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*लुप्त होती परंपरा: हिमाचल के घराट*

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लुप्त होती परंपरा: हिमाचल के घराट

Tct ,bksood, chief editor

एक समय था जब हिमाचल की पहाड़ियों में बसे गाँवों के लोग रात-रात भर घराटों (पारंपरिक जलचालित आटा चक्की) पर अपनी बारी का इंतजार करते थे। पानी की धारा से चलने वाले ये घराट न केवल अनाज पीसने का माध्यम थे, बल्कि ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग भी थे।

घराट: पहाड़ी जीवन की आत्मा

घराट हिमाचल के पारंपरिक पिसाई केंद्र थे, जो बिना किसी बाहरी ईंधन के, केवल बहते पानी की ताकत से चलते थे। ये न केवल पर्यावरण के अनुकूल थे, बल्कि इससे पिसा हुआ आटा भी पोषण से भरपूर होता था।

गाँवों में ये स्थान सामाजिक मेलजोल के केंद्र हुआ करते थे, जहाँ लोग अपनी बारी का इंतजार करते हुए गप्पें लगाते, नई ख़बरें साझा करते और कई बार रातभर वहीं रुकते थे। घराटों की धीमी लेकिन प्रभावी पिसाई से अनाज का पोषण बना रहता था, जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक चक्कियों में अक्सर नष्ट हो जाता है।

गायब होते घराट

तकनीकी विकास और आधुनिक मशीनों के बढ़ते चलन ने इन पारंपरिक घराटों को हाशिये पर ला दिया है। बिजली से चलने वाली मिलें, पैकaged आटे की उपलब्धता और बदलती जीवनशैली के कारण आज ये घराट लुप्त होने के कगार पर हैं। कभी गाँव की शान समझे जाने वाले ये घराट अब खंडहरों में बदल रहे हैं।

संरक्षण की जरूरत

अगर समय रहते इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित नहीं किया गया, तो एक महत्वपूर्ण परंपरा हमसे हमेशा के लिए छिन जाएगी। स्थानीय प्रशासन और पर्यावरण प्रेमियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए और इन्हें पर्यटन और पारंपरिक खेती से जोड़ने के प्रयास करने चाहिए।

घराट केवल आटा पीसने का साधन नहीं, बल्कि हिमाचल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं। इन्हें बचाने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनकी उपयोगिता और महत्व को समझ सकें।


ट्राई सिटी टाइम्स

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