#जन्मन्च *पालमपुर बस स्टैंड: तस्वीरों में स्वर्ग, हकीकत में दिन रात का फ़र्क*
सवारी और यात्रियों की सुविधाओं का ध्यान अगर जिम्मेवार अधिकारी नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा?


पालमपुर बस स्टैंड: तस्वीरों में स्वर्ग, हकीकत में दिन रात का फ़र्क

जिस किसी ने भी कभी HRTC के पालमपुर बस स्टैंड की तस्वीरें देखी हैं, वह यह मानने को मजबूर हो जाता है कि हम किसी खूबसूरत पर्यटन स्थल की बात कर रहे हैं। सुंदर वादियों के बीच स्थित यह बस अड्डा फोटो में किसी स्वर्गिक स्थल जैसा नजर आता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि तस्वीरों में जो दिखता है, असलियत उससे कोसों दूर है। ज़मीनी हकीकत वह नहीं है जो प्रचार में दिखाई जाती है।
बस स्टैंड की स्थिति ऐसी है कि ज़रा सी बारिश होते ही पूरा परिसर किसी मछली पालन केंद्र में बदल जाता है। पानी जगह-जगह भर जाता है, कीचड़ से हाल बेहाल हो जाता है और यात्रियों को मजबूरी में अपने जूते-चप्पल उतारकर बसों में चढ़ना पड़ता है। दुकानदारों ने यह बात स्पष्ट रूप से कही है कि हर बारिश के बाद यही हाल होता है। जो तस्वीरें धूप में ली गई हैं, वे भी तीन-चार दिन पहले की बारिश के पानी को दिखा रही हैं—जो अब तक नहीं निकला।
बस स्टैंड के साथ ग्राउंड फ्लोर और ऊपरी मंज़िल पर कई ढाबे, खानपान की दुकानें और चाय के स्टॉल हैं, परन्तु उन दुकानों के किचन से निकलने वाले पानी की निकासी की कोई व्यवस्थित योजना नहीं है। कहीं नालियां टूटी हुई हैं, तो कहीं से गंदा पानी सीधे बस स्टैंड के प्लेटफॉर्म में बहता नजर आता है। यह न सिर्फ बदबू फैलाता है, बल्कि बीमारियों को भी न्योता देता है।
बसों के खड़े होने की जगह और सवारियों के चढ़ने-उतरने वाले प्लेटफॉर्म की हालत इतनी खराब है कि किसी भी तरफ खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है। गड्ढे, उखड़ी हुई सड़कें और असमान सतह यात्रियों के लिए असुविधा और जोखिम दोनों पैदा करती हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि पालमपुर बस स्टैंड पर बस में चढ़ने से पहले यात्री अपनी हड्डियों की टेस्टिंग करवा लेते हैं। जिस समय अन्य शहरों में बस स्टैंड की सर्विस सहज और सुलभ होती है, पालमपुर में यात्रा एक चुनौती बन जाती है।
अब बात इस बात की भी होनी चाहिए कि क्या HRTC को इस बस स्टैंड से कोई आय नहीं होती? बिल्कुल होती है। शायद लाखों रुपये का किराया हर महीने दुकानों और स्टॉल्स से आता होगा। मगर वह पैसा कहां जा रहा है? यात्रियों की सुविधा और दुकानदारों की सहूलियत पर वह खर्च क्यों नहीं हो रहा? स्टैंड के बाहर कंक्रीट रोड और पार्किंग प्लेटफार्म खस्ता हालत में क्यों?
ऐसा भी नहीं है कि यह सब अधिकारियों की नजर से ओझल है। R.M. साहब और विभागीय स्टाफ रोज़ इसी परिसर से गुजरते होंगे । वे खुद इन खामियों को अपनी आंखों से देखते हैं, परंतु आंखें मूंदे बैठे हैं। उनके लिए शायद यह सामान्य बात बन गई है कि जनता को परेशानी हो, दुकानदारों को तकलीफ हो—पर वे तो अपने आरामदायक दफ्तर में बैठे हैं, उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है।
जब तक मीडिया इस विषय को उजागर नहीं करता, तब तक कार्रवाई की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। पर अब सवाल यह उठता है कि क्या हम केवल रिपोर्ट बनाकर, तस्वीरें दिखाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लें?
जनता की यह उम्मीद है कि जिम्मेदार अधिकारी, स्थानीय प्रशासन और परिवहन निगम इस बस स्टैंड की दुर्दशा को गंभीरता से लें और तुरंत मरम्मत, सफाई और जल निकासी की प्रभावी व्यवस्था करें।
बस यात्रियों को यह हक है कि वे कीचड़ और गंदगी में चलकर नहीं, एक साफ़ और सुरक्षित वातावरण में सफर कर सकें। दुकानदारों को यह अधिकार है कि वे स्वच्छ, व्यवस्थित और सम्मानजनक स्थान पर अपने व्यवसाय को जारी रख सकें। और अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि वे जनता की इन मूलभूत जरूरतों की अनदेखी न करें।
पालमपुर बस स्टैंड को सुधारने की जरूरत है—तुरंत, बिना और देरी के। क्योंकि तस्वीरें चाहे जितनी भी सुंदर बना ली जाएं, हकीकत अगर गंदगी और अव्यवस्था से भरी हो, तो वह तस्वीरें जनता के साथ एक धोखा ही कहलाएंगी।
अब जनता पूछ रही है—बस स्टैंड का असली चेहरा कब सुधरेगा?