#Shanta kumar*शांता जी के बयान पर लोग राजनीतिक रोटियां ना सेंके* Dr. Lekh Raj
Tct*शांता जी के बयान पर लोग राजनीतिक रोटियां ना सेंके*

पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री रहे शांता कुमार ने अपने 91वें जन्मदिन पर एक अंतिम इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वर्ष 2027 का लोकसभा चुनाव संभवतः उनके जीवन का अंतिम चुनाव होगा, क्योंकि बढ़ती उम्र के कारण वह अगला चुनाव नहीं देख पाएंगे। उनकी इच्छा है कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बने और विशेष रूप से पालमपुर विधानसभा सीट भी भाजपा के खाते में आए। उन्होंने कहा, “मैं हार कर प्रभु चरणों में नहीं जाना चाहता।”
यह बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया, और इसकी प्रतिध्वनि पूरे प्रदेश के साथ-साथ देशभर में सुनाई दी। हालाँकि, कुछ पत्रकारों ने इसे गलत समझते हुए यह प्रचारित कर दिया कि शांता कुमार स्वयं चुनाव लड़ना चाहते हैं, जबकि ऐसा नहीं था। बाद में पत्रकारों ने इस भ्रम को दूर भी कर दिया। वास्तव में, इस उम्र में उनके चुनाव मैदान में उतरने की कोई संभावना नहीं है।
कहा जाता है — “जब तक साँस, तब तक आस” — और राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ नेता कभी पूरी तरह से संन्यास नहीं लेते; चाहे वे स्वयं उतरें या किसी और को उतारें। शांता कुमार ने अपनी इस “अंतिम इच्छा” के माध्यम से यही दर्शाया है।
सर्वविदित है कि शांता कुमार अपने सिद्धांतों और राजनीतिक दूरदर्शिता के कारण न केवल एक कुशल राजनेता, बल्कि एक राजनीतिक रणनीतिकार भी माने जाते हैं। अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने “नो वर्क नो पे” (काम नहीं तो वेतन नहीं) नीति लागू करके कर्मचारी वर्ग में हलचल पैदा कर दी थी। भले ही शुरू में इसका जबरदस्त विरोध हुआ, लेकिन बाद में कई अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाया।
पालमपुर विधानसभा सीट को भाजपा के पक्ष में जिताने के लिए शांता कुमार ने एक प्रकार की सहानुभूतिपूर्ण अपील का सहारा लिया है। यह विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है। आज़ादी के बाद से यह सीट मुख्य रूप से कांग्रेस के प्रभावशाली बुटेल परिवार के पास रही है।
भाजपा को यहाँ केवल दो बार सफलता मिली — पहली बार 1977 में जनता पार्टी की लहर में, और दूसरी बार 1990 में, जब शांता कुमार ने दो सीटों — सुलाह और पालमपुर — से चुनाव लड़ा और पालमपुर सीट छोड़ दी, जिसके बाद उपचुनाव में भाजपा-समर्थित उम्मीदवार डॉ. शिव कुमार विजयी रहे। उसके बाद इस सीट से भाजपा को लगातार निराशा ही हाथ लगी।
लेकिन 2007 में एक बड़ा बदलाव आया, जब शांता कुमार के राजनीतिक शिष्य प्रवीण शर्मा ने पालमपुर सीट पर विजय प्राप्त की। यह घटना कांग्रेस के लिए तो अप्रत्याशित थी ही, भाजपा के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि थी। एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि के पत्रकार प्रवीण शर्मा का बृज बिहारी लाल बुटेल जैसे दिग्गज को हराना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था, वहीं भाजपा और शांता कुमार के लिए एक सुखद अचंभा।
अब सवाल यह उठता है कि अगले चुनाव में भाजपा की ओर से प्रत्याशी का चयन किस आधार पर होगा — क्या यह शांता कुमार की पसंद होगी या पार्टी कमांड की? साथ ही, “एक अनार और सौ बीमार” वाली स्थिति पैदा हो सकती है, जहाँ अनेक दावेदार शांता कुमार के आशीर्वाद की छाया में चुनाव लड़ने को उत्सुक होंगे। इससे पार्टी में आंतरिक प्रतिस्पर्धा और गुटबाजी की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जिससे “धरती पुत्र” बनाम “पैराशूट उम्मीदवार” का मुद्दा गरमा सकता है। टिकट चाहे जिसे भी मिले, यह आंतरिक कलह भाजपा की जीत के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो सकती है। फिर भी, यह आशा बनी हुई है कि शांता कुमार के प्रभाव से ऐसा नहीं होगा।
भाजपा की जीत की राह में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के प्रत्याशी आशीष बुटेल हैं, जो लगातार दो बार इस सीट से जीत चुके हैं और नगर निगम चुनावों में भी अपनी मजबूत पकड़ साबित कर चुके हैं। आशीष बुटेल की मिलनसारिता, शालीनता और जनसंपर्क की क्षमता उनकी बड़ी ताकत है। बुटेल उपनाम के अलावा भी, उनकी अपनी खूबियाँ हैं जो अब तक भाजपा के प्रत्याशियों पर भारी पड़ती रही हैं। विकास कार्यों में उनकी भूमिका और जनता के सुख-दुख में सहभागिता ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद, वह नेकदिल और कर्मठ माने जाते हैं।
वर्तमान परिदृश्य के विश्लेषण के अनुसार, शांता कुमार की अपील और समर्थन के बावजूद भाजपा की जीत की संभावना चुनौतीपूर्ण लगती है। एक और पहलू यह है कि कांग्रेस में भी असंतुष्ट कार्यकर्ता हो सकते हैं, और राजनीति में सभी को खुश रख पाना असंभव है। उदाहरण के लिए, बृज बिहारी लाल बुटेल के विरुद्ध उनके अपने ही करीबियों ने चुनाव मैदान में उतरकर स्थिति को जटिल बनाया था। कई बार ऐसे उम्मीदवार केवल वोट काटने का काम करते हैं, और कभी-कभी यह विरोधी पार्टी की रणनीति का हिस्सा भी हो सकते हैं। आशीष बुटेल को भी ऐसी ही राजनीतिक उलझनों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अब तक उनकी लोकप्रियता बरकरार है।
भविष्य की राजनीतिक गतिविधियाँ अभी अनिश्चित हैं, और अंतिम परिणाम समय ही बताएगा। यह लेख किसी特定 राजनीतिक दल का समर्थन या विरोध नहीं करता, बल्कि तथ्यों और विश्लेषण पर आधारित है।
सारांश:
· शांता कुमार ने 91वें जन्मदिन पर पालमपुर सीट पर भाजपा की जीत की अंतिम इच्छा व्यक्त की।
· पालमपुर सीट ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस के बुटेल परिवार के प्रभाव में रही है, भाजपा को यहाँ सीमित सफलता मिली है।
· 2007 में शांता कुमार के समर्थन से प्रवीण शर्मा ने यह सीट जीती थी।
· वर्तमान में कांग्रेस प्रत्याशी आशीष बुटेल मजबूत स्थिति में हैं।
· भाजपा में आंतरिक प्रतिस्पर्धा और गुटबाजी की आशंका है, जो उनकी जीत में बाधक हो सकती है।




