बेरोजगारी की मार और ‘मुफ्त की रेवड़ियां’
देश में बेरोजगारी की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन हाल ही में आई कुछ खबरें हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर हमारी शिक्षा प्रणाली और सरकारी नीतियां युवाओं के भविष्य को किस दिशा में ले जा रही हैं। मध्य प्रदेश से आई खबर, जिसमें इंजीनियरिंग और पीएचडी डिग्रीधारी युवा ईंट-गारा उठाने को मजबूर हैं, केवल एक राज्य की समस्या नहीं है। यह उस गहरे संकट की तस्वीर है, जिसमें देश का शिक्षित युवा वर्ग फंसता जा रहा है।
शिक्षा को हमेशा विकास की कुंजी माना गया है, लेकिन जब डिग्री लेने के बाद भी योग्यताधारी युवाओं को नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़े, तो यह पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करता है। बी.टेक और एमबीए करने वाले युवा जब चाय की दुकान लगाने, सब्जी बेचने या मॉल में सेल्समैन बनने को मजबूर होते हैं, तो यह न केवल उनकी मेहनत का अपमान है, बल्कि देश के संसाधनों का भी दुरुपयोग है।
‘मुफ्त की रेवड़ियां’ और घटते रोजगार
आंकड़े बताते हैं कि भारत में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है, लेकिन सरकारों की प्राथमिकता रोजगार सृजन की जगह ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ बांटने पर अधिक है। मुफ्त राशन, बिजली, पानी, परिवहन, और लोन माफी जैसी योजनाएं राजनीतिक दलों के लिए तो फायदेमंद हो सकती हैं, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह एक पीढ़ी को आलसी और निर्भर बना रही हैं। जिन पैसों से नए उद्योग, स्वरोजगार और स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, वे वोट बैंक मजबूत करने के लिए ‘फ्री स्कीम्स’ पर खर्च किए जा रहे हैं।
सरकारें दावा करती हैं कि वे गरीबों की मदद कर रही हैं, लेकिन असल में वे जनता को ‘निर्भरता’ के जाल में फंसा रही हैं। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बजाय, उन्हें मुफ्त योजनाओं का आदी बनाया जा रहा है। बेरोजगारी दूर करने के लिए स्थायी समाधान निकालने की बजाय, राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए तात्कालिक राहत बांटने में लगे हैं।
जनता के टैक्स का दुरुपयोग
यह सवाल उठना लाजिमी है कि जनता के टैक्स का सही उपयोग क्यों नहीं हो रहा? सरकारी खर्चों का बड़ा हिस्सा ऐसी योजनाओं पर जा रहा है, जिनका कोई उत्पादक लाभ नहीं है। अगर वाकई में सरकारों को गरीबों और जरूरतमंदों की इतनी चिंता है, तो क्यों न वे अपनी सैलरी और अन्य भत्तों में कटौती करके इन योजनाओं को चलाएं? आखिर जनता के टैक्स का पैसा मुफ्त सुविधाओं में क्यों बहाया जाए?
वास्तविक जरूरत तो रोजगार सृजन की है। अगर सरकारें सही नीतियां बनाएं, उद्योगों को बढ़ावा दें, स्वरोजगार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करें, तो युवाओं को अपनी मेहनत का सही परिणाम मिलेगा। लेकिन इसकी जगह, सरकारें केवल वोट के गणित को देखते हुए योजनाएं बना रही हैं।
शिक्षा और रोजगार पर ध्यान देने की जरूरत
देश को मुफ्त योजनाओं की नहीं, बल्कि ठोस आर्थिक नीतियों की जरूरत है। उच्च शिक्षा को व्यावहारिक और उद्योग-समर्थक बनाने की आवश्यकता है ताकि डिग्रीधारी युवा बेरोजगार न रहें। सरकार को चाहिए कि वह कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करे, निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में रोजगार के अवसर पैदा करे और स्टार्टअप्स को समर्थन दे।
अगर यही स्थिति बनी रही, तो अगली पीढ़ी न तो मेहनत करना सीखेगी और न ही रोजगार के लिए योग्य होगी। यह केवल एक ‘आर्थिक बोझ’ तैयार करने जैसा होगा, जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। मुफ्त योजनाओं के बजाय, सरकार को युवाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे, तभी देश आत्मनिर्भर और सशक्त बन सकेगा।