Icici बैंक के सामने पार्किंग का प्रलंबित प्रश्न: लापरवाही व बेरुखी की मिसाल
जनमंच:- सम्बंधित विभाग चाहे तो कुछ भी एक्शन लेकर लोगों को सुविधा दी जा सकती है


पार्किंग का प्रलंबित प्रश्न: लापरवाही व बेरुखीकी मिसाल।

शहर के बीचों-बीच ICICI बैंक के सामने बनने वाली पार्किंग का मुद्दा आज एक बार फिर सम्बंधित प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता की पोल खोल रहा है। यह परियोजना वर्षों से जस की तस लटकी हुई है। स्थिति यह हो गई है कि वहां डाले गए लोहे के सरिये तक जंग खाकर गल चुके हैं। अगर इसे इस्तेमाल में नहीं लाना था, तो शुरुआत ही क्यों की गई? और यदि यह काम शुरू हुआ था, तो इसे अधूरा छोड़ने का क्या औचित्य?
शासन और प्रशासन की उदासीनता
यह कोई छोटी समस्या नहीं है। यह सीधे-सीधे नगर निगम की उदासीनता और सम्बंधित विभाग की लापरवाही व बेरुखी की ओर इशारा करती है। एक ऐसा स्थान, जो व्यस्ततम क्षेत्रों में से एक है, वहां पार्किंग जैसी बुनियादी सुविधा का न होना शहरवासियों के लिए असुविधा का कारण बना हुआ है। जब विभागीय अधिकारी और शासन यह जानते हैं कि यह समस्या जनता के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रही है, तो आखिर इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा?
यदि पार्किंग का निर्माण कार्य किसी कारणवश रुका हुआ है, तो क्या अस्थायी तौर पर वहां पर कच्चा रोड बनाकर गाड़ियों के खड़े करने की व्यवस्था नहीं की जा सकती? यह कोई असंभव कार्य नहीं है। लेकिन ऐसा लगता है कि संबंधित विभाग अपनी नींद से जागने को तैयार नहीं। क्या विभाग के पास इतना भी अधिकार नहीं है कि वह इस पर फिलहाल एक अस्थायी समाधान निकाल सके?
‘राहु-केतु की दशा’ या जिम्मेदारी से भागना?
ऐसा प्रतीत होता है जैसे इस परियोजना पर ‘राहु-केतु’ की दशा लगी हुई है, जो साढ़े 12 साल बाद ही समाप्त होगी। लेकिन क्या यह सच में ग्रह-नक्षत्रों का खेल है या फिर उन जिम्मेदार अधिकारियों का, जो अपनी जिम्मेदारी से भागने में माहिर हैं? हर अधिकारी और कर्मचारी यही सोचता है कि उसका कार्यकाल पूरा हो जाए, और वह बिना किसी विवाद के आगे बढ़ जाए। लेकिन इस स्वार्थी सोच के कारण जनता को असुविधा झेलनी पड़ती है।
कुंभकरणीय नींद में सोए है विभाग
लापरवाही और बेरुखी की भी एक सीमा होती है। लेकिन यह परियोजना इस सीमा को भी पार कर चुकी है। शायद कुंभकरण भी इतनी गहरी नींद में नहीं सोया होगा, जितना यह विभाग सोया हुआ है। शासन और प्रशासन को समझना होगा कि जनता के हित को नजरअंदाज करना उनकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी का उल्लंघन है।यह मुद्दा न केवल सम्बंधित विभाग की अपने कर्तव्य के प्रति उदासीनता को उजागर करता है, बल्कि संबंधित प्रशासन की प्राथमिकताओं पर भी सवाल खड़ा करता है। जनता का यह सवाल बिल्कुल जायज है: क्या उनकी सुविधाओं और समस्याओं का समाधान प्रशासन की प्राथमिकता में कहीं नहीं है? वैसे जनता का कहना है कि जो प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार है वह पैसे का रोना नहीं हो सकता क्योंकि करोड़ों रुपया इधर उधर खर्च कर देता है।
शासन और विभागों को अब अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अधूरे पड़े इस काम को जल्द से जल्द पूरा करने के साथ-साथ अस्थायी उपायों पर भी ध्यान देना चाहिए। यह मुद्दा सिर्फ पार्किंग का नहीं है; यह प्रशासनिक जवाबदेही और सुशासन का भी है। वरना जनता के धैर्य की सीमा समाप्त होने में देर नहीं लगेगी।
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