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बिहार पसमांदा विज़न और इरफान जामियावाला की नितीश कुमार से पसमांदा आयोग की मांग

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बिहार पसमांदा विज़न और इरफान जामियावाला की नितीश कुमार से पसमांदा आयोग की मांग
लेखक: irfan jamiawala

भूमिका

भारत में सामाजिक न्याय की प्रक्रिया तब तक अधूरी है जब तक धार्मिक अल्पसंख्यकों के भीतर की जातीय विषमता को भी समान रूप से नहीं समझा और संबोधित किया जाता। पसमांदा मुसलमान—जो शोषित, वंचित और पिछड़ी जातियों से आते हैं—ऐसे ही एक समुदाय हैं जिन्हें ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक दृष्टि से हाशिए पर रखा गया है। बिहार, जहां पसमांदा मुसलमानों की आबादी मुसलमानों के भीतर बहुसंख्यक है, वहां इनकी बेहतरी के लिए विशेष कदम उठाने की जरूरत है।

इसी दृष्टिकोण को लेकर इरफान जामियावाला, जो पसमांदा आंदोलन के एक प्रमुख नेता हैं, ने हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से पसमांदा आयोग (Pasmanda Commission) के गठन की मांग की। इस लेख में हम बिहार पसमांदा विज़न की रूपरेखा और इस आयोग की आवश्यकता, भूमिका, और संभावित कार्यक्षेत्र पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

बिहार पसमांदा विज़न: समावेशी विकास की अवधारणा

बिहार पसमांदा विज़न का उद्देश्य राज्य के पसमांदा मुसलमानों को सामाजिक न्याय, आर्थिक अवसर और राजनीतिक भागीदारी प्रदान करना है। यह विज़न निम्नलिखित मुख्य आधारों पर टिका है:

1. जाति-आधारित डेटा संकलन – मुसलमानों के भीतर जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का वैज्ञानिक मूल्यांकन।

2. शिक्षा और रोज़गार में प्रतिनिधित्व – पसमांदा समुदायों को OBC कोटा में सुनिश्चित प्रतिनिधित्व।

3. स्वतंत्र आयोग का गठन – एक संवैधानिक आयोग जो पसमांदा समाज की समस्याओं और नीतिगत समाधान पर काम करे।

4. राजनीतिक भागीदारी – चुनावी राजनीति में पसमांदा नेतृत्व को बढ़ावा देना।

5. धार्मिक संस्थाओं में सामाजिक न्याय – वक्फ, मदरसा बोर्ड आदि संस्थाओं में पसमांदा भागीदारी।

पसमांदा आयोग की मांग: इरफान जामियावाला की पहल

इरफान जामियावाला ने नितीश कुमार से जो मांग की है, वह केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल मानी जा सकती है। उनके अनुसार, यह आयोग निम्न कार्यों के लिए गठित होना चाहिए:

1. जाति आधारित सामाजिक सर्वेक्षण करना

बिहार में पसमांदा मुसलमानों की विभिन्न जातियों की पहचान और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करना।

“कौन पसमांदा है?” इसका वैज्ञानिक आधार तैयार करना।

2. नीतिगत सिफारिशें देना

आरक्षण नीति में सुधार: अति-पिछड़े मुस्लिम जातियों के लिए उप-कोटा (Sub-quota) का सुझाव।

शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार में पसमांदा-उन्मुख योजनाएं लागू करना।

3. सरकारी योजनाओं की निगरानी

यह आयोग सुनिश्चित करे कि राज्य की योजनाओं का लाभ सही पसमांदा तबकों तक पहुंचे।

विशेषकर SC, ST और EBC योजनाओं में मुस्लिम पिछड़ी जातियों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

4. वक्फ और धार्मिक संस्थाओं में पसमांदा प्रतिनिधित्व

वक्फ बोर्ड, मदरसा बोर्ड, उर्दू अकादमी आदि संस्थाओं में पसमांदा मुसलमानों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की निगरानी।

आयोग की संरचना कैसी हो?

इरफान जामियावाला ने सुझाव दिया है कि आयोग में निम्नलिखित बिंदुओं का ध्यान रखा जाए:

अध्यक्ष एक पसमांदा पृष्ठभूमि का व्यक्ति हो।

सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, और नीतिगत विशेषज्ञ शामिल किए जाएं।

रिपोर्ट सालाना आधार पर बिहार विधानसभा में प्रस्तुत की जाए।

आयोग को न्यायिक शक्तियां दी जाएं ताकि वह अनुशंसा को बाध्यकारी बना सके।

नीतिश कुमार की भूमिका और संभावनाएं

नितीश कुमार ने सामाजिक न्याय के पक्ष में कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं, जैसे कि महादलित आयोग का गठन, अति पिछड़ा वर्ग आयोग, और जातीय गणना। ऐसे में पसमांदा आयोग की मांग बिल्कुल स्वाभाविक और समयानुकूल है। अगर यह आयोग गठित होता है, तो यह देश में एक मिसाल बनेगा और अन्य राज्यों के लिए आदर्श मॉडल हो सकता है।

निष्कर्ष

बिहार पसमांदा विज़न और पसमांदा आयोग की मांग एक ऐतिहासिक अवसर है जिसे केवल राजनीतिक पहल से नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और व्यापक जनसमर्थन से साकार किया जा सकता है। इरफान जामियावाला जैसे नेताओं की पहल से यह आंदोलन सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का संकेत बन रहा है। अगर नीतिश कुमार इस पर अमल करते हैं, तो यह बिहार में पसमांदा मुसलमानों के लिए एक नए युग की शुरुआत हो सकती है।

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