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‘*#रोटी ”लेखक विनोद वत्स*


रोटी पर एक नई रचना आप सभी के लिये

रोटी।
रोटी बहुत है कीमती रोटी पे सभी मरते।
हिंदू हो या मुसलमा सब इससे इश्क करते।
जिसको मिले ना रोटी वो रोटी पे झगड़ते।
रोटी के अपने रूप है रोटी के अपने जलवे।
अपनी अदाओ से कराती रोटी बड़े बलवे।
जिसको मिली तादाद में वो सारे है अकड़ते।
जिसको मिले ना रोटी वो रोटी पे झगड़ते।
रोटी का अपना रंग हैं रोटी की अपनी भाषा।
जब बोलती हैं रोटी मिलती हैं सबको आशा।
बाटी गई जब भीड़ में सब इसको हे पकड़ते।
जिसको मिले न रोटी वो रोटी पे झगड़ते।
रोटी गरीब के घर रोटी अमीर के घर।
दोनो के घर बदलती अपना जमीर हर पल।
रोटी गिरी ज़मीन पे भूखे दौड़ के पकड़ते।
जिसको मिले न रोटी वो रोटी पे झगड़ते।
विनोद शर्मा वत्स