*जिस राज्य ने अंतिम रूप दिया ICAR मॉडल एक्ट 2023, वही अब इसे अपनाने से कर रहा है इंकार* *प्रोफेसर सरयाल*


*जिस राज्य ने अंतिम रूप दिया ICAR मॉडल एक्ट 2023, वही अब इसे अपनाने से कर रहा है इंकार* *प्रोफेसर सरयाल*

पालमपुर: एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में, वही राज्य जिसने ICAR मॉडल एक्ट 2023 को अंतिम रूप देने में अहम भूमिका निभाई थी, अब इसके क्रियान्वयन से पीछे हट रहा है। इस फैसले ने कृषि शिक्षा विशेषज्ञों और देशभर के हितधारकों में बहस छेड़ दी है।
प्रोफेसर अशोक सरयाल पूर्व कुलपति कृषि विश्व विद्यालय, पालमपुर ने बताया भारत के राज्य कृषि विश्वविद्यालय (SAUs) और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (CAUs) एक अनूठी लैंड ग्रांट गवर्नेंस प्रणाली का पालन करते हैं। यह व्यवस्था वर्ष 1960 में पहले SAU की स्थापना के साथ शुरू हुई। प्रशासनिक और शैक्षणिक संचालन के लिए समान कानूनी ढांचा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने वर्ष 1966 में मॉडल एक्ट लागू किया था। इसके बाद इसमें 1984, 1994, 2009 और हाल ही में 2023 में संशोधन किए गए।
प्रोफेसर सरयाल के अनुसार मॉडल एक्ट का मुख्य उद्देश्य कृषि विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता, जवाबदेही और उच्च शैक्षणिक मानकों को सुनिश्चित करना है। नवीनतम संशोधन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को कृषि शिक्षा में लागू करने की ICAR रणनीति के अनुरूप किया गया, ताकि वैश्विक शिक्षा प्रवृत्तियों के साथ तालमेल बनाए रखा जा सके।
हालांकि ICAR द्वारा बार-बार जोर देने के बावजूद, अधिनियम का समान रूप से क्रियान्वयन अब तक संतोषजनक नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे प्रशासनिक ढांचे, शैक्षणिक जवाबदेही और शिक्षक/छात्र गतिशीलता में व्यापक असमानता उत्पन्न हो रही है। इसे कृषि विश्वविद्यालयों की पीयर रिव्यू रिपोर्टों में बार-बार रेखांकित किया गया है। “ऐसी असमानताएं अकादमिक इनब्रीडिंग और संकीर्णता पैदा करती हैं, जो नवाचार और गुणवत्ता में बाधा डालती हैं,” एक विशेषज्ञ ने कहा।
2023 का संशोधन व्यापक परामर्श के बाद तैयार किया गया। इस कार्य का नेतृत्व डॉ. एस.एस. चहल, यूजीसी राष्ट्रीय फेलो और कई विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति ने किया। इसमें विश्वविद्यालय प्रशासकों, शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों की राय शामिल की गई। साथ ही आईएयूए वार्षिक सम्मेलन के दौरान विचार-विमर्श किया गया, जो जून 2019 में पालमपुर में “ICAR मॉडल एक्ट संशोधन” विषय पर आयोजित हुआ था।
विडंबना यह है कि जिस राज्य में यह ऐतिहासिक संशोधन अंतिम रूप दिया गया, वही अब इसे अपनाने से पीछे हट रहा है। राज्य सरकार का तर्क है कि चूंकि वह कृषि और बागवानी विश्वविद्यालयों को अनुदान (grant-in-aid) देती है, इसलिए उसे कुलपति की नियुक्ति सहित महत्वपूर्ण निर्णयों में भूमिका मिलनी चाहिए। परंपरागत रूप से, ICAR मॉडल एक्ट के अनुसार, कुलपति की नियुक्ति कुलाधिपति (Governor) द्वारा उस चयन समिति की अनुशंसा पर होती रही है, जिसमें कुलाधिपति का नामांकित सदस्य, ICAR के महानिदेशक और यूजीसी अध्यक्ष या उनके नामांकित सदस्य शामिल होते हैं।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह रुख गंभीर परिणाम ला सकता है। कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs), विस्तार निदेशालय और अनुसंधान परियोजनाओं के लिए अधिकांश धनराशि, साथ ही ICAR योजनाओं के तहत कर्मचारियों के वेतन का प्रावधान ICAR बजट से किया जाता है। मॉडल एक्ट को न अपनाने से भविष्य में इन वित्तीय प्रावधानों पर असर पड़ सकता है।
“यह कदम समान गवर्नेंस और स्वायत्तता की अवधारणा को कमजोर करता है, जो शैक्षणिक उत्कृष्टता और गतिशीलता के लिए महत्वपूर्ण है,” एक वरिष्ठ शिक्षाविद ने कहा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अधिनियम को अपनाने से इनकार करने वाले राज्य विश्वसनीयता और ICAR से मिलने वाले महत्वपूर्ण वित्तीय समर्थन दोनों को खतरे में डाल सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बहु-विषयक और वैश्विक प्रतिस्पर्धी शिक्षा मॉडल को आगे बढ़ा रही है, इसलिए ICAR मॉडल एक्ट 2023 के तहत समरूपता आवश्यक है, ताकि कृषि शिक्षा में बिखराव रोका जा सके और गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।