*हमीरपुर , सासन की चीख: दरिंदगी के आगे ‘नाबालिग’ का बहाना नहीं चलना चाहिए**


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हमीरपुर , सासन की चीख: दरिंदगी के आगे ‘नाबालिग’ का बहाना नहीं चलेगा
हमीरपुर की घटना ने झकझोरा — अब कानून को संवेदना नहीं, सख्ती दिखानी होगी

हमीरपुर के सासन गांव में हुई दर्दनाक घटना ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। खेत में काम कर रही एक महिला पर जिस तरह का हमला हुआ, वह इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला है। पीड़िता रंजना देवी, जो एक दिव्यांग पुत्र की मां थीं, अब इस दुनिया में नहीं हैं — और उनका बेटा अपने जीवन की सबसे बड़ी असहाय स्थिति में है।
घटना के बाद जो तथ्य सामने आए, वे और भी चिंताजनक हैं। बताया जा रहा है कि आरोपी को “नाबालिग” बताकर कुछ लोग उसे कानूनी ढाल देने की कोशिश कर रहे हैं। पर सवाल यह है कि क्या इतनी निर्मम और सुनियोजित दरिंदगी किसी मासूम या अपरिपक्व मानसिकता का परिणाम हो सकती है?
सासन के ग्रामीणों ने इस प्रयास पर कड़ा विरोध जताया है और आरोपी की उम्र की सत्यता पर संदेह जताते हुए उसका मेडिकल एज टेस्ट करवाने की मांग की है। जनता का यह सवाल न्याय व्यवस्था से सीधा है — “क्या कानून की संवेदनशीलता का लाभ उन लोगों को दिया जाना चाहिए जो उसकी मूल भावना को रौंदते हैं?”
ऐसे मामलों में न्याय तभी सार्थक होगा जब कानून का मानवीय पक्ष और न्याय का कठोर पक्ष एक साथ खड़े हों। ‘नाबालिग’ शब्द तब तक अर्थपूर्ण है जब तक उसका प्रयोग निर्दोषों की सुरक्षा के लिए हो, न कि अपराधियों को बचाने के लिए।
प्रशासन के लिए यह केवल एक केस नहीं, बल्कि समाज के भरोसे की परीक्षा है। हमीरपुर के लोगों का आक्रोश इस बात का प्रमाण है कि जनता अब प्रतीक्षा नहीं करना चाहती — वह ठोस कार्रवाई चाहती है, पारदर्शी जांच चाहती है और सबसे बढ़कर न्याय चाहती है।
जनअपील और प्रशासन से अपेक्षित कदम:
1. आरोपी की वास्तविक आयु की मेडिकल जांच तत्काल और पारदर्शी रूप से करवाई जाए ताकि न्यायिक प्रक्रिया सही दिशा में आगे बढ़ सके।
2. पीड़िता परिवार, विशेष रूप से दिव्यांग पुत्र को तत्काल आर्थिक सहायता और सरकारी संरक्षण दिया जाए।
3. जांच प्रक्रिया की सार्वजनिक मॉनिटरिंग की व्यवस्था हो ताकि अफवाहों को रोका जा सके और जनता का भरोसा बना रहे।
4. न्यायिक प्रणाली में सुधार — ऐसे मामलों में “नाबालिग” की परिभाषा की समीक्षा हो, ताकि अमानवीय अपराध करने वाले इसके दायरे में आकर कानून से बच न सकें।
यह केवल हमीरपुर का मामला नहीं — यह हर उस समाज का सवाल है जहाँ कानून की उदारता और अपराध की क्रूरता आमने-सामने खड़ी होती है।
न्याय तभी जीवित रहेगा जब वह संवेदना के साथ-साथ सख़्ती भी बरते।
(ट्राई सिटी टाइम्स संपादकीय टीम)



