Editorial :जब नेता चुप रहे, तब संत बोले — हिमाचल के बाढ़ पीड़ितों के लिए ढडरियां वाले संत का बड़ा योगदान


जब नेता चुप रहे, तब संत बोले — हिमाचल के बाढ़ पीड़ितों के लिए ढडरियां वाले संत का बड़ा योगदान

हिमाचल प्रदेश जब बाढ़ जैसी विकट आपदा से जूझ रहा था, लोग अपना सबकुछ खोकर सड़कों पर आ गए थे, बच्चे भूखे थे, बुज़ुर्ग दवा को तरस रहे थे — उस समय देश के तमाम बड़े नेता, जिनके पास सरकारी सुविधाओं और निजी साधनों की भरमार है, सिर्फ बयानबाज़ी और औपचारिक दौरों तक सीमित रह गए। सत्ताधारी दल के नेता भी और विपक्षी दल के प्रतिनिधि भी, सब मौन साधे रहे। जो कहीं दिखाई दिए भी, वे केवल सरकारी तंत्र के माध्यम से आई राहत सामग्री को ‘अपना’ बताकर कैमरों के सामने खड़े हो गए।
किसी भी मंत्री, विधायक या सांसद ने अब तक अपने निजी खाते से एक धेला भी बाढ़ राहत के लिए नहीं दिया है। जनता की मेहनत से चुने गए जनप्रतिनिधि आपदा की घड़ी में जनता के साथ नहीं, सत्ता की सुरक्षा में खड़े दिखाई दिए।
लेकिन इन सबके बीच एक नाम, एक चेहरा और एक कर्म प्रमुखता से उभरकर सामने आया — संत रणजीत सिंह ढडरियां वाले।
न शोर, न प्रचार — सीधे ₹2 करोड़ की आर्थिक सहायता का ऐलान और उसके साथ 5 ट्रकों में भरकर भेजी जा रही आवश्यक राहत सामग्री। कोई दिखावा नहीं, कोई मंच नहीं — सिर्फ मानवता का धर्म और सेवा की भावना।
ढडरियां वाले संत राजनीति से दूर रहते हैं। न चुनाव, न समर्थन — केवल सेवा का पथ। उन्होंने हिमाचल की पीड़ा को महसूस किया और अपनी ओर से वह किया जो सत्ता में बैठे बड़े-बड़े मंत्री अब तक नहीं कर सके।
यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। क्या नेता केवल चुनावों के समय हमारे दरवाजे तक आते हैं? जब हमें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तो वे कहां होते हैं? क्या उनकी संवेदनशीलता सिर्फ भाषणों तक सीमित है?
संत ढडरियां वाले का यह कदम नेताओं के लिए सिर्फ प्रेरणा नहीं, बल्कि आत्ममंथन का विषय होना चाहिए। जब एक संत करोड़ों की सहायता कर सकता है, तब करोड़ों की संपत्ति घोषित करने वाले नेता क्या कर रहे हैं?
यह सेवा नहीं, चेतावनी है — उन लोगों के लिए जो अपने पद को गौरव समझते हैं पर जनता के दुःख में भागीदार नहीं बनते।
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