

*पालमपुर की राज्य स्तरीय होली में हिमाचली कलाकारों को मिले मंच — कम खर्च, ज्यादा प्रभाव और संस्कृति को सम्मान*

हिमाचल सरकार और पालमपुर प्रशासन से एक सादर प्रार्थना
: ट्राइसिटी टाइम्स मीडिया, पालमपुर — लेखक:- डॉ लेख राज शर्मा ,रोडी खलेट पालमपुर
इस बार हमारा परमपावन पर्व होली 4 मार्च 2026 को मनाया जाएगा। पालमपुर की होली को राज्य स्तरीय दर्जा प्राप्त है और हर वर्ष यहां सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। परंपरा रही है कि इन संध्याओं में प्रदेश सरकार के मंत्रीगण और कई बार स्वयं मुख्यमंत्री जी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होकर आयोजन की गरिमा बढ़ाते हैं। यह परंपरा निस्संदेह नगर का गौरव है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि इन आयोजनों में बाहर से महंगे कलाकारों को बुलाकर उन पर लाखों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद यह कोई निश्चितता नहीं रहती कि वे दर्शकों की भावना और रुचि के अनुरूप कार्यक्रम प्रस्तुत कर पाएं।
ऐसे में अब समय आ गया है कि पालमपुर प्रशासन और हिमाचल सरकार इस आयोजन में एक नई सोच और दिशा अपनाएं। कुल्लू दशहरा की तर्ज पर यदि पालमपुर की राज्य स्तरीय होली में भी हिमाचली कलाकारों और स्थानीय प्रतिभाओं को मंच दिया जाए, तो यह निर्णय न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक रूप से भी लाभकारी सिद्ध होगा। कुल्लू दशहरा समिति ने इस वर्ष आपदा की परिस्थिति को देखते हुए बाहर से महंगे कलाकारों को न बुलाकर अपने ही स्थानीय कलाकारों को अवसर दिया था, और परिणामस्वरूप कम खर्च में अधिक प्रभावशाली कार्यक्रम आयोजित हुआ। यह उदाहरण पालमपुर के लिए भी प्रेरणादायक हो सकता है।
हमारे हिमाचल के पास अपनी अनूठी सांस्कृतिक धरोहर है। आज पहाड़ी संगीत देश-विदेश में लोकप्रिय हो रहा है। लोग “तेरा मेरा लगन ओ सजना शिवें बनाया ओ” जैसे गीतों पर झूम उठते हैं, जिसे हमारे अपने गायक राज जैरी ने लिखा और गाया है। इसी तरह इशांत भारद्वाज का “चली कुड़मेट ओ” और कुमार विक्की का “बटुआ गुदणा दे ओ” आज हर कार्यक्रम की शान बन चुके हैं। इसके अलावा करनैल राणा और संजीव दीक्षित जैसे दिग्गज कलाकार वर्षों से हिमाचली संस्कृति की पहचान बने हुए हैं।
यदि इन्हीं जैसे कलाकारों को राज्य स्तरीय होली मंच पर गाने का अवसर दिया जाए, तो यह दर्शकों के लिए गर्व और आनंद दोनों का विषय होगा। उनकी भाषा, उनकी लय और उनकी बोली जनता के दिलों से सीधा जुड़ाव रखती है। पंडाल में बैठी जनता जब अपने ही कलाकारों को मंच पर देखेगी, तो वह न केवल झूमेगी बल्कि गर्व महसूस करेगी कि उनका कलाकार, उनकी मिट्टी का बेटा, आज राज्य स्तरीय मंच पर गा रहा है।
हिमाचली और स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता देने से न केवल सरकार का कीमती पैसा बचेगा, बल्कि इससे हिमाचल की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलेगा। अपने ही प्रदेश की प्रतिभाओं को सम्मान देने से उनमें आत्मविश्वास और प्रेरणा का संचार होगा, वे और बेहतर करने की ओर अग्रसर होंगे। वहीं दूसरी ओर, स्थानीय जनता भी इस उत्सव का आनंद और आत्मीयता से उठाएगी, क्योंकि जब मंच पर अपनी ही बोली, अपने गीत और अपनी ही परंपरा की गूंज होगी, तो वह होली सिर्फ रंगों की नहीं, बल्कि भावना और संस्कृति की सच्ची होली होगी।
पालमपुर प्रशासन को चाहिए कि इस वर्ष की सांस्कृतिक संध्याओं को केवल एक औपचारिक आयोजन न बनाकर हिमाचली कला, संगीत और लोकसंस्कृति का उत्सव बनाया जाए। यदि यह कदम उठाया गया तो यह “कम खर्च में ज्यादा प्रभाव” की मिसाल बनेगा और आने वाले वर्षों में अन्य आयोजनों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत सिद्ध होगा।
आशा है कि हिमाचल सरकार और पालमपुर प्रशासन इस संवेदनशील और सार्थक पहल पर गंभीरता से विचार करेंगे और इस बार की होली में मंच की रोशनी हिमाचल के अपने कलाकारों पर पड़ेगी — क्योंकि जब अपनी मिट्टी का कलाकार गाता है, तो पूरी धरती झूम उठती है।




