Editorial: न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर आरबीआई की रोक, जमाकर्ताओं में हड़कंप


न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर आरबीआई की रोक, जमाकर्ताओं में हड़कंप

मुंबई: महाराष्ट्र में न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा अचानक रोक लगाए जाने से ग्राहकों में भारी अफरा-तफरी मच गई है। मुंबई और पूरे महाराष्ट्र में फैली बैंक की शाखाओं पर जमाकर्ताओं की लंबी कतारें देखी गईं, लेकिन उन्हें सिर्फ यह बताया गया कि वे केवल अपने लॉकर ऑपरेट कर सकते हैं, जबकि अन्य लेन-देन पर रोक लगा दी गई है।
क्या है मामला?
आरबीआई ने 13 फरवरी 2025 से अगले छह महीने तक बैंक के सभी वित्तीय लेन-देन पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब यह बैंक न तो नए ऋण जारी कर सकता है, न ही ग्राहकों से जमा स्वीकार कर सकता है। ग्राहकों के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि वे अपने खातों से पैसे नहीं निकाल सकते।
ग्राहकों की चिंता और आक्रोश
बैंक की वित्तीय स्थिति खराब होने के कारण यह प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। अपने मेहनत की कमाई फंसी देख ग्राहक घबराए हुए हैं और लगातार अधिकारियों से जवाब मांग रहे हैं। कुछ ग्राहकों ने कहा कि “अगर बैंक डूब गया, तो हमारी गाढ़ी कमाई का क्या होगा?”
आरबीआई क्यों मौन रहता है?
यह पहली बार नहीं है जब किसी सहकारी बैंक पर इस तरह की पाबंदी लगी हो। पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC) घोटाले से लेकर यस बैंक संकट तक, बार-बार बैंकिंग तंत्र पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन आरबीआई समय रहते कार्रवाई नहीं करता, जिससे जनता का पैसा जोखिम में आ जाता है। अगर आरबीआई पहले सख्ती दिखाता, तो आज हजारों ग्राहकों को इस परेशानी का सामना न करना पड़ता।
क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
1. बैंक घोटालों में शामिल दोषियों को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित किया जाए।
2. सरकार को सभी बैंक जमाओं पर 100% सुरक्षा कवच देना चाहिए, न कि सिर्फ 5 लाख रुपये तक।
3. सहकारी बैंकों की निगरानी कड़ी हो और आरबीआई समय पर हस्तक्षेप करे।
4. बैंकों को दिवालिया होने से बचाने के लिए सरकार को पहले से सतर्क रहना चाहिए, न कि घोटाले के बाद एक्शन लेना चाहिए।
निष्कर्ष
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर रोक से हजारों जमाकर्ताओं का भविष्य अंधकार में चला गया है। सरकार और आरबीआई को इस मामले में तुरंत समाधान निकालना होगा, वरना आम आदमी का बैंकों पर से भरोसा उठ जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस संकट में जनता के साथ खड़ी होगी या फिर घोटालेबाजों को बचाने का काम करेगी?
बैंक घोटाले: गरीब की बचत असुरक्षित, अमीरों के कर्ज माफ!
– बीके सूद
देश में बैंकिंग प्रणाली आम नागरिक के विश्वास पर टिकी होती है। लोग अपनी मेहनत की कमाई इस भरोसे के साथ बैंक में जमा करते हैं कि यह सुरक्षित रहेगी और आपातकालीन स्थिति में उनके काम आएगी। लेकिन जब बड़े घोटाले सामने आते हैं, और बैंक डूबते हैं, तो यह भरोसा टूट जाता है।
विडंबना यह है कि एक तरफ सरकार बड़े उद्योगपतियों और धनकुबेरों के हजारों करोड़ों रुपये के कर्ज माफ कर देती है, वहीं आम नागरिक की बैंक जमा पर सुरक्षा का कोई ठोस इंतजाम नहीं है। मौजूदा बैंकिंग नियमों के अनुसार, यदि किसी बैंक में घोटाला हो जाता है या वह दिवालिया हो जाता है, तो खाताधारक को अधिकतम 5 लाख रुपये तक की सुरक्षा मिलती है, चाहे उसके खाते में इससे कहीं ज्यादा रकम क्यों न हो। यह नियम सीधे तौर पर गरीब और मध्यम वर्गीय जनता के साथ अन्याय है, जो अपनी गाढ़ी कमाई को बैंक में इसलिए रखती है कि वह सुरक्षित रहे।
बैंकों की जवाबदेही और सरकारी उदासीनता
बैंक घोटाले कोई नई बात नहीं हैं। देश में कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां घोटालेबाज बैंकों से हजारों करोड़ रुपये लेकर फरार हो गए, और आम जनता का पैसा डूब गया। ऐसे मामलों में सरकार और बैंकिंग नियामकों की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ जाती है। बैंकिंग सेक्टर में पारदर्शिता की भारी कमी है, और जब घोटाला होता है, तो इसकी भरपाई आम नागरिकों को करनी पड़ती है।
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगर बैंक में किसी व्यक्ति के 10 लाख, 20 लाख या उससे ज्यादा रुपये जमा हैं, तो उसकी पूरी राशि बीमा सुरक्षा के दायरे में आए। बीमा प्रीमियम की एवरेज गणना करके इसे आम नागरिकों के लिए किफायती बनाया जा सकता है, ताकि उनकी मेहनत की कमाई सुरक्षित रहे।
घोटालेबाजों पर लगे सख्त प्रतिबंध
बैंकिंग घोटाले अक्सर अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से होते हैं। जो व्यक्ति बैंक घोटाले में शामिल पाया जाता है, उसे किसी भी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, बैंकिंग सेक्टर में घोटालेबाजों के प्रवेश पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगना चाहिए, ताकि दोबारा कोई जनता के पैसे के साथ खिलवाड़ न कर सके।
निष्कर्ष
आम जनता की गाढ़ी कमाई को सुरक्षित रखना सरकार और बैंकों की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। यदि सरकार अरबपतियों के कर्ज माफ कर सकती है, तो आम जनता की बचत को 100% सुरक्षित करने की व्यवस्था क्यों नहीं कर सकती? बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की सख्त जरूरत है। यह न केवल नागरिकों का भरोसा बहाल करेगा, बल्कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर को भी घोटालों से बचाएगा। सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और आम जनता के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।