

संपादकीय लेख by :bk sood
आपदा का असली जिम्मेदार कौन – फोरलेन या हमारी लापरवाही?
(ट्राई सिटी टाइम्स)

हिमाचल प्रदेश में आई आपदाओं पर बहस हमेशा एक ही बिंदु पर आकर ठहर जाती है – “फोरलेन ही इसका कारण है।” लेकिन सच यह है कि आपदा केवल उन्हीं क्षेत्रों तक सीमित नहीं है जहां फोरलेन बना है। कुल्लू और मंडी में तो फोरलेन के किनारे नुकसान हुआ, लेकिन चंबा जैसे जिलों में, जहां फोरलेन नाम की कोई परियोजना ही नहीं है, वहां भी भारी बारिश और भूस्खलन ने उतनी ही तबाही मचाई। यह साफ संकेत है कि असली कारण कहीं और है।
दरअसल, पहाड़ों पर सबसे बड़ा संकट अनियोजित निर्माणों का है। ब्यास नदी के किनारे कुल्लू-मनाली मार्ग पर बने कई होटल और दुकानों को इस बार की बाढ़ ने निगल लिया। मंडी में नालों पर खड़े ढांचे बह गए। चंबा में भी खड्डों और नदियों के किनारे बने घर मलबे में दब गए। सवाल यह उठता है कि जब नियम साफ कहते हैं कि नदियों के बहाव क्षेत्र में निर्माण नहीं होना चाहिए, तो फिर ऐसी इजाज़तें किसने और क्यों दीं?
पोकलेन मशीनों से पहाड़ काटने पर भी सवाल उठते हैं। सही बात है कि बिना इंजीनियरिंग मानकों के अंधाधुंध कटिंग खतरनाक है। लेकिन यह तय करना कि कहां, कैसे और कितनी कटिंग होगी – यह काम प्रशिक्षित इंजीनियरों का है, न कि आम जनमानस की अटकलों का। दुर्भाग्य यह है कि कई बार तकनीकी सुझावों को ठेकेदारों और राजनीति ने दरकिनार कर दिया।
अब सवाल जिम्मेदारी का है –
1. क्या नदियों और नालों के किनारे निर्माण की अनुमति देने वाले विभाग जवाब देंगे?
2. क्या सरकार आपदा प्रबंधन योजनाओं को जमीन पर उतारेगी या फाइलों में ही दबाए रखेगी?
3. क्या ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत की जांच होगी?
4. क्या जनता भी नियम तोड़कर घर-दुकान खड़ी करने की गलती मानने को तैयार है?
यह मान लेना आसान है कि आपदा केवल प्रकृति की मार है। लेकिन असली सच्चाई यह है कि इंसानी लालच, लापरवाह नीतियां और भ्रष्ट व्यवस्थाएं इस आपदा को कई गुना बढ़ा देती हैं। कुल्लू, मंडी और चंबा की घटनाएं यही साबित करती हैं।
अब वक्त है कि दोषारोपण का खेल बंद हो और असली बहस इस पर हो कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। वरना आने वाली हर बरसात पहाड़ों पर कहर बनकर बरसेगी।