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*पालमपुर का गौरव: राम मंदिर घुग्गर और बुटेल फैमिली की निःस्वार्थ आस्था*

बुटेल फैमिली ने दशकों पहले दान की बहुमूल्य भूमि, आज भी खुद कर रहे मंदिर की सेवा, देखरेख और आयोजन का संचालन

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*पालमपुर का गौरव: राम मंदिर घुग्गर और बुटेल फैमिली की निःस्वार्थ आस्था*

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राम मंदिर घुग्गर पालमपुर – जहां सेवा, आस्था और परंपरा मिलती है बुटेल परिवार के समर्पण से

पालमपुर, जहां पहाड़ों की खूबसूरती के साथ एक गहरी सामाजिक और धार्मिक चेतना भी बसती है। इस चेतना को आकार देने में कई परिवारों ने योगदान दिया है, लेकिन अगर एक नाम को विशेष रूप से स्मरण किया जाए, तो वह है बुटेल परिवार। यह वह परिवार है, जिसने केवल संपत्ति, संसाधनों और राजनीतिक पहचान से नहीं, बल्कि निःस्वार्थ सेवा और धार्मिक समर्पण से पालमपुर की आत्मा को संजोया है।

घुग्गर क्षेत्र में स्थित राम मंदिर, इसी सेवा भावना का एक जीवंत उदाहरण है। यह मंदिर केवल पूजा-पाठ का स्थान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक है — और इसकी नींव रखी गई थी बुटेल परिवार के उस फैसले से, जब उन्होंने वर्षों पहले अपनी 5 से 7 कनाल भूमि इस धार्मिक स्थल के लिए निःशुल्क दान में दी थी।

और यह दान भी ऐसे समय में नहीं हुआ जब सब कुछ सहज था। यह निर्णय उस कालखंड में लिया गया था, जब पालमपुर की ज़मीनें धीरे-धीरे महंगी हो रही थीं और हर इंच जमीन की कीमत समझी जाने लगी थी। लेकिन स्वर्गीय श्री कन्हैया लाल बुटेल, स्वर्गीय श्री बंसीलाल बुटेल और स्वर्गीय श्री कुंज बिहारी बुटेल जैसे विचारशील और उदार व्यक्तित्वों ने इस भूमि को किसी आर्थिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि भगवान श्रीराम के चरणों में अर्पित करने के लिए समर्पित किया।

यह बात यहीं खत्म नहीं होती। केवल भूमि दान करके बुटेल परिवार ने अपनी भूमिका समाप्त नहीं मानी। उन्होंने न सिर्फ मंदिर का निर्माण करवाया, बल्कि मंदिर की नियमित देखरेख, मरम्मत और धार्मिक आयोजन की जिम्मेदारी भी आज तक स्वयं निभा रहे हैं। वर्तमान में भी यह परिवार इस मंदिर के हर धार्मिक आयोजन में आगे बढ़कर हिस्सा लेता है। राम नवमी हो, जन्माष्टमी हो या फिर हवन-कीर्तन — बुटेल परिवार की उपस्थिति और सेवा हर आयोजन में दिखाई देती है।

राम मंदिर घुग्गर में नित्य पूजा-अर्चना, संकीर्तन, यज्ञ और धार्मिक प्रवचन होते हैं। यहां निमित्त पूजाएं करवाई जाती हैं, धार्मिक सप्ताह मनाए जाते हैं, स्थानीय लोगों के विवाह से लेकर संस्कार तक इसी मंदिर प्रांगण में संपन्न होते हैं।

आज जब हम यह देखते हैं कि लोग अपनी ज़मीन पर किसी की बाइक भी खड़ी नहीं होने देना चाहते, वहां बुटेल परिवार का यह समर्पण समाज के लिए आदर्श बन जाता है। जो लोग अपने भूखंड से आधा इंच भी लोकहित में नहीं छोड़ते, उन्हें यह देखना चाहिए कि किस तरह यह परिवार कई कनाल जमीन भगवान के चरणों में अर्पित करके भी निःस्वार्थ भाव से इस कार्य को अपनी धार्मिक जिम्मेदारी मान रहा है।

अगर उन्होंने यह सोच ली होती कि “हमारी ज़मीन, हमारा हक”, तो आज पालमपुर का यह मंदिर नहीं बनता, यह तीर्थ नहीं बनता, यह समाज नहीं जुड़ता।

इस मंदिर की नींव में आस्था है, पर उसकी ईंटों में बुटेल परिवार की सेवा और सोच है। जब भी इस मंदिर में कोई दीपक जलता है, जब भी घंटा बजता है, जब भी कोई श्रद्धालु folded hands के साथ पूजा करता है — उस हर भाव में इस परिवार का एक मौन योगदान समाहित होता है।

वास्तव में, बुटेल परिवार ने राम मंदिर घुग्गर को केवल एक संरचना नहीं, बल्कि एक धार्मिक विरासत में बदल दिया है — जो पीढ़ी दर पीढ़ी समाज को जोड़ती रहेगी। और जब-जब कोई इस मंदिर की सुंदरता, व्यवस्था और परंपरा की तारीफ करेगा, तब-तब पीछे खड़ा यह परिवार अपने मौन दान के साथ मुस्कराता रहेगा।


रिपोर्ट: Tricity Times संपादकीय टीम

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🔗 प्रकाशित: www.tricitytimes.com

 

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