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Editorial*युवाओं की उपेक्षा: हिमाचल प्रदेश सरकार की विरोधाभासी नीतियाँ*

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**युवाओं की उपेक्षा: हिमाचल प्रदेश सरकार की विरोधाभासी नीतियाँ**

Tct ,bksood, chief editor

हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी की बढ़ती लहर और सरकारी प्राथमिकताओं के बीच गहरा विरोधाभास सामने आया है। जहाँ एक ओर राज्य के छह लाख से अधिक युवा नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं, वहीं सरकार अपने अधिकारियों को सेवा विस्तार देकर और विधायकों-मंत्रियों के वेतन बढ़ाकर यह साबित कर रही है कि उसकी प्राथमिकताओं में जनता के हित गौण हैं।

मुख्य सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद  को सेवानिवृत्ति के बाद छह महीने का विस्तार देना सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है। यह कोई पहला मामला नहीं है। सुक्खू सरकार लगातार रिटायर्ड अधिकारियों को एक्सटेंशन दे रही है, जबकि युवाओं के लिए नए पदों का सृजन नहीं हो रहा। विधानसभा में इस मुद्दे पर सरकार के पास कोई ठोस जवाब न होना शासन की लापरवाही को उजागर करता है। क्या यह सच नहीं कि सेवानिवृत्त अधिकारियों को थामे रखने से युवाओं के लिए अवसरों के दरवाजे बंद होते हैं?

इससे उलट सरकार को रिटायरमेंट की आयु 3 साल घटकर 55 साल कर देनी चाहिए उन सेवानिवृत्त खाली हुए पदों पर नए लोगों को रोजगार देना चाहिए इससे न केवल सरकार का पैसा बचेगा बल्कि युवाओं को रोजगार भी मिलेगा रिटायरमेंट आयु पर बैठे अधिकारी व कर्मचारियों की जितनी सैलरी होती है उससे आधी सैलरी पर इन्हें युवा मिल जाएंगे और एक की जगह दो  तीन कर्मचारियों अधिकारियों को एडजस्ट कर पाएंगे जिससे न केवल सरकारी काम में गुणवत्ता बढ़ेगी तेजी आएगी बल्कि युवाओं को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे

सरकार ने विधायकों का वेतन 70,000 रुपये तक बढ़ाने में सेकंड नहीं लगाया, लेकिन 319 जेओए-आईटी पदों की भर्ती प्रक्रिया को “प्रशासनिक कारणों” के नाम पर रद्द कर दिया। इन पदों के लिए एक लाख युवाओं ने आवेदन किया था। पहले पेपर लीक होने पर चयन बोर्ड भंग किया गया, और अब भर्ती ही समाप्त कर दी गई। युवाओं को महज फीस वापसी का आश्वासन देकर टरकाना सरकारी नीतियों की संवेदनहीनता को दिखाता है।

आर्थिक संकट और केंद्र की भूमिका
राज्य की डूबती वित्तीय स्थिति भी चिंताजनक है। सरकारी योजनाओं के लिए धन की कमी है, लेकिन विधायकों के वेतन में बढ़ोतरी के लिए संसाधन मौजूद हैं! ऐसे में केंद्र सरकार को राजनीतिक द्वंद्व से ऊपर उठकर हिमाचल की मदद करनी चाहिए। पर्यटन, कृषि और लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विशेष पहल की जरूरत है। प्राथमिकताओं का सवाल?
सरकार का यह रवैया न केवल युवाओं के साथ धोखा है, बल्कि राज्य के विकास को भी गर्त में धकेल रहा है। नौकरियाँ रद्द करना और रिटायर्ड अधिकारियों को थामे रखना साफ दिखाता है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए जनता की बजाय अपनी सुविधाएँ महत्वपूर्ण हैं। यदि सरकार युवाओं को निराश करती रही, तो प्रदेश का सामाजिक-आर्थिक ढाँचा चरमरा सकता है। समय है कि हिमाचल की सरकार युवाओं की आवाज़ सुने और रोजगार सृजन को अपनी पहली प्राथमिकता बनाए।

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