

क्या भारत में इच्छा मृत्यु की इजाजत होनी चाहिए?

इच्छा मृत्यु, जिसे euthanasia भी कहा जाता है, पर बहस लंबे समय से चल रही है। यह एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें कई नैतिक, कानूनी और मानवीय पहलू शामिल हैं। वर्तमान में भारत में इच्छा मृत्यु की अनुमति नहीं है, लेकिन बदलते समय और समाज में उभरते सवालों के चलते, इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
जब कोई व्यक्ति असहनीय पीड़ा में जी रहा हो और उसकी तकलीफ का कोई इलाज संभव न हो, तो क्या उसे अपनी मृत्यु का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? कई बार जीवन उस सीमा तक पहुंच जाता है, जहां व्यक्ति सिर्फ मृत्यु की प्रार्थना करता है। ऐसे में, इच्छा मृत्यु की अनुमति देना मानवता और दया का कार्य हो सकता है। यह एक ऐसा विकल्प हो सकता है, जिससे व्यक्ति अपने दुखद जीवन को सम्मानपूर्वक समाप्त कर सके।
अन्य देशों का अनुभव
नीदरलैंड्स, बेल्जियम और कनाडा जैसे देशों में इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता मिली हुई है। वहां इस प्रक्रिया को कानूनी और नैतिक रूप से नियंत्रित किया जाता है। इन देशों का अनुभव दिखाता है कि सही नियम और निगरानी के साथ, यह व्यवस्था लोगों की पीड़ा को कम करने में सहायक हो सकती है। इस विषय में कुछ नैतिक और सामाजिक चिंताएं भी होती हैं जिन्हें आवश्यक रूप से ध्यान में रखना चाहिए
हालांकि, भारत में इस विषय पर नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी गहरा विचार किया जाता है। कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं मृत्यु को ईश्वर की मर्जी मानती हैं और इसमें हस्तक्षेप को गलत ठहराती हैं। इसके अलावा, ऐसे कानूनों के दुरुपयोग की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता। कमजोर या वृद्ध लोगों को जबरन इच्छा मृत्यु की ओर धकेलने का खतरा बना रहता है, जिससे समाज में एक नई चुनौती खड़ी हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने आधुनिक चिकित्सा में कृत्रिम जीवन समर्थन हटाने (passive euthanasia) की अनुमति दी है, लेकिन सक्रिय इच्छा मृत्यु (active euthanasia) की अनुमति नहीं दी गई है। इस फैसले में न्यायालय ने यह माना कि कुछ परिस्थितियों में व्यक्ति को अपने जीवन को समाप्त करने का अधिकार दिया जा सकता है, बशर्ते यह कानूनी रूप से नियंत्रित हो।
यह विषय निस्संदेह गहन विचार और चर्चा की मांग करता है। सरकार और समाज को मिलकर यह तय करना होगा कि क्या भारत में इच्छा मृत्यु की अनुमति दी जानी चाहिए और यदि हां, तो इसे कैसे सुरक्षित और नैतिक रूप से लागू किया जा सकता है। आखिरकार, जब हम सुखी जीवन नहीं दे सकते, तो क्या हमें सुखद मृत्यु का अधिकार नहीं देना चाहिए?
इस विषय पर समाज के विभिन्न वर्गों और विशेषज्ञों की राय लेना और कानून को सही दिशा में विकसित करना आवश्यक है। इच्छामृत्यु के लिए यदि भारत में कानून बनाए जाते हैं, तो उन्हें स्पष्ट दिशा-निर्देशों और सुरक्षा उपायों के साथ लागू किया जाना चाहिए, ताकि इसका दुरुपयोग न हो और यह वास्तव में पीड़ित लोगों के लिए राहत का माध्यम बन सके।