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*ऋषि सूद: सुरों में साधना, संस्कारों में सेवा, समाज में समर्पण*

 

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ऋषि सूद: सुरों में साधना, संस्कारों में सेवा, समाज में समर्पण

Tct ,bksood, chief editor

कांगड़ा की सुरम्य वादियों में सिर्फ फूलों की खुशबू नहीं बहती, बल्कि यहां ऐसी शख्सियतों की महक भी महसूस होती है, जो अपने जीवन से समाज को दिशा दे रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है — ऋषि सूद। एक ऐसा युवा जो न केवल संगीत में साधना कर रहा है, बल्कि अपने संस्कार, सेवा भाव और समाज के प्रति समर्पण से भी एक प्रेरणा बन चुका है।

ऋषि का रिश्ता संगीत से केवल पेशेवर नहीं, आत्मिक है। उन्होंने संगीत को साधना की तरह जिया है। उनकी गायकी में लोकसंस्कृति की मिट्टी की महक है, भक्ति का भाव है और समाज की चेतना है। “Ik Kudi Meenu” में मासूमियत है, तो “Shiv Shankra Mere Bholeya” में ईश्वरीय भक्ति की गहराई। “Mettran Jo Chdya Saroor” में जहां पंजाबी मस्ती और भावनात्मकता का मेल है, वहीं “Naina Devi Mandir Pyara Ho” में हिमाचल की आस्था और श्रद्धा बोलती है। उनकी चार म्यूज़िक एलबम आज डिजिटल दुनिया में सराही जा रही हैं और इनसे उन्हें एक व्यापक श्रोतावर्ग का प्यार मिल रहा है।

ऋषि सूद द्वारा गाए कुछ प्रमुख गीत:

“इक कुड़ी मैनूं”
यह गीत एक मासूम और निश्छल प्रेम की भावना को दर्शाता है। इसमें एक ऐसी लड़की की बात होती है, जो सीधे दिल को छू जाती है। ऋषि की आवाज़ में इसका भाव और भी गहराई से उतरता है।

“शिव शंकरा मेरे भोलेया”
यह एक भक्ति गीत है, जिसमें भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था और श्रद्धा की झलक मिलती है। ऋषि सूद की गायन शैली इस गीत को न सिर्फ आध्यात्मिक बनाती है, बल्कि भक्तिभाव से भर देती है।

“मित्रां जो चढ़्या सुरूर”
यह गीत दोस्ती, जोश और जिंदादिली को समर्पित है। पंजाबी रंग में डूबा यह गीत ऋषि की गायन प्रतिभा को एक अलग अंदाज़ में पेश करता है। इसमें मस्ती है, ऊर्जा है और साथ ही मेलजोल की मिठास भी।

“नैना देवी मंदिर प्यारा हो”
यह गीत हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध शक्तिपीठ नैना देवी मंदिर को समर्पित है। इसमें न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि उस स्थान की सांस्कृतिक गरिमा भी अभिव्यक्त होती है। गीत को सुनते हुए जैसे दर्शन हो जाते हैं।

लेकिन ऋषि की पहचान केवल सुरों तक सीमित नहीं। वे एक सफल व्यवसायी भी हैं, जिनके व्यापार तीन प्रमुख शहरों में फैले हैं। उन्होंने व्यापार को केवल लाभ का माध्यम नहीं, समाज सेवा का ज़रिया बनाया है। उनके व्यवसाय से कई लोगों को रोज़गार मिला है, और यही उनकी दूरदर्शिता और सामाजिक सोच को दर्शाता है। उनका मानना है कि असली सफलता वो है, जो केवल खुद को नहीं, औरों को भी ऊपर उठाए।

सेवा की बात हो तो ऋषि सूद हर बार सबसे आगे दिखाई देते हैं। किसी को दवा की ज़रूरत हो, किसी बच्चे की फीस भरनी हो, किसी गरीब परिवार को राहत देनी हो — ऋषि चुपचाप, बिना प्रचार के मदद करते हैं। उनके लिए सेवा कोई अवसर नहीं, जीवनशैली है। वे तन, मन और धन से सेवा को निभाते हैं। यही बात उन्हें एक सामान्य कलाकार से ऊपर उठाकर समाज का सांस्कृतिक और नैतिक पथप्रदर्शक बनाती है।

पारिवारिक जीवन में ऋषि श्रवण कुमार की छवि जैसे प्रतीत होते हैं। वे अपने माता-पिता को ईश्वर तुल्य मानते हैं और हर निर्णय में उनका आशीर्वाद व राय लेना अनिवार्य मानते हैं। आज जब समाज में पारिवारिक मूल्यों का क्षरण देखा जा रहा है, ऋषि उन विरले युवाओं में से हैं जो परिवार को अपनी आत्मा मानते हैं। उनकी यह निष्ठा सिर्फ दिखावा नहीं, उनकी सोच और जीवन का हिस्सा है।

सामाजिक जीवन में भी उनकी भागीदारी उतनी ही गहरी है। सूद सभा पालमपुर के वे एक मजबूत स्तंभ हैं। चाहे धार्मिक आयोजन हो या सांस्कृतिक कार्यक्रम, ऋषि अपनी उपस्थिति, योगदान और समय से संस्था को सशक्त करते रहते हैं। वे न केवल आर्थिक सहयोग देते हैं, बल्कि कार्यक्रमों की योजना, प्रबंधन और क्रियान्वयन में भी सक्रिय रहते हैं। उनकी सहभागिता संस्था के लिए ऊर्जा का स्रोत बन चुकी है।

ऋषि के व्यक्तित्व में कोई बनावट नहीं। सादगी, विनम्रता और गरिमा उनके स्वभाव की सहज विशेषताएं हैं। वे शब्दों से ज़्यादा अपने कर्मों से बोलते हैं। इसी कारण वे हर आयु, वर्ग और सोच के लोगों में प्रिय हैं। उनसे मिलकर न केवल प्रेरणा मिलती है, बल्कि एक शांति, एक सकारात्मक ऊर्जा भी महसूस होती है।

आज जब अधिकांश युवा सोशल मीडिया पर दिखावे और शॉर्टकट वाली सफलता के पीछे भाग रहे हैं, ऋषि सूद अपने संगीत, सेवा और संस्कारों के साथ यह सिद्ध कर रहे हैं कि सच्ची सफलता वही है, जो दूसरों के जीवन को छू ले, उसे बेहतर बनाए।

ऋषि सूद की यात्रा सिर्फ सुरों की नहीं है। वह एक ऐसे पथ की यात्रा है, जिसमें समाज, संस्कृति और संवेदना की साझी धड़कन शामिल है। वे सिर्फ एक गायक नहीं, एक ऐसी आवाज़ हैं जो रिश्तों, मूल्यों और मानवता को जीवित रखती है।

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