*दोस्ती की परछाईं में गीतेश भृगु*


दोस्ती की परछाईं में गीतेश भृगु

पालमपुर शहर के जाने-माने पत्रकार गीतेश सिंह भृगु अपनी व्यस्त और प्रतिष्ठित ज़िंदगी में भी अपने बचपन के दिनों और सहपाठियों को नहीं भूले। वे आज ऊँचाइयों पर हैं, नाम, शोहरत और धन-संपत्ति सब उनके पास है, लेकिन उनके दिल में अभी भी वही पुरानी मासूमियत और बचपन की यादें बसी हुई हैं।
हाल ही में, गीतेश भृगु अपने दो बचपन के दोस्तों—राजकुमार राजू और योगेश उर्फ रूबी भाई—से राधा-कृष्ण मंदिर में मिले। तीनों बचपन के दिनों की उन शरारतों और मासूमियत भरी यादों में खो गए, जब न दौलत की परवाह थी, न समाज की प्रतिष्ठा का डर। स्कूल की क्लासरूम से लेकर गली-मोहल्ले की मस्ती तक, तीनों की दोस्ती की कहानी सालों बाद फिर से जीवंत हो उठी।
गीतेश, जो आज एक बड़े पत्रकार और संपन्न व्यक्ति हैं, ने अपने पद और प्रतिष्ठा को किनारे रखते हुए अपने इन बचपन के दोस्तों के साथ वैसा ही अपनापन दिखाया, जैसा उन्होंने सालों पहले स्कूल में महसूस किया था। उन्होंने मंदिर परिसर में बैठकर पुरानी बातें कीं, पुरानी यादें ताज़ा कीं, और हँसी-मज़ाक में बचपन की शरारतें दोहराने की कोशिश की।
इस मुलाकात का सबसे खूबसूरत पहलू यह था कि गीतेश ने अपने दोस्तों के बीच किसी भी तरह की सामाजिक या आर्थिक दीवार नहीं खड़ी की। उन्होंने न राजू को उसकी साधारण ज़िंदगी का अहसास कराया, न रूबी भाई को उनके संघर्ष की याद दिलाई। बल्कि उन्होंने उन दोनों को वह प्यार और सम्मान दिया, जो एक सच्चा दोस्त अपने साथियों को देता है।
इस मुलाकात से न सिर्फ राजू और रूबी भाई गदगद थे, बल्कि यह गीतेश भृगु की भी अपनी जड़ों से जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण क्षण था। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि सच्ची दोस्ती समय और परिस्थितियों से परे होती है।
सचमुच, दोस्ती हो तो ऐसी, और इंसान हो तो गीतेश भृगु जैसा—जो सफलता की बुलंदियों पर पहुँचकर भी अपनी जड़ों और अपनों को नहीं भूलता!