पालमपुर विधानसभा क्षेत्र में बुटेल परिवार या कांग्रेस का वर्चस्व क्यों ?
भाजपा को यहां के लिए बड़े बड़े प्रोजेक्ट लाने के बाबजूद क्यों नकारा जनता ने


पालमपुर विधानसभा क्षेत्र में बुटेल परिवार या कांग्रेस का वर्चस्व क्यों ?

भाजपा को यहां के लिए बड़े बड़े प्रोजेक्ट लाने के बाबजूद क्यों नकारा जनता ने
अभी तीन दिन पहले ही किसी कारण बस मेरा आशीष जी से मिलना हुआ और मैं तो आशीष जी की सादगी और बोलचाल से इतना प्रभावित हुआ कि मुझे आशीष जी के 2027 के उज्जवल भविष्य कहिए या जीत पर तनिक भी संदेह नहीं , यहां मैं एक और बात का जिक्र भी करना चाहूंगा कि आशीष जी की यादाश्त देखिए , कहते हैं अंकल कल आपका जन्म दिन भी था उसकी बधाई , कहीं फेस बुक या किसी चैनल में ही देखा होगा , इस हिसाब से तो ये लाला जी से भी दो कदम आगे हैं, अगर आशीष जी के नाम से ” बुटेल ” शब्द हटा भी दिया जाए तब भी आशीष अकेला ही सब पर भारी है , फिलवक्त भाजपा का कोई ऐसा नेता नहीं जो पालमपुर विधानसभा क्षेत्र में लोगों से मेल जोल रख रहा हो , सभी या तो कुंभकर्णी नींद सोय हैं या फिर आने वाले चुनाव का इंतजार कर रहे हैं , भाजपाई नेता या टिकट के चाहवान ये क्यों भूल रहे हैं कि जिसके साथ चुनाव लड़ना है ( चाहे टिकट किसी को भी मिले ) वो केवल एक प्रत्याशी ही नहीं बल्कि एक चट्टान है और चट्टान से सिर मरोगे तो उसका परिणाम क्या होगा ये समझने में देरी नहीं क्योंकि नेता लोग हैं इतना तो समझ ही गए होंगे और अगर बरसाती मेंढक बन कर ही आना होता है तो भी ये समझना चाहिए कि ये ” पब्लिक है ये सब जानती है ” कैसे पटक कर बाहर फेंकती है कि पांच साल दिखना तो दूर की बात इनकी तो टर्र टर्र तक भी सुनाई नहीं देती , भाजपा को इस सीट को हारने का सबसे बड़ा कारण ये भी रहा है कि दो बार पैराशूटी प्रत्याशी का उतारना बेशक इन्होने अपना आशियाना चुनाव की खातिर पालमपुर विधान सभा क्षेत्र में बना लिया हो
और इनके साथ साथ सभी नेता महानुभावों की नजर केवल विधायक की कुर्सी पर कहने का मतलब एक न होना और पार्टी नेता जब जब इकट्ठे हुए कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और इसका सबसे बड़ा कारण रहा , कांग्रेस द्वारा इमरजेंसी का लगाना , इसका कारण चाहे कोई भी रहा हो लेकिन इससे विपक्ष इकठ्ठा हुआ और यहां तक कि उस चुनाव में इंद्रा गांधी जी को भी राज नारायण जी से मात खानी पड़ी, उस वक्त पालमपुर से जीतते रहे सशक्त , लोकप्रिय और कर्मठ नेता स्वर्गीय श्री कुंजबिहारी लाल बुटेल जी , जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे स्वर्गीय चौधरी श्रवण कुमार जी से हार का सामना करना पड़ा , जब शांता जी ने दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा और दोनों से जीते तो उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी श्री हरनेक जी कांग्रेस के प्रत्याशी थे तो इनको स्वर्गीय डाक्टर शिव कुमार जी से हारना पड़ा, उसके बाद जब श्री शांता कुमार जी के राजनीतिक शिष्य श्री प्रवीन शर्मा जी को भाजपा ने श्री बृजबिहारी लाल बुटेल जी के मुकाबले में उतारा तो भाजपाई एक जुट हुए , क्योंकि तब श्री शांता जी का दव दवा भी चरम सीमा पर था और तब श्री प्रवीन शर्मा जी के मुकाबले सीट हारने का ग़म और हैरानगी केवल बुटेल साहब जी को ही नहीं हुई बल्कि हर सेवक और समर्थक को हुई , हां अब बात आई 27 के विधानसभा चुनावों की तो अब तक मेरी और जनता की राय के अनुसार भाजपा कहीं भी न दिखाई देती है न तो जीतती दिखाई देती है क्योंकि अभी तक केवल इनकी अपनी ही मीटिंग्स और कार्यप्रणाली है जिससे जनता को कोई सरोकार नहीं , संभावित प्रत्याशियों में इस बार धरती पुत्र और भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता , दो बार भाजपा के अध्यक्ष रहे जिला कार्यकारणी से लेकर प्रदेश की कार्यकारणी के सदस्य रहे , खलेट पंचायत के उप प्रधान रहे , रोड़ी ख़लेट सहकारी समिति के प्रधान रहे और जिनकी बहु श्रीमती हेमा ठाकुर ख़लेट पंचायत की काफी लीड से जीती प्रधान रही और अपनी पंचायत में घर घर से कूड़ा उठाने के कार्यक्रम को सफलता पूर्वक लागू कर कूड़ा संयंत्र लगवाने में भी सफल रही, अगर भाजपा श्री सुरेंद्र ठाकुर जी को मैदान में उतारती है तो श्री मति हेमा ठाकुर की उपलब्धियां भी इनके साथ जुड़ेंगी , पूर्व विधायक श्री प्रवीन शर्मा जी भी जो इस वक्त कई संस्थाओं से जुड़ कर और एक अपनी संस्था ” इंसाफ ” नाम से चला कर , जिसमें बड़े बड़े प्रबुद्ध जन जुड़े हैं, के द्वारा जनहित कार्यों में बराबर जुड़े हैं और क्षेत्र के प्रत्येक घर या व्यक्ति से अपना संपर्क बनाए हुए हैं, अगर भाजपा इनकी बगावत को भूल कर इनको प्रत्याशी बनाती है तो ये इन कार्यों और जन संपर्क का और पूर्व विधायक होने का लाभ उठाने की कोशिश करेंगे और बगावत का तर्क देते हुए कुछ नेताओं के नाम गिनवा सकते हैं जिन्हें बगावत के बाबजूद भी टिकट दिया और वो जेतू भी रहे, मैं केवल हिमाचली या भारतवासी हूं इस लिए मैं जातीय समीकरण को नहीं मानता ये जाती समीकरण का बटवारा केवल नेता लोगों का है जो न तो इस विधानसभा क्षेत्र में फिट बैठता है और न ही आजतक इस आधार पर जीत हार हुई , त्रिलोक जी भी टिकट के लिए अपना जुगाड़ तो जरूर फिट करेंगे , पिछले चुनाव में जहां वो वूल फेडरेशन के अध्यक्ष थे और उनको पार्टी की ओर से एक विधायक बाला रुतबा मिला हुआ था और पूरे विधानसभा क्षेत्र में काम भी करवाए और चुनाव समय सरकार का पूरा जोर और मेरे ख्याल में पार्टी चुनाव बजट का बहुत सारा खर्चा भी इसी सीट पर हुआ और पार्टी भी एक जुट भी दिखी फिर कमी कहां रही और क्यों हार का मुंह देखना पड़ा, इसका विश्लेषण तो त्रिलोक जी ने स्वयं भी और पार्टी शीर्ष के साथ भी किया ही होगा , रही सुश्री इंदु गोस्वामी की बात तो वो भी पालमपुर से आशीष जी के सामने नहीं टिक पाई हालांकि सुनने में आ रहा था कि भाजपा हाइ कमांड का इंदु को मुख्यमंत्री तक बनाने का प्रचार भी आशीष जी का बाल बांका नहीं कर पाया लेकिन इसके बाबजूद राज्य सभा सांसद का तोहफा उन्हें पार्टी द्वारा मिला तो वो तो यहां से टिकट के लिए क्यों सोचेंगी ,संजीव सोनी जी , जो व्यापार मंडल के प्रधान रह चुके हैं , भी जुगाड में हो सकते हैं लेकिन पार्टी बगावत की मोहर इनके ऊपर भी लगी है , श्री विनय शर्मा जी भी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता हैं मंडल अध्यक्ष के साथ विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं और टी बोर्ड के सदस्य भी हैं और इसी के साथ ही श्री घनश्याम शर्मा जिनकी पहचान कामगार बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में हैं टिकट की चाहत को कैसे छोड़ सकते हैं ? हां , ये केवल और केवल मेरा आंकलन है , भाजपा पालमपुर से किसको प्रत्याशी बनाती है ये पार्टी और पार्टी हाई कमांड की अपनी बात है , हां , मैं बहुत बार लिखता हूं कि लिखती बार मैं निष्पक्षता से लिखता हूं और लिखती बार मैं किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष का नहीं…

Dr.lekh Raj
Rodi Khalet Palampur