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Editorial *स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल का विवादित विदेश दौरा रद्द*

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स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल का विवादित विदेश दौरा रद्द

Tct ,bksood, chief editor

हिमाचल की राजनीति में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा का विषय स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल का प्रस्तावित विदेश दौरा है। सरकार की अधिसूचना के अनुसार यह दौरा 2 से 11 अक्तूबर तक लंदन और फ्रांस में होना था, जहां दस सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल स्वास्थ्य सेवाओं का अध्ययन करता। उद्देश्य यह बताया गया कि प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को आधुनिक और प्रभावी बनाने के लिए विदेशी मॉडलों को देखा-समझा जाए।

लेकिन जैसे ही अधिसूचना सार्वजनिक हुई, सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा हो गया। विपक्ष के नेता ठाकुर जय राम ने इसे आपदा और वित्तीय संकट की घड़ी में फिजूलखर्ची करार दिया। सवाल सबसे ज्यादा मंत्री के बेटे की मौजूदगी पर उठे, जिन्हें अधिसूचना में ‘अकम्प्लिश’ लिखा गया था। यह तर्क दिया गया कि न वे निर्वाचित हैं, न किसी सरकारी पद पर, तो सरकारी प्रतिनिधिमंडल में उनका नाम क्यों शामिल हुआ।

यही वह बिंदु था जिसने पूरे मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया। मगर मंत्री धनीराम शांडिल का पक्ष सामने आने पर तस्वीर उतनी एकतरफा नहीं लगती। उन्होंने साफ किया कि उनके पुत्र किसी सरकारी खर्च पर नहीं, बल्कि निजी व्यय से यात्रा करने वाले थे। कई मीडिया रिपोर्टों ने भी इस बयान की पुष्टि की। अगर यह सही है, तो फिर सरकारी धन के दुरुपयोग का सवाल ही नहीं उठता। असली गलती यह रही कि अधिसूचना में इस बात का स्पष्ट उल्लेख नहीं था। पारदर्शिता की यही कमी विरोधियों के लिए हमला बोलने का आसान हथियार बन गई।

यह भी कम अहम नहीं कि विवाद भड़कते ही सरकार ने दौरे को रद्द करने में देर नहीं लगाई। यदि यह केवल व्यक्तिगत स्वार्थ की योजना होती, तो इतनी आसानी से पीछे हटना मुश्किल था। रद्द करने का निर्णय यह दिखाता है कि आलोचना को गंभीरता से लिया गया और जनभावना को प्राथमिकता दी गई।

सच यह है कि कर्नल धनीराम शांडिल का घोषित उद्देश्य विदेश से सीख लेकर हिमाचल की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करना था। बुनियादी सुविधाओं की कमी, डॉक्टरों और तकनीशियनों की रिक्तियां और स्वास्थ्य संस्थानों की जर्जर हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अध्ययन दौरे का विचार बेमानी नहीं कहा जा सकता। लेकिन जब वित्तीय संकट और आपदा की स्थिति साथ खड़ी हो, तो लोगों को यह खर्च गैर-जरूरी लगता है।

इस पूरे विवाद से एक ही बात साफ होती है—पारदर्शिता की कमी सबसे बड़ी गलती थी। यदि अधिसूचना में यह स्पष्ट कर दिया जाता कि कौन सरकारी खर्चे पर जा रहा है और कौन निजी व्यय से, तो शायद इतना बवाल खड़ा ही न होता।

इसलिए धनीराम शांडिल को दोषी ठहराना जल्दबाज़ी होगी। हाँ, प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनशील समय का गलत चुनाव जरूर हुआ है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि सरकार को न केवल सही काम करना चाहिए बल्कि उसे सही तरीके से दिखाना भी चाहिए।

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