*अमोलक संग्राय जी : धर्म, करुणा और संवेदनशीलता की अनुपम छवि*


अमोलक संग्राय जी : धर्म, करुणा और संवेदनशीलता की अनुपम छवि

पालमपुर के बन्दला गांव की धरती पर जन्मे और पले-बढ़े अमोलक संग्राय जी आज ऐसी विभूति हैं जिनका जीवन ही सेवा, संवेदना और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया है। उनकी पहचान केवल एक धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की नहीं है, बल्कि वे मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण एक ऐसे सहृदय इंसान हैं जो किसी भी दुख को देखना या सुनना सहन नहीं कर सकते। यदि उन्हें किसी के दुख की आहट भी मिल जाए तो वे बिना किसी हिचकिचाहट के उसकी हरसंभव मदद करने को तत्पर हो जाते हैं।
धार्मिक कार्यों और आध्यात्मिक समागमों के आयोजन में अमोलक संग्राय जी सदैव अग्रणी रहते हैं। उन्होंने अपने जीवन में लाखों रुपए ऐसे आयोजनों में खर्च कर दिए हैं और यह उनके लिए कोई बोझ नहीं, बल्कि आस्था और संतोष का विषय है। हिंदू धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा हिमालय पर्वत के समान अडिग और अटल है। अपने धर्म के लिए वे सदैव समर्पित रहते हैं। विशेष बात यह है कि वे किसी भी धर्म के प्रति विरोध या कटुता का भाव नहीं रखते, अपितु सभी का सम्मान करते हैं, किन्तु अपने सनातन धर्म के प्रति उनकी आस्था, निष्ठा और विश्वास बेहद गहरा, संवेदनशील और अनुकरणीय है।
धार्मिक संस्थाओं से गहरे रूप से जुड़े रहने के साथ-साथ अमोलक संग्राय जी सामाजिक संस्थाओं में भी सक्रिय रहते हैं। उनका उद्देश्य हमेशा यही रहता है कि अधिक से अधिक लोगों तक सहायता और सहयोग पहुँचे। इसी क्रम में उनका शनि सेवा सदन के साथ विशेष और पुराना रिश्ता है। वे समय-समय पर शनि सेवा सदन को आर्थिक सहयोग, प्रेरणा और अपना आशीर्वाद प्रदान करते रहते हैं।
शनि सेवा सदन के प्रमुख परमेन्द्र भाटिया सदैव अपने मार्गदर्शकों और वरिष्ठजनों से आशीर्वाद लेने की परंपरा निभाते हैं। इसी कड़ी में दो दिन पूर्व उन्होंने अमोलक संग्राय जी से भेंट की। इस भेंट में अमोलक संग्राय जी ने 96 वर्ष की आयु में भी भरपूर उत्साह और आत्मीयता के साथ भाटिया जी को आशीर्वाद दिया। उनका यह स्नेह और मार्गदर्शन न केवल शनि सेवा सदन के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।
आज 96 वर्ष की आयु में भी अमोलक संग्राय जी स्वस्थ, प्रसन्न और सक्रिय हैं। इसका रहस्य उनकी सकारात्मक सोच और मानवता के प्रति उनका करुणामय हृदय है। वे हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं और यही सकारात्मक दृष्टिकोण उन्हें जीवन्तता और उत्साह से भर देता है।
उनकी विशेषता यह है कि इस उम्र में भी वे धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में पीछे नहीं हटते। चाहे भागवत कथा हो, धार्मिक आयोजन हों या भव्य समागम—अमोलक संग्राय जी हर जगह अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं और न केवल आयोजन करते हैं बल्कि अपने योगदान से इन्हें सफल बनाते हैं। यही कारण है कि उनका नाम श्रद्धा, संवेदना और धर्मपरायणता का पर्याय बन गया है।
अमोलक संग्राय जी वास्तव में समाज के लिए जीवित प्रेरणा हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि यदि हृदय में करुणा और धर्म के प्रति अडिग आस्था हो तो उम्र महज़ एक संख्या रह जाती है। बन्दला की यह महान विभूति आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।