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Editorial:- *”पत्रकारिता की गरिमा बचाएं: समाज और सरकार की साझा जिम्मेदारी”*

ब्लैकमेल करने वालों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन क्या पत्रकारों को केवल सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों को आगे बढ़ाने तक सीमित रखा जाए?

 

**पत्रकारिता और समाज: कौन है जिम्मेदार?**पत्रकार: समाज का आईना या गलतियों का शिकार?**

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह वह पेशा है जो सत्ता को जवाबदेह बनाता है, समाज के मुद्दों को उठाता है और जनहित में आवाज बुलंद करता है। लेकिन आज पत्रकारिता के नाम पर जो हो रहा है, वह चिंताजनक है। कुछ लोग पत्रकारों को “गुल्ला पत्रकार” या अन्य विशेषणों से नवाजते हैं, लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि ऐसे पत्रकारों को पैदा करने वाला वातावरण किसने तैयार किया है?

 कौन है जिम्मेदार?
जब कोई पत्रकार गलत रास्ते पर चलता है, तो उसे अकेले दोष देने से पहले हमें यह सोचना चाहिए कि उसे यह रास्ता किसने दिखाया? क्या वह पत्रकार किसी अन्य ग्रह से आया है? नहीं, वह हमारे समाज का ही हिस्सा है। उसे हिंदी पढ़ाने वाले अध्यापक, कस्बे के राजनेता, घर के बड़े-बुजुर्ग, या फिर वह वरिष्ठ पत्रकार और संपादक, जिन्होंने उसे इस पेशे में आने के लिए प्रेरित किया, क्या वे जिम्मेदार नहीं हैं? जब कोई पत्रकार गलती करता है, तो उसे टोकने के बजाय शास्त्रार्थ शुरू हो जाता है। यही वह माहौल है जो गलत को बढ़ावा देता है।

कुछ लोग कहते हैं कि पत्रकारों ने पत्रकारिता की पढ़ाई नहीं की है। लेकिन क्या यह सच है कि केवल पत्रकारिता की डिग्री वाले ही अच्छे पत्रकार हो सकते हैं? ऐसे कितने ही पत्रकार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता नहीं पढ़ी, लेकिन वे पेशेवरों से भी बेहतर काम कर रहे हैं। दूसरी ओर, कितने राजनेता हैं जिन्होंने राजनीति शास्त्र या लोक प्रशासन पढ़ा है? हैरत की बात तो यह है कि अनपढ़ भी मंत्री बन सकता है, लेकिन पत्रकार के लिए यह मानक क्यों नहीं लागू होता? क्या आपने कभी किसी अनपढ़ को पत्रकार के रूप में देखा है पत्रकार बनने के लिए कम से कम पढ़ा लिखा होना तो आवश्यक है जबकि मुख्यमंत्री बनने के लिए ऐसा कोई नियम नहीं

 ब्लैकमेल और जनहित
ब्लैकमेल करना गलत है, और ऐसे लोगों को सजा मिलनी चाहिए। लेकिन क्या केवल पत्रकार ही ब्लैकमेल करते हैं? जब पत्रकार जनहित के मुद्दे उठाते हैं, तो शासन-प्रशासन के लोग अक्सर लापरवाही बरतते हैं या जानबूझकर चुप रहते हैं। ऐसे में, अगर पत्रकार जनहित के मुद्दे नहीं उठाएंगे, तो क्या वे केवल सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों को ही आगे बढ़ाएंगे? क्या उनका काम सिर्फ सरकार के गुणगान और प्रशासन की प्रशंसा करना रह गया है? अगर ऐसा है, तो फिर चौथे स्तंभ का मतलब ही क्या रह गया?

नियम बनाइए, लेकिन जिम्मेदारी भी लीजिए
नियम बनाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन नियम बनाने वालों को यह भी सोचना चाहिए कि वे खुद कितने जिम्मेदार हैं। पत्रकारिता को सही दिशा देने के लिए समाज, शिक्षा व्यवस्था और सरकार सभी को मिलकर काम करना होगा। पत्रकारों को प्रशिक्षण देना होगा, उन्हें नैतिकता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाना होगा। साथ ही, जो पत्रकार जनहित के मुद्दे उठाते हैं, उन्हें समर्थन देना होगा, न कि उन्हें दबाने की कोशिश करनी चाहिए।

 अंत में कहूंगा कि  पत्रकारिता एक पवित्र पेशा है, लेकिन इसे बदनाम करने वाले कुछ लोगों के कारण पूरे पेशे की छवि खराब हो रही है। यह समय है कि हम सभी मिलकर इस पेशे को सही दिशा दें। पत्रकारों को जिम्मेदार बनाने के साथ-साथ समाज और सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। केवल तभी पत्रकारिता अपने वास्तविक उद्देश्य को पूरा कर सकेगी और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की गरिमा बनी रहेगी।

निष्कर्ष :-अगर पत्रकार केवल सरकारी प्रशंसा और प्रेस विज्ञप्तियों तक सीमित रहेंगे, तो फिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का मतलब ही क्या रह जाएगा? 

 

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