शख्शियत

Editorial : *”राय साहब पूरणमल कुटियाला: हिमाचल की उदारता और उन्नति का अदृश्य स्तंभ”*

"एक ऐसा परोपकारी जिसने रियासतों को कर्ज़ दिया, पर नाम नहीं माँगा ,लाहौर तक फैले कारोबार के मालिक, लेकिन दिल गाँव की प्यास बुझाने में लगा"

 

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राय साहिब पूरणमल कुठियाला: एक परोपकारी पुरुष, एक युगद्रष्टा का जीवन!

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– बी. के. सूद, चीफ एडिटर, ट्राइसिटी टाइम्स

हरोली की धरती ने अनेक संतों, समाजसेवियों और उद्यमियों को जन्म दिया है, परंतु जिनके योगदान ने इतिहास को मोड़ा, उनमें नाम आता है राय साहिब पूरणमल कुठियाला का — जिनका जीवन सेवा, परोपकार और दूरदर्शिता का प्रतिमान रहा। 1836 में जन्मे राय साहिब पूरणमल उस समय के सबसे बड़े व्यवसायियों और जमींदारों में से एक थे, जिनका व्यापार आज के पाकिस्तान के लाहौर तक फैला हुआ था।

उनकी हवेली हरोली के उच्चतम स्थल पर स्थित थी, जो राय बहादुर जोधामल मार्ग से ऊपर जाती है। यह केवल एक इमारत नहीं, बल्कि इतिहास की वह चुप गवाही है, जो आज भी उस युग की समृद्धि और सामाजिक चेतना को दर्शाती है। उनके पूर्वज हरोली में बसने वाले पहले परिवारों में से थे, जिन्होंने यहां की नींव रखी।

राय साहिब पूरणमल का जीवन केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहा। वे उस समय के प्रगतिशील समाज-सुधारकों में गिने जाते हैं जिन्होंने सबसे पहले गांव के लोगों की बुनियादी ज़रूरतों की चिंता की। उन्होंने हरोली के लिए कुएं खुदवाए, जिससे स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था हो सके और भूख से जूझते लोगों को अच्छा भोजन प्रदान किया।

20वीं सदी की शुरुआत तक, उन्होंने विशाल जमींदारी और बैंकिंग साम्राज्य खड़ा कर लिया था। वह शिमला, हरोली, मंडी, पटियाला, मलेरकोटला, कोटी, जुब्बल, क्योंथल, भगत आदि रियासतों के प्रमुख वित्तपोषक बन गए थे। उस समय, जब बैंकिंग प्रणाली पूरी तरह से संगठित नहीं थी, राय साहिब पूरणमल जैसे व्यक्ति ही शाही रियासतों की आर्थिक धुरी होते थे।

उनके पुत्र रायजादा लाला कडूमल कुठियाला सदैव उनके साथ छाया की तरह रहते थे। पिता-पुत्र की यह जोड़ी व्यवसायिक दृष्टि से जितनी मजबूत थी, सामाजिक सरोकारों में उतनी ही संवेदनशील। दोनों ने मिलकर न केवल व्यापार को आगे बढ़ाया, बल्कि आसपास के गाँवों की ज़मीनों को उपजाऊ बनाकर वहां दालें, फल, मसाले और सब्ज़ियां उगवाईं — जिनका एक बड़ा हिस्सा गरीबों में वितरित किया जाता था।

राय साहिब ने हरोली वाटरवर्क्स ट्रस्ट की स्थापना की थी और इसके लिए अपनी निजी भूमि और बड़ी राशि दान की, जिससे 1920 के दशक में ही गांव के घरों में पाइपलाइन से पानी पहुंचने लगा — एक ऐसा नवाचार, जिसकी उस समय कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

शिमला में बस स्टैंड निर्माण के लिए डीसी शिमला के आग्रह पर उन्होंने अपनी ज़मीन भी दान कर दी। यह उस दौर में नागरिक सेवा का अद्वितीय उदाहरण था। उनका निधन 1932 में शिमला में हुआ। यह एक ऐसा क्षण था जब एक आम नागरिक के सम्मान में शिमला के डिप्टी कमिश्नर ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया — इतिहास में अपनी तरह की एक अनोखी घटना।

वे न केवल धन में समृद्ध थे, बल्कि हृदय से भी समृद्ध थे। उन्होंने कांगड़ा और ऊना में अपनी कई ज़मीनें रिश्तेदारों को इस भावना से दीं कि वे भी संपन्न हो सकें। जिन लोगों को जीवन में ज़रूरत थी, उन्हें भी उदारता से ज़मीनें दान कीं।

उनका जीवन इस सच्चाई को दर्शाता है कि जब संपत्ति, संवेदना और दूरदर्शिता एक साथ चलते हैं, तो समाज में एक नई चेतना जन्म लेती है। हरोली और शिमला ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश को उनकी उदारता, दूरदृष्टि और सेवा-भाव पर गर्व है।

आज, जब हम इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, तो राय साहिब पूरणमल कुठियाला का नाम न केवल एक सफल व्यवसायी के रूप में उभरता है, बल्कि एक ऐसे युगद्रष्टा के रूप में सामने आता है, जिन्होंने अपने कर्मों से समाज को दिशा दी, एक आदर्श गढ़ा और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमिट प्रेरणा बन  गए।

बी के सूद

प्रेसिडेंट

सूद सभा पालमपुर

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