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*ईश्वर दास सूद: सादगी, ईमानदारी और समर्पण की मिसाल*

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ईश्वर दास सूद: सादगी, ईमानदारी और समर्पण की मिसाल

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08 अगस्त 1942 को हिमाचल प्रदेश के धीरा, पालमपुर में जन्मे ईश्वर दास सूद एक बेहद सरल, मिलनसार और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। वे न केवल समाज में अपनी सादगी और नेकदिली के लिए पहचाने जाते थे, बल्कि अपने परिवार और रिश्तेदारों के बीच भी विशेष स्थान रखते थे। वे ईश्वर पर अटूट विश्वास रखते थे और जीवन में हमेशा सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को सर्वोपरि रखा।

शिक्षा और करियर

अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, ईश्वर दास सूद ने मेहनत और लगन से अपने जीवन को संवारने की दिशा में कदम बढ़ाया। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें बीबीएमबी (भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड) तलवाड़ा में नौकरी मिली। नौकरी में आने के बाद भी वे अपनी सादगी और ईमानदारी से किसी भी तरह का समझौता नहीं करते थे। अपने कर्तव्य के प्रति पूर्ण निष्ठा रखते हुए, उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपनी नौकरी का निर्वहन किया। वे हमेशा यह मानते थे कि कार्यस्थल पर सत्यनिष्ठा और समर्पण ही सबसे बड़ी पूंजी होती है। यही कारण था कि अपने विभाग में वे सभी सहयोगियों के लिए आदर्श बने रहे।

पारिवारिक जीवन और संस्कार

नौकरी में कुछ वर्षों के बाद उनका विवाह मंजू सूद जी से हुआ, जो न केवल एक धार्मिक और संस्कारी महिला हैं, बल्कि परिवार को एकजुट रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दंपति को तीन संतानें हुईं – अनूप सूद, सोनिया सूद और पूजा सूद। ईश्वर दास सूद ने अपने बच्चों की शिक्षा और परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी। वे चाहते थे कि उनके बच्चे आत्मनिर्भर बनें और समाज में एक सम्मानजनक स्थान हासिल करें। उनकी मेहनत और मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि उनकी तीनों संतानें अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सरकारी नौकरियों में प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं।

ईश्वर दास सूद न केवल अपने बच्चों के प्रति दयालु और जिम्मेदार थे, बल्कि पूरे परिवार और रिश्तेदारों के लिए भी एक मजबूत सहारा थे। वे हमेशा अपने परिवार को एकजुट रखने में विश्वास रखते थे और हर सदस्य के सुख-दुख में पूरी तरह से सहभागी होते थे। वे कभी भी अपने दुख को दूसरों पर जाहिर नहीं होने देते थे। चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आई हों, उन्होंने अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी ताकि परिवार के बाकी सदस्यों को कोई चिंता न हो।

स्वभाव और सामाजिक प्रतिष्ठा

उनका स्वभाव अत्यंत सौम्य था। वे कभी किसी से ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते थे और गुस्से से हमेशा दूर रहते थे। उनके स्वभाव में धैर्य, संयम और शांति कूट-कूट कर भरी थी। उनके मन में सभी के प्रति प्रेम और सम्मान था, यही कारण था कि उन्हें पूरे परिवार और समाज में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था।

ईश्वर दास सूद अपने पौत्र के प्रति विशेष स्नेह रखते थे। वे अपने दिल की हर बात अपने पौत्र के साथ साझा करते थे और उसे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे। उनके पौत्र ने भी दादा-दादी के इस अनमोल स्नेह को समझा और बदले में उन्हें अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा माना। आज वह डॉक्टर बन चुका है, लेकिन अपने दादा के आगे हमेशा एक मासूम बच्चे की तरह ही रहा।

जीवन के अंतिम क्षण और उनकी विरासत

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में ईश्वर दास सूद कुछ समय तक बीमार रहे, लेकिन उन्होंने अपने दर्द को कभी अपने परिवार पर हावी नहीं होने दिया। वे हमेशा दूसरों की भलाई के लिए सोचते रहे और अपने परिवार की खुशियों को ही अपनी प्राथमिकता बनाए रखा। अंततः, उन्होंने शांति से अपनी अंतिम सांस ली, लेकिन उनके द्वारा दिए गए संस्कार और जीवन मूल्य आज भी उनके परिवार और प्रियजनों के दिलों में बसे हुए हैं।

उनकी पत्नी मंजू सूद आज भी परिवार को उसी गरिमा और आत्मीयता के साथ जोड़े रखती हैं। उनकी मिलनसार प्रवृत्ति और धार्मिक आस्था के कारण वे पूरे परिवार के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।

ईश्वर दास सूद का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची सफलता केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि रिश्तों को निभाने, प्रेम और स्नेह बांटने में है। वे भले ही शारीरिक रूप से अब हमारे बीच न हों, लेकिन उनके द्वारा स्थापित किए गए जीवन मूल्य और उनके संस्कार हमेशा उनके परिवार और समाज में जीवित रहेंगे।

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