Editorial

# editorial #operation sindoor:. *शहादत का सम्मान और एकजुटता की आवश्यकता*

Tct

एडिटोरियल: शहादत का सम्मान और एकजुटता की आवश्यकता

Tct ,bksood, chief editor

— बी.के. सूद, चीफ एडिटर, ट्राई सिटी टाइम्स

जब राष्ट्र पर संकट आता है, सीमा पर हमारे जवान अपने प्राणों की बाज़ी लगाते हैं और देशवासियों की सुरक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दे देते हैं, तब यह समय होता है उनके बलिदान को नमन करने का, न कि उनके नाम पर सियासी बिसात बिछाने का। आज की राजनीति में चाहे कोई भी पार्टी हो, कोई भी नेता हो, कोई भी विचारधारा हो — यह कटु सत्य है कि सभी ने समय-समय पर अवसरवादिता का परिचय दिया है। परंतु जब बात देश के शहीदों की हो, तो यह मतभेद और मतांतर गौण हो जाने चाहिए।

शहीदों की शहादत किसी दल या विचारधारा की जागीर नहीं है। उनका बलिदान न किसी दल के समर्थन में था, न विरोध में। उन्होंने प्राण दिए मातृभूमि की रक्षा के लिए। उनके बलिदान को कमतर आंकना, राजनीतिक चश्मे से देखना या उसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़ना, केवल उनके पवित्र उद्देश्य का अपमान है। यह बलिदान अमर था, अमर है और अमर रहेगा।

युद्ध किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता। आज रूस और यूक्रेन जैसे देशों की स्थिति हमारे सामने है — हजारों जानें गईं, अरबों की संपत्ति नष्ट हुई, और फिर भी समाधान अधूरा ही रहा। युद्ध से पहले जो देश वैश्विक मंच पर उभरते सितारे थे, अब वे पुनर्निर्माण की पीड़ा में डूबे हैं। भारत एक विकासशील राष्ट्र है, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, तकनीकी नवाचार और आधारभूत संरचनाओं पर अभी भी अपार कार्य की आवश्यकता है। ऐसे में युद्ध नहीं, बुद्ध चाहिए — शांति, संवाद और विकास चाहिए।

यह भी सही है कि आतंकवाद और सीमापार से होने वाली घुसपैठ हमारे लिए एक सतत चुनौती है। परंतु इसका जवाब केवल सैन्य मोर्चे से नहीं, बल्कि कूटनीति, सख्त नीति और राष्ट्रीय एकजुटता से देना होगा। ऐसे समय में देश की सेना और अर्धसैनिक बलों के होंसले को बढ़ाना हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए। वे कठोर जलवायु, विषम भौगोलिक परिस्थितियों और लगातार मानसिक दबाव के बीच डटे रहते हैं — केवल इसलिए कि हम अपने घरों में चैन की नींद सो सकें।

दुर्भाग्यवश, सोशल मीडिया से लेकर संसद तक, तीखे व्यंग्य, अनर्गल आरोप और अभद्र भाषा ने हमारे सार्वजनिक विमर्श को दूषित कर दिया है। लेकिन क्या यह समय नहीं है कि हम क्षणिक राजनीतिक लाभ से ऊपर उठकर, एक बार फिर ‘राष्ट्र पहले’ की भावना को प्राथमिकता दें?

यदि आज हम अपने भीतर एकता, संयम और परिपक्वता नहीं दिखा पाए, तो आने वाली पीढ़ियां हमें क्षमा नहीं करेंगी। आइए, इस कठिन समय में अपने शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए एकजुट हों। राजनीति बाद में होगी, अभी देश पहले है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button