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*श्रद्धा, सेवा और सृजन का प्रतीक: सुदर्शन भाटिया जी*

जब जीवन में किसी प्रिय की अनुपस्थिति एक स्थायी शून्य छोड़ जाती है, तब कुछ लोग उस रिक्तता को विलाप से भरते हैं, और कुछ बिरले लोग ऐसे होते हैं जो उस पीड़ा को सेवा में बदलकर अमरता की दिशा में एक नया मार्ग चुनते हैं।

 

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श्रद्धा, सेवा और सृजन का प्रतीक: सुदर्शन भाटिया जी

Tct ,bksood, chief editor

पालमपुर की शांत और सांस्कृतिक धरती ने अनेक विभूतियों को जन्म दिया है, लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी उपस्थिति समाज के लिए प्रेरणा बन जाती है। इंजीनियर सुदर्शन भाटिया जी उन्हीं विशिष्ट व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिनके जीवन में श्रद्धा, सेवा और सृजन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। उन्होंने अधिशासी अभियंता के रूप में एक प्रतिष्ठित सेवाकाल बिताया, किंतु सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी सक्रियता, लगन और ऊर्जा किसी नवयुवक से कम नहीं रही।

सुदर्शन भाटिया जी केवल एक कुशल अभियंता भर नहीं रहे, वे एक ऐसे लेखक हैं जिनकी कलम ने समाज को चेतना दी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि उन्होंने लेखन को केवल एक शौक या आत्मसंतोष का माध्यम नहीं बनाया, बल्कि उसे समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व के रूप में जिया। उन्होंने अपने जीवन काल में 700 से अधिक पुस्तकें रचीं, और यह रचना-धर्मिता मात्र संख्या का खेल नहीं बल्कि संवेदनाओं, विचारों और सच्चे सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति रही है। उनकी कृतियों को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सम्मान प्राप्त हुआ है, परंतु सच्ची बात तो यह है कि भाटिया जी को पुरस्कारों से अधिक संतोष उस क्षण में मिलता है जब उनका कोई विचार किसी युवा के भीतर उम्मीद की लौ जलाता है या जब उनकी कोई रचना किसी पाठक को आत्ममंथन के लिए विवश कर देती है।

उनकी लेखनी में धर्म का आग्रह नहीं, बल्कि अध्यात्म की सहज उपस्थिति होती है। वे भगवान साईं राम के परम भक्त हैं और उनका यह विश्वास निष्ठा की सीमाओं से परे जाकर श्रद्धा में बदल चुका है। वे मानते हैं कि जीवन में जो कुछ भी उन्हें प्राप्त हुआ — सम्मान, रचनात्मकता, ऊर्जा या अवसर — वह सब साईं की कृपा का ही प्रतिफल है। यह श्रद्धा केवल निजी आस्था तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उनके हर कार्य और व्यवहार में प्रतिध्वनित होती है।

सुदर्शन भाटिया जी की समाज सेवा की भावना भी उनके व्यक्तित्व का उतना ही मजबूत स्तंभ है। शनि सेवा सदन जैसे संस्थानों से उनका जुड़ाव केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि कर्मशील है। वे वहां न केवल तन-मन-धन से सेवा करते हैं, बल्कि आने वालों को सच्चे अर्थों में मार्गदर्शन और प्रेरणा भी देते हैं। वे सेवा को कोई अलग कर्म नहीं, बल्कि जीवन का स्वाभाविक धर्म मानते हैं — बिना दिखावे के, बिना अपेक्षा के।

आज जब समाज तेजी से आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है, ऐसे समय में भाटिया जी जैसे व्यक्तित्व हमें यह याद दिलाते हैं कि जीवन की सार्थकता केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उस विरासत में है जो हम दूसरों के लिए छोड़ जाते हैं — विचारों की, प्रेरणाओं की और सेवा की।

सुदर्शन भाटिया जी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि सेवानिवृत्ति कभी कार्यशक्ति का अंत नहीं होती। बल्कि यदि उद्देश्य स्पष्ट हो, श्रद्धा अडिग हो और सेवा का भाव प्रबल हो, तो जीवन का हर चरण एक नई शुरुआत बन सकता है। वे आज भी लिख रहे हैं, सोच रहे हैं, समाज के भीतर संवाद को जीवित रखे हुए हैं और अपने हर कर्म से यह साबित कर रहे हैं कि एक व्यक्ति, यदि संकल्पित हो, तो अकेला ही कई दिशाएं बदल सकता है।

 

 

भाटिया जी ने थुरल भ्रांता में श्रद्धा की छांव में निर्मित साई सेवा का आश्रय बनवाया

जब जीवन में किसी प्रिय की अनुपस्थिति एक स्थायी शून्य छोड़ जाती है, तब कुछ लोग उस रिक्तता को विलाप से भरते हैं, और कुछ बिरले लोग ऐसे होते हैं जो उस पीड़ा को सेवा में बदलकर अमरता की दिशा में एक नया मार्ग चुनते हैं। इंजीनियर सुदर्शन भाटिया जी इसी दुर्लभ श्रेणी के व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति को आँसू में नहीं, भक्तों की सुविधा और धर्म सेवा में साकार किया।

भाटिया जी की धर्मनिष्ठा और सत्य साईं भगवान में उनकी गहरी आस्था किसी से छिपी नहीं है। उनका पूरा जीवन साईं भक्ति, समाज सेवा और सत्कर्मों से आलोकित रहा है। वर्ष 2022 की पहली सितंबर को उनकी अर्धांगिनी श्रीमती जगदीश कौर का निधन हुआ — यह क्षण उनके जीवन का सबसे कठिन और संवेदनशील दौर रहा। लेकिन ठीक पंद्रह दिन बाद, उन्हें सत्य साईं की ओर से एक पत्र प्राप्त हुआ। यह कोई साधारण पत्र नहीं था, बल्कि जैसे स्वयं साईं भगवान की वाणी उस काग़ज़ पर उतर आई हो। पत्र में आदेश था कि वे अपनी स्वर्गीय पत्नी की पुण्य स्मृति में एक सराय का निर्माण करवाएं, जहां भक्तगण साईं भक्ति में लीन होकर कुछ समय विश्राम पा सकें।

इस आदेश को पाकर भाटिया जी का मन विचलित नहीं हुआ, बल्कि स्थिर और समर्पित हो उठा। उन्होंने इस पत्र को ईश्वर की प्रेरणा माना और उसी क्षण यह संकल्प लिया कि वे इस कार्य को साईं सेवा में अर्पित करेंगे। यथाशीघ्र पत्राचार की प्रक्रिया आरंभ हुई और पूरी निष्ठा के साथ थुरल (भ्रांता) स्थित साईं मंदिर परिसर में दो विश्राम कक्षों का निर्माण वर्ष 2024 में पूर्ण हुआ। यह निर्माण भौतिक दृष्टि से भले ही ईंट और पत्थर का रहा हो, परंतु आत्मिक रूप से यह भक्ति, श्रद्धा और स्मृति की अमर आकृति बन गया।

भाटिया जी बताते हैं कि यह सब उनकी अपनी क्षमता से नहीं, बल्कि साईं भगवान की प्रेरणा, कृपा और मार्गदर्शन से ही संभव हुआ। उन्होंने कभी यह नहीं माना कि उन्होंने कुछ “किया” है — बल्कि वे स्वयं को केवल एक माध्यम मानते हैं, जिसके हाथ में साईं ने सेवा का दीपक थमा दिया।

निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद एक और आदेश उन्हें प्राप्त हुआ — इस बार भी पत्र के माध्यम से, जैसे स्वयं साईं बाबा ने कहा हो कि इन कमरों का उद्घाटन तुम्हारे परिवार के ही हाथों हो, क्योंकि इस निर्माण में उनके परिजनों ने भी तन, मन और भाव से पूर्ण सहयोग दिया था। और फिर वह पावन तिथि 14 जून 2025 आई, जब विधिपूर्वक हवन, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ इन विश्राम कक्षों को साईं बाबा के चरणों में समर्पित कर दिया गया।

भाटिया जी ने उस अवसर पर जो शब्द कहे, वे आज भी श्रद्धालुओं के मन में गूंज रहे हैं — “इसमें मेरा कोई श्रेय नहीं है… यह सब साईं बाबा की कृपा, उनका आदेश और उनकी प्रेरणा है। मैं तो केवल निमित्त मात्र हूं।” उन्होंने आगे यह भी कहा कि जब तक सांसें चलेंगी, वे इसी प्रकार साईं सेवा में समर्पित रहेंगे, और यही उनका जीवन का ध्येय है।

यह घटना मात्र एक भवन निर्माण की नहीं है, यह उस भावना का प्रमाण है कि जब श्रद्धा सच्ची होती है और सेवा निःस्वार्थ, तो साक्षात ईश्वर स्वयं मार्ग प्रशस्त करते हैं। भाटिया जी की यह समर्पण-गाथा हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है जो किसी निजी पीड़ा से टूटता है — कि कैसे हम अपने दुःख को भी भक्ति और सेवा की ज्योति बना सकते हैं।

आज थुरल स्थित साईं मंदिर परिसर में खड़े वे दो कमरे केवल दीवारें नहीं हैं, वे एक प्रेम-पगी श्रद्धांजलि, एक नम्र भक्ति का प्रतीक, और भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं।

ऐसे में यह कहना कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सुदर्शन भाटिया जी केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा का स्रोत हैं — उन सभी के लिए जो जीवन को केवल जीना नहीं, जागरूक होकर जीना चाहते हैं।

भाटिया जी से बातचीत का वीडियो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके देखें👇👇👇👇👇👇👇

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