

जनहित की आवाज़: कब मिलेगी सड़क पर पैदल चलने वालों को सुरक्षा और न्याय?

— ट्राई सिटी टाइम्स (Tri City Times)
कई वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई थी। इस याचिका का उद्देश्य था कि सड़कों पर पैदल चलने वाले लोगों को दाईं ओर चलने का कानूनी अधिकार मिले, ताकि वे सामने से आती गाड़ियों को देख सकें और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें। यह तर्क बेहद व्यावहारिक था — क्योंकि जो व्यक्ति सड़क पर बाईं ओर चलता है, उसे पीछे से आने वाले वाहन दिखाई नहीं देते, और कई बार ऐसी दुर्घटनाओं में निर्दोष लोगों की जान चली जाती है।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि कई साल बीत जाने के बाद अब जाकर इस मामले पर सुनवाई हुई है। यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब कुत्तों से जुड़े मामलों पर कुछ ही दिनों में सुनवाई हो जाती है, तब ऐसे जनजीवन से जुड़े अहम विषयों पर न्यायपालिका इतनी धीमी क्यों पड़ जाती है?
देश के हजारों शहरों और कस्बों में पैदल चलना आज जोखिम भरा काम बन गया है।
फुटपाथ या तो अवैध कब्जों में हैं, या पार्किंग स्थलों में तब्दील कर दिए गए हैं।
हर दिन सैकड़ों लोग सड़कों पर चलते हुए दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं, पर इस पर ना कोई ठोस कानून बनता है, ना प्रशासन कोई ठोस कदम उठाता है।
सड़कों के गड्ढों, अवारा पशुओं, और लापरवाह ड्राइविंग के चलते आम आदमी की जान जाना अब मानो “सिस्टम की स्वीकृति” बन चुकी है।
डॉक्टरों की लापरवाहियां, अधिकारियों की उदासीनता, और नीतियों की निष्क्रियता हर साल हजारों घरों को उजाड़ देती हैं, लेकिन किसी स्तर पर कोई जवाबदेही तय नहीं होती।
विडंबना यह है कि जब समाज के कुछ वर्ग किसी मुद्दे पर शोर मचाते हैं — चाहे वह मुद्दा कितना ही तुच्छ क्यों न हो — वहां अदालतें भी तुरंत सक्रिय हो जाती हैं। लेकिन जहां जनता की जान का सवाल है, वहां सब मौन और सुस्त नज़र आते हैं।
अब वक्त आ गया है कि न्यायपालिका और सरकार दोनों यह समझें कि सड़कें सिर्फ गाड़ियों के लिए नहीं हैं।
उन पर चलने का हक़ पैदल यात्री, बुजुर्ग, महिलाएं, और बच्चे — सबका समान रूप से है।
अगर हर साल हजारों लोग केवल इस वजह से मारे जा रहे हैं कि वे सड़क पर “सही दिशा में चल नहीं पाए”, तो यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं — बल्कि सिस्टम की असफलता है।
अब सवाल यह है:
कब तक यह सुस्त व्यवस्था ऐसे ही चलती रहेगी?
कब तक फैसले दबाव में और प्रभाव में लिए जाते रहेंगे?
और कब तक आम जनता की मौतें सिर्फ आंकड़ों में सिमटती रहेंगी?
जब तक पैदल चलने वालों के अधिकारों को संवैधानिक सुरक्षा नहीं मिलेगी, तब तक सड़कें मौत के फंदे ही बनी रहेंगी।
— ट्राई सिटी टाइम्स (Tri City Times)
एक जबलपुर के रिटायर्ड इंजीनियर, ज्ञान प्रकाश द्वारा दायर याचिका का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट से सरकार को यह निर्देश देने की मांग करना है कि सड़कों पर पैदल चलने वालों को वाहनों की विपरीत दिशा में, यानी दाईं ओर चलने का कानूनी अधिकार मिले, ताकि सड़क सुरक्षा बढ़ाई जा सके और पैदल यात्रियों के लिए एक सुरक्षित ‘हाईवे सेफ्टी कोड’ बनाया जा सके।
याचिका के मुख्य बिंदु:
सुरक्षा बढ़ाने का लक्ष्य: याचिका का मूल उद्देश्य पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जो सड़कों पर गलत तरीके से चलने के कारण दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं।
कानूनी अधिकार की मांग: ज्ञान प्रकाश ने केंद्र सरकार से यातायात चिन्हों को सुधारने और यह स्पष्ट करने का निर्देश देने की मांग की है कि पैदल यात्री हमेशा दाईं ओर चलें।
“हाईवे सेफ्टी कोड” की आवश्यकता: याचिकाकर्ता एक ऐसे ‘हाईवे सेफ्टी कोड’ के निर्माण की भी मांग करते हैं, जिसमें पैदल चलने वालों सहित सड़क के सभी उपयोगकर्ताओं के लिए स्पष्ट नियम और दिशानिर्देश शामिल हों।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया:
नोटिस जारी: जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
अन्य संबंधित मामले: यह मामला सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसलों के अनुरूप है, जिसमें सड़कों पर पैदल चलने वालों के मौलिक अधिकारों को स्वीकार किया गया है और फुटपाथों को बाधा-मुक्त बनाने का निर्देश दिया गया है।
यह याचिका भारत में सड़क सुरक्षा के संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह पैदल चलने वालों की सुरक्षा और उनके सुरक्षित চলাगमन के अधिकारों पर प्रकाश डालती है




