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*आयुर्वेद से अन्याय क्यों? हिमाचल सरकार ध्यान दे :डॉक्टर लेखराज शर्मा*

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आयुर्वेद से अन्याय क्यों? हिमाचल सरकार ध्यान दे

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मंत्री साहब जी ! बात तो हैरानगी की है कि ऐसा कौन सा आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र होगा जिसमें महीने भर में सो मरीज भी नहीं हैं या तो वहां पर डाक्टर नहीं है या फिर दवाइयों की कमी है , गोमा साहब ! मैं आपकी बात से आपके फैसले से बिल्कुल भी सहमत नहीं और मेरे जैसे ए. एम . ओ. जो सेवा निवृत हैं या सेवारत या इलाका वासी आपके इस बेतुके फरमान से सहमत नहीं हो सकते ,जिस ए.एच. सी. में एक डाक्टर , एक फार्मासिस्ट, एक ए.एन. एम. एक क्लास फोर तैनात हो फिर सो मरीज की हाजरी महीना भर में नहीं है, ये बात किसी को भी हजम नहीं होगी , आप बंद करने के बदले वहां पर दवाइयों की आपूर्ति सुनिश्चित करें,क्योंकि हमारे इन हेल्थ सेंटर में बाहर से दवाई खरीदने का न कोई प्रावधान है न ही प्रयोजन , जो स्टॉक में होता है उसी से काम चलाने पड़ता है, फिर एक साल तक देखें , अभी आपकी ही सरकार है , लोगों की आयुर्वेद और आयुर्वेदिक इलाज पर गहरी आस्था है और कई रोगों का इलाज केवल और केवल आयुर्वेद में ही है जैसे गठिया और जिसका आर. ए. फैक्टर पॉजिटिव हो जाए , यहां मैं एक बात बताना चाहता हूं जब सरदार बूटा सिंह जी गृह मंत्री थे उनकी धर्मपत्नी गठिया से पीड़ित थीं तो मंत्री स्वर्गीय पंडित संत राम जी के द्वारा उन्होंने मेरे पिता जी से संपर्क किया और पंडित जी ही पिता जी को अपने साथ दिल्ली ले गए और श्रीमती बूटा सिंह जी की धर्म पत्नी को आराम आया इस बात के गवाह हमारे आदरणीय रमेश भाऊ जी हैं ,ये तो मैंने एक उदाहरण दिया ,मेरी अपनी नौकरी के दौरान भी ऐसे ऐसे रोगी ठीक हुए जो कई हस्पतालों और डाक्टरों के चक्कर लगा चुके थे, आयुर्वेद कोई नई पद्धति नहीं , ये हजारों साल पुरानी पद्धति है जहां कि एलोपैथी की उम्र महज अभी तीन सो साल के लगभग है , इसका उदाहरण आपके कई आयुर्वेदिक स्वास्थ्यों केंद्रों पर मिल जाएगा , मैं भी ए.एम. ओ. के पद से सेवानिवृत हुआ हूं और आप महीने की बात छोड़िए रोज के सो से ऊपर ओ.पी.डी. होती थी और केवल मेरे पास ही नहीं जिला कांगड़ा के सभी केंद्रों में ऐसी ही बात थी और आज भी होगी , कभी तो शाम के छे तक भी बज जाते थे , आप बंद करने का इरादा फिलवक्त टालिए और हां जब मिली हुई सुविधा को आप लोगों से छीनेंगे तो हो सकता है जनता में आक्रोश हो और यही आक्रोश कोई आंदोलन का रूप लेले , सर ! आप आयुर्वेद पर आस्था पर प्रहार मत करिए , यही आपसे मेरी गुजारिश रहेगी , बंद करना बहुत आसान है लेकिन नए सिरे से खोलने की लंबी प्रक्रिया का आपको तो पता ही है , हां अगर आप चालीस सेंटर बंद कर रहे हैं तो उसमें चालीस सेंटर का डॉक्टर्स के साथ स्टाफ भी कहीं समायोजित करना पड़ेगा और जो डॉक्टर्स अभी सरकारी सेवा में जाने का इंतजार कर रहे हैं आप उनको भी निराश और निरुत्साहित कर रहे है और इनके साथ आप सीधे तौर पर अन्याय कर रहे हो क्योंकि चालीस पोस्ट तो वैसे ही घट गई और कई कई वर्षों बाद पोस्ट का विज्ञापन होता है , तो आप मंत्री होकर इसमें सुधार करने की सोचो इसके प्रसार की सोचो आप तो इसको मिटाने की सोच रहे हैं, एक बार फिर विचार अवश्य करिएगा , बंद बंद की नीति छोड़ो और सुधार लाओ

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