहुत बड़ी सपोर्ट है ।
नर्सिंग स्टाफ का क्या हाल होता अगर सुभाष नर्सिंग कॉलेज की ट्रेनिंग छात्राएं यहां पर ना पढ़ रही होती ।क्या तब सिस्टम नहीं चलना था इन लोगों ने । हम तो सुभाष नर्सिंग कॉलेज की डायरेक्टर भुवनेश् सूद जी का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने यहां पर कॉलेज खोला और उनकी वजह से यहां पर नर्सिंग की सुविधा अच्छी न भी हुई हो तो भी सुधर तो गई है।
इसी तरह का एक और वाकया सामने आया है कि एक मरीज को डॉक्टर कश्यप ने एक लिखी लेकिन 4:00 बजने वाले थे 3:45 पर ECG एक रूम में गया वहां पर कोई नहीं था एक कमरे से दूसरे कमरे तक दौड़ाया गया 4:00 बजने से 5 मिनट पहले एक ECG करने वाली आई उसने हड़बड़ी में ECG किया जब मरीज ECG लेकर डॉक्टर के पास वापस गया और तो डॉक्टर कश्यप ने 4:30 पर कहा कि यह तो ECG बिल्कुल ही गलत कर दी गई है । TOTALLY उल्टी कर दी गयी थी शायद लीड गलत लगा दी गई थी। मैरिज लोगों को टेक्निकल में इतना उलझा दिया जाता है कि मरीज ठीक होने के बजाय यही समय सोचता है समझता है प्रार्थना करता है कि ऐसे इलाज से तो मर जाए तो अच्छा ।आप सोचिए अगर यह मरीज इसी ECG को लेकर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में चला जाता था उसकी शायद लॉटरी लग ही जाती।
धन्य हो प्रभु
क्या अस्पताल में बुजुर्गों और महिलाओं के लिए अलग काउंटर बनाए जा सकते हैं? क्या कर्मचारियों को मरीजों के साथ बेहतर व्यवहार की ट्रेनिंग दी जा सकती है? ये सवाल अब अस्पताल प्रशासन के सामने खड़े हैं।
क्या होगा सुधार?
सवाल उठता है कि क्या अस्पताल प्रशासन बुजुर्गों और जरूरतमंद मरीजों के लिए अलग काउंटर और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराएगा? क्या कर्मचारियों को मरीजों के साथ व्यवहार में सुधार के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा?