Civil Hospital Palampur”दवाइयों के लिए दोबारा सफर क्यों? सिविल अस्पताल पालमपुर में समय की यह चूक मरीजों पर भारी”
अस्पताल एडमिनिस्ट्रेशन को मरीजों की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए लेना चाहिए कोई निर्णय जैसे कि पहले भी ट्राई सिटी टाइम्स की न्यूज़ पर सीनियर सिटीजंस के लिए अलग से बनाया था काउंटर


“दवाइयों के लिए दोबारा सफर क्यों? सिविल अस्पताल पालमपुर में समय की यह चूक मरीजों पर भारी”

“डॉक्टर 4:30 तक मरीज देखते हैं, लेकिन दवा काउंटर 4:00 बजे बंद—क्या यह सिस्टम मरीजों के हित में है?”
पालमपुर स्थित सिविल अस्पताल में हर दिन सैकड़ों मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन इलाज के इस सिलसिले में एक गंभीर असमानता सामने आ रही है—और वह है अस्पताल की दवाइयों के वितरण समय का असमंजस।
स्थिति यह है कि अस्पताल के डॉक्टर कई बार 4:00 बजे के बाद भी मरीजों को देख रहे होते हैं, कुछ मामलों में यह सिलसिला 4:30 बजे तक चलता है। लेकिन इसके उलट, दवाइयों का काउंटर ठीक 4:00 बजे बंद कर दिया जाता है।
अब सोचिए, एक मरीज अगर दूरदराज गांव—जैसे खैरा, थुरल या अन्य किसी क्षेत्र से आया है और उसे डॉक्टर द्वारा 4:10 या 4:20 बजे कोई जरूरी दवा लिख दी जाती है, तो वह उसे कहां से ले? क्योंकि अस्पताल की फार्मेसी तो पहले ही बंद हो चुकी होती है। ऐसे में मरीज के पास दो ही विकल्प बचते हैं: या तो वह दवा बाहर से खरीदें, जो कि कभी-कभी उसके बजट से बाहर होती है, या फिर अगली सुबह फिर से पालमपुर आएं और दोबारा ₹100 से अधिक का किराया खर्च कर केवल ₹60-70 की दवाइयां लेने लौटें।
यह न केवल समय की बर्बादी है बल्कि आर्थिक और मानसिक बोझ भी है।
समाधान क्या हो सकता है?
यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका हल न निकाला जा सके। प्रशासन चाहे तो केवल काउंटर के खुलने और बंद होने के समय में थोड़ा बदलाव करके बड़ी राहत दे सकता है।
सुबह का समय 9:00 बजे के बजाय 10:00 बजे किया जा सकता है, क्योंकि डॉक्टर प्रायः 10:00 बजे के बाद ही ओपीडी में बैठते हैं।
शाम को दवा काउंटर का समय 4:30 बजे तक बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि जो मरीज अंतिम स्लॉट में डॉक्टर को दिखा रहे हैं, वे भी समय पर दवा प्राप्त कर सकें।
अगर स्टाफ की कमी का हवाला दिया जाता है, तो इंटरनल शिफ्टिंग के माध्यम से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है। शाम को सिर्फ एक फार्मासिस्ट की ड्यूटी पर्याप्त हो सकती है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं एक व्यवस्था से जुड़ी होती हैं, जिसमें हर मिनट कीमती होता है। स्टाफ की कमी या संसाधनों की सीमाएं, प्रशासन के लिए बहाना नहीं बन सकतीं। अगर हम मरीजों की सुविधा और अधिकारों को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो फिर यह स्वास्थ्य व्यवस्था किसके लिए है?
सिविल अस्पताल पालमपुर प्रशासन से जनता की अपेक्षा है कि वह इस मामूली-से दिखने वाले लेकिन गंभीर प्रभाव डालने वाले मुद्दे पर शीघ्र कार्यवाही करे।
आवश्यक सुधारों से न केवल मरीजों को राहत मिलेगी, बल्कि अस्पताल की छवि भी और अधिक विश्वसनीय बनेगी।
— बी के सूद
मुख्य संपादक, ट्राई सिटी टाइम्स
