editorial :- न्याय की देरी: एक निर्दोष का 24 साल लंबी कैद के बाद निर्दोष साबित होना एक चिंता का विषय
न्याय में देरी जांच व न्यायिक सुधार की आवश्यकता


editorial :- न्याय की देरी: एक निर्दोष का 24 साल लंबी कैद के बाद निर्दोष साबित होना एक चिंता का विषय

लखनऊ। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने गोंडा के जयमंगल यादव को 24 साल बाद निर्दोष करार दिया और उन्हें बरी कर दिया। यह फैसला न्यायिक प्रणाली में व्याप्त खामियों की एक गंभीर याद दिलाता है, जो कभी-कभी निर्दोष लोगों को दशकों तक जेल की सलाखों के पीछे रहने के लिए मजबूर कर देती है। इस मामले ने एक बार फिर न्याय की देरी को उजागर किया है, जो अंततः अन्याय के बराबर होती है।
न्याय की देरी, न्याय का अभाव
जयमंगल यादव का मामला न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण होने वाले नुकसान का प्रतीक है। उन्हें 1996 में कोल डिपो के मुंशी भगवती प्रसाद तिवारी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। निचली अदालत ने साक्ष्यों और तथ्यों की समुचित जांच किए बिना उन्हें दोषी करार दिया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लगभग ढाई दशक बाद, उच्च न्यायालय ने पाया कि पुलिस जांच और निचली अदालत की कार्यवाही में कई खामियां थीं, जिससे एक निर्दोष व्यक्ति को जेल में रहना पड़ा।
कमजोर जांच और न्यायिक लापरवाही
इस मामले में पुलिस की कमजोर जांच और निचली अदालत की लापरवाही ने जयमंगल यादव के जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। पुलिस ने साक्ष्यों का सही तरीके से संकलन नहीं किया और निचली अदालत ने साक्ष्यों का उचित परीक्षण किए बिना फैसला सुनाया। यह केवल जयमंगल यादव के लिए नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास के लिए भी एक बड़ा झटका है।
खोया हुआ समय और न्याय की कीमत
जयमंगल यादव के 24 साल जेल में बिताने के बाद उन्हें निर्दोष करार देना उनके खोए हुए समय की भरपाई नहीं कर सकता। यह सवाल उठता है कि क्या ऐसे मामलों में, जहां न्यायिक प्रणाली की विफलता के कारण निर्दोष लोगों को जेल में वर्षों बिताने पड़ते हैं, उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। इसके साथ ही, दोषपूर्ण जांच और न्यायिक प्रक्रिया में लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराना चाहिए।
सुधार की दिशा में कदम
यह मामला न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है। न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने, पुलिस जांच में सुधार करने, और निचली अदालतों में साक्ष्यों की गहन जांच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। न्यायिक प्रणाली में सुधार से ही हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि भविष्य में कोई निर्दोष व्यक्ति इस तरह की त्रासदी का शिकार न हो।
निष्कर्ष
जयमंगल यादव का मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि न्यायिक प्रणाली में सुधार की कितनी सख्त आवश्यकता है। न्याय में देरी केवल एक व्यक्ति को प्रभावित नहीं करती, बल्कि पूरे समाज को झकझोर देती है। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम न्यायिक प्रक्रिया को अधिक सक्षम और प्रभावी बनाएं ताकि हर व्यक्ति को समय पर न्याय मिल सके। न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर है, और इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।
– ट्राई सिटी टाइम्स संपादकीय टीम
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