खरड़: अव्यवस्थाओं की नगरी — गंदगी का साम्राज्य


खरड़: अव्यवस्थाओं की नगरी — गंदगी का साम्राज्य

ट्राई सिटी टाइम्स
खरड़–लाण्डरा रोड पर गंदगी और अव्यवस्थाओं का आलम यह बता रहा है कि यहां व्यवस्था नहीं, सड़ांध का शासन है। मोहाली को अक्सर चंडीगढ़ का छोटा भाई कहा जाता है, लेकिन अगर हालातों की कसौटी पर देखा जाए तो खरड़ आज अपने बड़े भाई को भी मात दे रहा है — चाहे बात गड्ढों की हो, जलभराव की, टूटे मैनहोल की या फिर सड़कों पर फैले कूड़े-कचरे की।
हर मोड़ पर सड़कों के किनारे जमा कूड़े के ढेर, खुले नाले और टूटी पाइपलाइनें इस बात का सबूत हैं कि नगर परिषद और प्रशासन केवल कागज़ों पर सक्रिय है। शिकायतें दर्ज होती हैं, सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल होती हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी जैसे नींद में हैं। जनता की नाकों पर बदबू और पैरों के नीचे कीचड़ — यही अब खरड़ की पहचान बन चुकी है।
हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टें बार-बार दिखा चुकी हैं कि खरड़ और लाण्डरा रोड क्षेत्र में जलभराव, सीवरेज लीकेज और सफाई की समस्या स्थायी रूप ले चुकी है। शिवालिक सिटी, जेटीपीएल और आसपास के इलाकों में बारिश के बाद सड़कें तालाब बन जाती हैं। डीसी द्वारा कई बार आदेश जारी किए जाने के बावजूद नालियों की सफाई और सड़क मरम्मत केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।
खुले पड़े मैनहोल जानलेवा खतरा बने हुए हैं। कभी किसी बच्चे का पांव फिसलता है, कभी कोई बुज़ुर्ग गिर जाता है, लेकिन नगर परिषद के रिकॉर्ड में सब “संतोषजनक” बताया जाता है। यही नहीं, सफाई कर्मचारियों की कमी और ठेकेदारों की लापरवाही ने सफाई व्यवस्था को मज़ाक बना दिया है। मशीनें खराब हैं, कूड़ा गाड़ियों में नहीं उठता और गली-मोहल्लों में सड़ांध फैलती रहती है।
यह केवल सफाई की समस्या नहीं, बल्कि प्रशासन की असंवेदनशीलता और नागरिकों की मजबूरी की कहानी है। सड़कें टूटी हैं, नालियां जाम हैं और हर तरफ ऐसा लगता है जैसे यह शहर किसी अदृश्य सरकार के भरोसे चल रहा हो। चंडीगढ़ जहां स्वच्छता रैंकिंग में शीर्ष पर है, वहीं मोहाली का यह हिस्सा देश के गंदे शहरों में शामिल हो सकता है, अगर वास्तविक आकलन किया जाए।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि अब उन्हें गंदगी के साथ जीने की आदत डालनी पड़ रही है। सफाई के ठेके हर साल नए सिरे से दिए जाते हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। यहां व्यवस्था नहीं, अव्यवस्था का संस्थागत रूप बन चुका है।
जरूरत है कि प्रशासन केवल बैठकों और आदेशों तक सीमित न रहे। खरड़ में सड़क किनारे पड़े कचरे को तुरंत उठाया जाए, मैनहोल ढक्कन लगाए जाएं, और सीवरेज सिस्टम की मरम्मत प्राथमिकता पर की जाए। जनता को भी आगे आना होगा — शिकायत करनी होगी, जिम्मेदारों से जवाब मांगना होगा और सफाई को केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, अपनी जरूरत मानना होगा।
खरड़ का हर निवासी आज यही कह रहा है — “विकास बाद में, पहले सफाई।”
जब तक यह सोच नहीं बदलेगी कि गंदगी हमारी नियति है, तब तक खरड़ की पहचान बदबू और अव्यवस्था से जुड़ी ही रहेगी। प्रशासन को यह समझना होगा कि शहर केवल टैक्स का अड्डा नहीं, बल्कि लोगों के जीवन की धड़कन है — और यह धड़कन फिलहाल कीचड़ और कूड़े में दब चुकी है।


