Editorial:- *सूखे पेड़ और सरकारी नियम: एक कड़वा सच*
किसी भी पुराने नियमों के तहत सरकारी अफसर खुद को लाचार और बेबस महसूस करते हैं चाह कर भी कोई निर्णय नहीं ले पाते

**सूखे पेड़ और सरकारी नियम: एक कड़वा सच**
NGT (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के नियमों के तहत हरे पेड़ों को काटना मना है, और यह एक सराहनीय कदम है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि सूखे, सड़े हुए पेड़ों का क्या होगा? राज्य में NDT (नेशनल ड्राई ट्री ट्रिब्यूनल) जैसा कोई नियम क्यों नहीं है, जो सूखे पेड़ों को काटने पर रोक लगाए? आखिरकार, नियम तो नियम है!
सूखे पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं है, चाहे वे कितने भी खतरनाक क्यों न हो जाएँ। चाहे वे किसी के घर पर गिर जाएँ, चाहे 5-6 जिंदगियाँ लील लें, लेकिन नियम तो नियम है। और हम हैं सरकारी अफसर, जिनका काम नियमों का पालन करवाना है। जिस दिन कोई घटना घटेगी, उस दिन हम वहाँ पहुँचेंगे, घड़ियाली आँसू बहाएँगे, और सरकार से मुआवजा दिलवाकर पीड़ित परिवारों की मदद करेंगे। यह हमारा वादा है!
हमारी प्राथमिकता साफ है: नियमों का पालन करना, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो। सूखे पेड़ों को काटने की अनुमति देना तो दूर की बात है, हम उन्हें छूने तक नहीं देंगे। अगर कोई पेड़ किसी के घर पर गिरकर तबाही मचाए, तो हमारी टीम घटनास्थल पर पहुँचेगी, फोटो खिंचवाएगी, रिपोर्ट तैयार करेगी, और सरकारी फाइलों में उसे दर्ज करेगी। फिर हम पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलवाने का वादा करेंगे। हालांकि, मुआवजे की राशि कितनी होगी और वह कब तक मिलेगी, यह कोई नहीं जानता। लेकिन इतना तो तय है कि हमारी ओर से पूरा प्रयास किया जाएगा।
और हाँ, अगर कोई सूखे पेड़ को काटने की हिमाकत करता है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हम उसे पर्यावरण विरोधी करार देंगे और जुर्माना लगाएँगे। क्योंकि नियम तो नियम है, और हम हैं सरकारी अफसर, जिनका काम नियमों का पालन करवाना है।
तो अगली बार जब आप किसी सूखे पेड़ को देखें, तो उसे छूने की गलती न करें। वह पेड़ चाहे कितना भी खतरनाक क्यों न हो, उसे वहीं रहने दें। क्योंकि नियम तो नियम है, और हम हैं सरकारी अफसर, जो घटना होने के बाद मदद करने का वादा करते हैं। यह हमारा कर्तव्य है, और हम इसे पूरी ईमानदारी से निभाएँगे।
जय नियम, जय सरकारी व्यवस्था! 👍👌😀🤣